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गांधी को गाली दो, गोडसे को देशभक्त बताओ...तुम्हारे पास काम ही क्या है?

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पिछले पाँच साल में महात्मा गांधी को गाली देने का चलन आम हो गया है। आरएसएस और उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा ने इसे एक मिशन की तरह आगे बढ़ाया है। अपने छुटभैये नेताओं से गाली दिलवाते हैं। फिर उस गाली को उसका निजी विचार बता दिया जाता है। बहुत दबाव महसूस हुआ तो उसको पार्टी से निकालने का बयान जारी कर दिया जाता है या माफ़ी माँग ली जाती है।  मैं अक्सर कहता रहा हूँ कि जिन राजनीतिक दलों या जिस क़ौम के पास गर्व करने लायक कुछ नहीं होता वो या तो अपने प्रतीक गढ़ते हैं या फिर मिथक का सहारा लेते हैं। कई बार अंधविश्वास तक का सहारा ले लेते हैं।  गांधी, आंबेडकर, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद या भगत सिंह से आरएसएस और भाजपा सिर्फ इसलिए चिढ़ते हैं क्योंकि ये सारे गढ़े गए प्रतीक नहीं हैं। ये सभी भारतीय जनमानस में बसे हुए प्रतीक हैं।  बहुसंख्यकवाद के तुष्टिकरण की नीति पर चलने वाले संगठनों के पास गर्व करने लायक कोई प्रतीक नहीं है। इनके प्रतीकों का अतीत अंग्रेज़ों की मुखबिरी करने और उनसे माफ़ी माँगने में बीता है। भारत जब आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था तो इनके गढ़े गए प्रतीक सावरकर,