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मेरे जूते की आवाज सुनो

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इराक के पत्रकार मुंतजर अल-जैदी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर जब पिछले साल जूता फेंका था तो पूरी दुनिया में इस बात पर बहस हुई कि क्या किसी पत्रकार को इस तरह की हरकत करनी चाहिए। उसके बाद ऐसी ही एक घटना भारत में भी हुई। यह बहस बढ़ती चली गई। बुश पर जूता फेंकने वाले इराकी पत्रकार अभी हाल ही में जेल से छूटे हैं। जेल से छूटने के बाद यह पहला लेख उन्होंने लिखा, जिसे हिंदी में पहली बार किसी ब्लॉग पर प्रकाशित किया जा रहा है। उम्मीद है कि इस लेख से और नई बहस की शुरुआत होगी... मैंने बुश पर जूता क्यों फेंका -मुंतजर अल-जैदी अनुवाद – यूसुफ किरमानी मैं कोई हीरो (Hero) नहीं हूं। मैंने निर्दोष इराकियों का कत्ले-आम और उनकी पीड़ा को सामने से देखा है। आज मैं आजाद हूं लेकिन मेरा देश अब भी युद्ध के आगोश में कैद है। जिस आदमी ने बुश पर जूता फेंका, उसके बारे में तमाम बातें की जा रही हैं और कही जा रही हैं, कोई उसे हीरो बता रहा है तो कोई उसके एक्शन के बारे में बात कर रहा है और इसे एक तरह के विरोध का प्रतीक मान लिया गया है। लेकिन मैं इन सारी बातों का बहुत आसान सा जवाब देना चाहता हूं और बताना चाहता हूं

पाकिस्तान में टीवी पत्रकारिता

एशियाई देशों में अगर टीवी पत्रकारिता कहीं सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई है तो वह पाकिस्तान है। उनके न्यूज चैनल बड़ी सफाई से भारतीय न्यूज चैनलों के फुटेज का इस्तेमाल करते हैं। अगर भारत में घटिया से घटिया किसी टीवी चैनल की बात की जाए तो भी पाकिस्तान के टीवी चैनल बहुत पिछड़े हुए हैं। अभी किसी मित्र ने मुझे यूट्यूब की एक क्लिप भेजी, जिसे देखकर आप भी लोटपोट हुए बिना नहीं रह सकते। दरअसल, यह सब मैंने इसलिए लिखा कि पिछले दिनों पाकिस्तान के Jam News चैनल से नौकरी का आफर दिया गया कि हम आपको भारत में अपना ब्यूरो प्रमुख नियुक्त करना चाहते हैं। मैंने उनको गोलमोल जवाब दिया और उसके संपादक और मालिक लगातार ईमेल पर और फोन करके लंबी-चौड़ी डींगे मारते रहे। हालांकि मुझे उनके लिए काम नहीं करना था, क्योंकि उनकी मंशा मुझे कुछ-कुछ समझ आ रही थी। एक दिन अचानक उन लोगों का फिर फोन आया और वे उस बातचीत को लाइव करने लगे। उन्होंने कहा कि क्या JAM TV भारत में देखा जाता है, मैंने कहा – यहां तो कोई उसका नाम भी नहीं जानता। इस सवाल पर वे लोग बौखलाए। फिर कहा कि जरूर यह वहां बैन कर दिया गया होगा। मैंने कहा-पीटीवी (PTV) के बारे में

मेरा जूता है जापानी

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यह सच है कि मुझे कविता या गजल लिखनी नहीं आती। हालांकि कॉलेज के दिनों में तथाकथित रूप से इस तरह का कुछ न कुछ लिखता रहा हूं। अभी जब एक इराकी पत्रकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जूता फेंका तो बरबस ही यह तथाकथित कविता लिख मारी। इस कविता की पहली लाइन स्व. दुष्यंत कुमार की एक सुप्रसिद्ध गजल की एक लाइन – एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो – की नकल है। क्योंकि मेरा मानना है कि बुश जैसा इंसान (?) जिस तरह के सुरक्षा कवच में रहता है वहां तो कोई भी किसी तरह की तबियत लेकर पत्थर नहीं उछाल सकता। पत्थर समेत पकड़ा जाएगा। ऐसी जगहों पर तो बस जूते ही उछाले जा सकते हैं, क्योंकि उन्हें पैरों से निकालने में जरा भी देर नहीं लगती। मुझे पता नहीं कि वह किसी अमेरिकी कंपनी का जूता था या फिर बगदाद के किसी मोची ने उसका निर्माण किया था लेकिन आज की तारीख में वह जूता इराकी लोगों के संघर्ष और स्वाभिमान को बताने के लिए काफी है। इतिहास में पत्रकार मुंतजर जैदी के जूते की कहानी दर्ज हो चुकी है। अब जरा कुछ क्षण मेरी कविता को भी झेल लें – (शायर लोग रहम करें, कृपया इसमें रदीफ काफिया न तलाशें) - कब तक चलेगी झूठ की दुकान - यूसुफ कि

बुश पर जूते पड़े या फेंके गए ? जो भी हो – यहां देखें विडियो

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दुनिया के तमाम देशों में लोग अमेरिका खासकर वहां के मौजूदा राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश से इतनी ज्यादा नफरत करते हैं कि उनका चेहरा तक नहीं देखना चाहते। मैंने भी आपकी तरह वह खबर अखबारों में पढ़ी लेकिन बुश पर इराक में जूते फेंकने का विडियो जब YouTube पर जारी हुआ तो मैंने सोचा कि मेरे पाठक भी उस विडियो को देखें और उन तमाम पहलुओं पर सोचें, जिसकी वजह से अमेरिका आज इतना बदनाम हो गया है। इराक में बुश के साथ जो कुछ भी हुआ, वह बताता है कि लोग इस आदमी के लिए क्या सोचते हैं। जिसकी नीतियों के कारण अमेरिका आर्थिक मंदी के भंवर में फंस गया है और विश्व के कई देश भी उस मंदी का शिकार बन रहे हैं। जिस व्यक्ति ने बुश पर जूते फेंके वह पत्रकार है और उनका नाम मुंतजर अल जैदी है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा किया लेकिन जैदी का बयान यह बताने के लिए काफी है कि अगर किसी देश की संप्रभुता (sovereignty) पर कोई अन्य देश चोट पहुंचाने की कोशिश करता है तो ऐसी ही घटनाएं होती हैं। जैदी ने अपना गुस्सा जताने और अपनी बात कहने के लिए किसी हथियार का सहारा नहीं लिया है। खाड़ी देशों के तेल पर कब्जा करने के