संदेश

Media लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देश में दलालों की जुगलबंदी

भारतीय लोगों की दुनिया रिलायंस की मुट्ठी में कैद हो चुकी है... देश की संसद में जो तमाशा चल रहा है, उसके लिए कहीं न कहीं जनता भी जिम्मेदार है। वरना मीडिया की औकात नहीं है कि वह आपको सही जानकारी न दे। यानी अगर आप लोग खबरों वाले चैनल देखना, न्यूज वेबसाइट पर जाना और कुछ अखबार पढ़ना बंद कर दें तो मीडिया ने भारत सरकार से दलाली की जो जुगलबंदी कर रखी है, वह बेनकाब हो जाएगी। विपक्षी पार्टियां लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे रही हैं और स्पीकर सुमित्रा महाजन तरह-तरह के बहाने लेकर प्रस्ताव का रखा जाना रोक रही हैं। क्योंकि प्रस्ताव पर बहस होनी है, सभी दलों को बोलने का मौका मिलेगा, सरकार और भाजपा इससे भाग रहे हैं। पिछले हफ्ते यह प्रस्ताव लाया गया था, तब संसद में होहल्ले का बहाना बनाया गया। सोमवार यानी कल खुद भाजपा ने जयललिता की पार्टी एआईडीएमके के साथ मिलकर हल्ला मचवा दिया। सुमित्रा महाजन को बहाना मिल गया। फिर से अविश्वास प्रस्ताव का रखा जाना रोक दिया गया...सोमवार को लोकसभा में जबरन मचाया जा रहा शोर इस बात की गवाही दे रहा था कि वह प्रायोजित शोर है और सिर्फ

राजस्थान पत्रिका...संघ परिवार और शेष मीडिया

राजस्थान के प्रमुख अख़बार राजस्थान पत्रिका ने भाजपा शासित राजस्थान सरकार यानी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को खुली चुनौती देते हुए वसु्ंधरा से जुड़ी सारी ख़बरों के बहिष्कार का फ़ैसला लिया है। यह उस क़ानून का विरोध है जिसके ज़रिए वसुंधरा मीडिया का गला घोंट देना चाहती है। यह उस क़ानून का विरोध है जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ किसी भी जाँच के लिए सरकार की अनुमति को आवश्यक बताता है। कोई भी एजेंसी तब तक करप्शन के मामलों की जाँच नहीं कर सकेगी जब तक सरकार उसकी जाँच के लिए लिखित अनुमति न दे दे। इस दौरान इसकी मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक रहेगी। राजस्थान पत्रिका को आरएसएस समर्थक अख़बार माना जाता है लेकिन इस अख़बार ने जिस तरह का स्टैंड अब लिया है वह क़ाबिले तारीफ़ तो है लेकिन हैरानी भी पैदा करता है। क्योंकि मेरा व्यक्तिगत अनुभव इस अख़बार को लेकर काफ़ी कटु रहा है। 1993 में मैंने यहाँ नौकरी के लिए आवेदन भेजा तो मुझे जयपुर बुलाया गया। उस समय मैं लखनऊ में था और नवभारत टाइम्स तब बंद हो गया था। जयपुर पहुँचने पर मेरा स्वागत हुआ और राजस्थान पत्रिका के समाचार संपादक ने मुझसे कहा कि हम लोग टेस्ट व

एक बेबस मां और हमारी एक्सक्लूसिव खबर

चित्र
...उम्मीद है कि जेएनयू के गायब छात्र नजीब की बेबस मां को सड़क पर घसीटे जाने और हिरासत में लिए जाने की तस्वीर आप भूले नहीं होंगे।...लेकिन अब तमाशा देखिए....जो दिल्ली पुलिस नजीब को 26 दिन से नहीं तलाश कर पाई अब वो नजीब को इमोशनली डिस्टर्ब बता रही है। यानी वो अंदर ही अंदर ही किसी बात को लेकर परेशान था, इसलिए खुद ही गायब हो गया। ...यह महान खबर दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से कुछ अखबारों ने छापी है। ऐसे भी कह सकते हैं कि इस मामले में चारों तरफ से फजीहत की शिकार पुलिस ने यह खबर अखबारों में प्लांट करा दी।  एक्सक्लूसिव की तलाश में भटकने वाले रिपोर्टर साथियों ने तह में जाने की कोशिश नहीं की कि इस खबर का मकसद क्या हो सकता है। दिल्ली पुलिस उन तथ्यों पर पर्दा डाल रही है कि नजीब के हॉस्टल में जाकर जिन स्टूडेंट्स या तत्वों ने मारपीट की थी, वो कौन लोग थे। नजीब उस घटना के फौरन बाद से गायब है। इस मामले में सवाल न पूछने वाले पत्रकार मित्र लगातार गलतियां कर रहे हैं। एक दिन पहले दिल्ली पुलिस खबर छपवाती है कि अब वो नजीब को तलाशने के लिए विदेशों की तर्ज पर सारी घटनाओं को रिकंस्ट्रक्ट करे