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कैसा धर्म है आपका...क्या ये बातें हैं...

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अगर कि सी धर्म के डीएनए में ही महिला अपराध है तो वो कैसा धर्म?    अगर किसी धर्म के डीएनए में ही बाल अपराध है तो वो कैसा धर्म?    अगर किसी धर्म के डीएनए में छुआछूत, ऊंच-नीच, सामाजिक असमानता है तो वो कैसा धर्म ?    इसलिए अपने - अपने धर्म पर फिर से विचार करें... आपके धर्म का डीएनए उस स्थिति में बहुत कमज़ोर है अगर उसके    किसी महापुरुष,    किसी देवी-देवता,    किसी अवतार    का अपमान    किसी कार्टून,    किसी फ़िल्म,    किसी विज्ञापन,    किसी ट्वीट,    किसी फ़ेसबुक पोस्ट से हो जाता है। तो कमज़ोर कौन है...   वो धर्म या उस अपमान को बर्दाश्त न कर पाने वाले आप????    क्योंकि उसके डीएनए में आप हैं। धर्म तभी है जब आप हैं। ...आप हैं तो धर्म है।    -यूसुफ़ किरमानी

मनाली की हसीन वादियों में पहुँचा नीरो

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  रोम के जलने पर नीरो अब बाँसुरी नहीं बजाता वह मनाली की हसीन वादियो को किसी टनल के उद्घाटन के बहाने निहारने जाता है।... वही नीरो मोर को दाना चुगाते हुए अपने चेहरे पर मानवीयता की नक़ाब ओढ़ लेता है।... वह हाथरस कांड पर चुप है। नाले के गैस पर चाय बनाने से लेकर टिम्बर की खेती की सलाह देने वाला शख़्स सोलंग (हिमाचल प्रदेश) में लोकनृत्य पर अहलादित हो रहा है। नीरो के लिए हाथरस एक सामान्य घटना है। उसे यक़ीन है कि उसका फ़ासिस्ट हीरो हाथरस संभाल लेगा। फ़ासिस्ट हीरो ने हाथरस में वो कर दिखाया जो नागपुर प्रशिक्षण केन्द्र से प्रशिक्षित होकर निकले किसी सेवक ने आजतक नहीं किया था। फ़ासिस्ट हीरो ने जब तक चाहा मीडिया के परिन्दों को पर नहीं मारने दिया। मीडिया को हाथरस के उस गाँव में घुसने और गैंगरेप व हत्या की शिकार लड़की के परिवार से मिलने की इजाज़त तब मिलती है जब सारे सबूत मिटा दिए जाते हैं। उसकी लाश परिवार की ग़ैरमौजूदगी में जलाई जा चुकी है। उल्टा पीड़ित परिवार के नारको टेस्ट की इजाज़त दी जा चुकी है। कई फ़र्ज़ी दस्तावेज़ वायरल किए जा चुके हैं। पालतू अफ़सर से पिता को धमकाया जा चुका है। फासिस्ट हीरो विपक्

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...

अभाव, गंदगी, चुनाव के झूठे वायदों के बावजूद हरिजन कैंप में जिंदगी गुलज़ार है

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जगह- हरिजन कैंप, लोदी कॉलोनी, साउथ दिल्ली की मस्जिद बच्चे का नाम - मोहम्मद सलमान सोर्स का नाम - मोहम्मद मोती, राज मिस्त्री (मैंशन) पहले वीडियो देखें फिर नीचे की तस्वीर देखें...वीडियो में क्या है, जानबूझकर नहीं लिखा। अगर आपने सुना तो शायद आप ही बता दें। दिल्ली में लोदी रोड पर इंडिया हबीतात सेंटर है और इसी से चंद कदम की दूरी पर हरिजन कैंप आबाद है। जिस इंडिया हबीतात सेंटर में ग़रीबों और ग़रीबी पर आए दिन सेमीनार होते रहते हैं, वहीं चंद कदम की दूरी पर यह बस्ती उन तमाम लफ्फाजियों को मुंह चिढ़ाती रहती है। मैं इस बस्ती में कल था। लोग बता रहे थे तीन दिन से पानी नहीं आ रहा है। लेकिन लोग उस गुस्से में शिकायत नहीं कर रहे थे, जिसकी उम्मीद की जाती है। चुनाव के मौसम में जब हर वोटर अपनी समस्याएं बताते नहीं थकता है, ऐसे में इस बस्ती में चुनाव कोलाहल से दूर लोग खुद में मस्त नजर आए। खबरों के मामले में टीवी के तमाम घटिया प्रभावों के बावजूद इस बस्ती के लोगों को नहीं मालूम कि इस आम चुनाव में कौन जीतेगा। उनका कहना था कि हमें कल फिर दिहाड़ी पर निकल जाना है, हमें क्या फर्क पड़ेगा, कौन जितेगा और क

क्या आप शहरी नक्सली हैं...आखिर कौन है शहरी नक्सली

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Urban Naxal यानी शहरी नक्सली ....यह जुमला आजकल बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि कभी मेनस्ट्रीम पत्रिका में सुधांशू भंडारी ने शहरी नक्सलवाद की रणनीति पर लंबा लेख लिखकर इसकी चर्चा की थी। लेकिन यह लेख सिर्फ लेख रहा और नक्सली आंदोलन के प्रणेता इसे कभी अमली जामा नहीं पहना सके। लेकिन राष्ट्रवाद और आवारा पूंजीवाद का प्रचार प्रसार करने वाले अब अपने विरोधियों के लिए शहरी नक्सली या शहरी नक्सलवाद शब्द लेकर लौटे हैं। इस वक्त केंद्र सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को शहरी नक्सलियों की आवाज बताने का फैशन शुरू हो गया है। अगर आप सरकार के विरोध में हैं तो आप शहरी नक्सली हैं या देशद्रोही हैं।    हाल ही में कोरेगांव भीमा, पुणे और मुंबई में दलितों ने सड़क पर आकर जो आंदोलन किया, उसे बॉलिवुड के फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री और उनके खेमे के लोगों ने इसे शहरी नक्लवाद बताया और लिखा। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शाहला राशिद ने पिछले दिनों तमाम मुद्दों पर जो आंदोलन किया, उसे भी शहरी नक्सलवाद से जोड़ा गया। हैदराबाद यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद