सुन रहा है न तू...


जुमलेबाजों के लिए किसानों के आंसू मायने नहीं रखते
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कल बारिश के साथ ओले पड़े...तीन दिन पहले भी बारिश हुई थी ओले पड़े थे...

मैं पिछले चार दिन से इस इंतजार में था कि कोई नेता, कोई मंत्री, कोई प्रधान चौकीदार कम से कम दो शब्द बोलकर उन किसानों के आंसू पोंछने की कोशिश करेगा, जिनके गेंहू की फसल इस अचानक बदले मौसम में बर्बाद हो गई...

लेकिन कहीं कोई बयान...कहीं कोई सहायता की घोषणा नहीं हुई...इस बारिश और ओले ने छोटे किसान को तो बर्बाद कर दिया है लेकिन संजीव बालियान, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बीरेंद्र सिंह जैसे बड़े तथाकथित किसानों को भी नुकसान पहुंचा है...लेकिन मजाल है कि किसी के मुंह से कोई लफ्ज निकला हो...मजाल है कि किसी मदद की घोषणा की गई...

अब जरा अपनी आंखों के सामने दिल्ली की यमुना नदी के किनारे की कल की वो तस्वीर लाइए...गुरुजी के साथ विशालकाय मंच पर देश के प्रधान चौकीदार... सामने नर्तकियां, संगीतकार, भजन गायक....और न जाने क्या-क्या...मंच से देश को बताया जा रहा है कि ऐसे ही कार्यक्रमों से देश का नाम होगा, इसकी आलोचना करने का मतलब है भारत की आलोचना...भारतीय संस्कृति को कोसना...इन सबके बीच किसानों के आंसू तमाम जुमलेबाजों को नजर नहीं आते...

सोचिए...कि कितने कमजर्फ हैं हम लोग...भारतीय संस्कृति किसानों के आंसू से भी बढ़कर हो गई है। ...जुमलेबाजों के लिए किसानों के आंसू की कोई कीमत नहीं है।...ये जुमलेबाज सिर्फ किसी एक पार्टी में नहीं हैं...जिस पार्टी के पेड़ को हिलाएंगे तो दो-चार जुमलेबाज टपक ही पड़ेंगे...

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुकाबले खेती-किसानी के मामले में सबसे आगे माने जाते थे...उसी इलाके में संजीव बालियान टाइम बड़े किसान ने नफरत की खेती के बीज उगा दिए हैं। बागपत, मुजफ्फरनगर का जो किसान कल तक नए-नए बीजों के बारे में जानकारी जुटाता रहता था, उसे बालियान ने नफरत के बीज बोने के लिए प्रेरित कर दिया है....

हरियाणा के किसान जो खेती-किसानी में पंजाब के किसानों को टक्कर देते थे, वहां के किसान आरक्षण आंदोलन में बैल की तरह जोत दिए गए हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बीरेंद्र सिंह जैसे बड़े किसान बर्बाद हो गए हरियाणा को फिर से खड़ा करने की बजाय राजनीति की खेती कर रहे हैं...जिस हरियाणा को आगे बढ़ाने में वहां के किसानों के अलावा पंजाबियों का भी बड़ा योगदान है, आज वही पंजाबी पिछले चुनाव में बीजेपी को तन-मन-धन से समर्थन करने के बाद ठगा हुआ महसूस कर रहा है...उसने अभी-अभी साफ देखा कि कैसे कांग्रेस और बीजेपी नफरत की आंधी में अपनी असली भूमिका निभाने में नाकाम रहे...

...इलेक्ट्रॉनिक मीडिया औऱ अखबारों से किसानों के सरोकार गायब होते जा रहे हैं। बारिश और ओले पड़ने पर हमने मौसम खुशनुमा होने की खबरें तो पढ़ी लेकिन वो खबरें गायब थीं कि किन इलाकों में किसानों का कितना नुकसान हुआ है...मीडिया भी देश के सबसे बड़े मेगा शो की कवरेज में लगा रहा...

इस कवरेज के पीछे मकसद भी है
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योगा बाबा की तर्ज पर ये बाबा भी अपने क्रीम - पाउडर लेकर मैदान में उतर पड़ा है। सब कुछ हर्बल है। यानी उस बाबा का बताया योग करो और फिर उसके स्टोर में जाकर उसकी दवाएं खरीदो, स्वस्थय रहोगे...

इस बाबा की भी बताई सुदर्शन क्रिया करो फिर इस बाबा की कंपनी में बने क्रीम - पाउडर खरीदो और उसे मलकर स्वास्थ्य रहो....

यानी

बाबा लोगों को भी बाजार चाहिए....बाजार को बाबा चाहिए...इन सब के बीच किसान कहां आता है...कहने को वो हमारे अर्थव्यवस्था की रीढ़ है...लेकिन बाजार के लिए बाबा जरूरी हैं...नेताओं को बाबा चाहिए किसान नहीं...विज्ञापन बाजार देता है, किसान नहीं....विज्ञापन बाजार देता है, किसान नहीं।



...ठीक है...तो पढ़िए अपनी बर्बादी का मरसिया...आज नहीं तो कल किसान की याद आएगी ही...


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नोटः ये सारी बातें मैं आपको आंक़ड़ों के जरिए बता सकता था लेकिन आपको आंकड़ों के जरिए आतंकित करने या रोब जमाने का इरादा नहीं है। कुल मिलाकर बात आप तक पहुंचनी चाहिए...



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