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तैना शाह आ रहा है...

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 तैना शाह आ रहा है .............................. जनता, बजाओ ताली की तैना शाह आ रहा है हाँ, ख़ाली है थाली, पर धर्म तो जगमगा रहा है बिछाओ मसनद, सजाओ राजमुकुट उसका धर्म की आग में झुलसेगा अब हर तिनका तुम्हें समन्दर क्यों चाहिए, जब दरिया छोड़ दिया है प्यासे न मरोगे, उसने चुल्लू भर पानी छोड़ा दिया है ख़ूब चाटो बाबा की किताब, जनतंत्र मर चुका जब हिटलर ही धर्मतंत्र का ऐलान कर चुका हमने दरिया में लाशें देखीं और तैना शाह के तराने देखे खबरें बनाती रहीं तमाशा हमारा, एंकर ऐसे सयाने देखे कहीं से अब कोई सदा नहीं आती यूसुफ ए किरमानी ज़रा ज़ोर से बजाओ बिगुल, सुनाओ कोई नई कहानी @YusufKirmani January 22, 2024

भारत में निष्पक्ष चुनाव नामुमकिनः व्यक्तिवादी तानाशाही में बदलता देश

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  Fair elections are impossible in India: The country is turning into an individualistic dictatorship an article by Yusuf Kirmani, published in Samyantar Janauary 2024 issue. भारत में निष्पक्ष चुनाव और व्यक्तिवादी तानाशाही पर यूसुफ किरमानी का यह लेख समयांतर जनवरी 2024 में प्रकाशित हुआ था। इसे अब मुफ्त कंटेंट के तौर पर हिन्दीवाणी के पाठकों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। भारत में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए एकमात्र संस्था केंद्रीय चुनाव आयोग है।  12  दिसंबर को राज्यसभा में और 21 दिसंबर 2023 को लोकसभा के शीतकालीन अधिवेशन में मोदी सरकार एक विधेयक लाई और उसके जरिए केंद्रीय चुनाव आयोग में केंद्रीय चुनाव आयुक्त (सीईसी) और आयुक्तों के चयन का अधिकार प्रधानमंत्री ,  सरकार का कोई मंत्री और नेता विपक्ष को मिल गया। इतना ही नहीं चुनाव आयुक्तों का दर्जा और वेतन सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर कर दिया गया।  नियमों में एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह भी हुआ कि अगर कोई मुख्य चुनाव आयुक्त या आयुक्त अपने कार्यकाल में जो भी फैसले लेगा ,  उसके खिलाफ न तो कोई एफआईआर दर्ज होगी और न ही उसे किसी अदालत द्वारा उस

अतीक अहमद: बेवकूफ और मामूली गुंडा क्यों था

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Mafia Don Atiq Ahmed and his brother Ashraf live murder on camera in Allahabad  - यूसुफ किरमानी  अतीक और अशरफ़ की हत्या करने वालों के नाम लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरूण मौर्य हैं।   नाम फिर से पढ़िए। नाम में कुछ नहीं रखा है। जो है वो जाति है। इन तीनों अपराधियों में जाति नाम का ग़ज़ब का संतुलन है। नाम फिर से पढ़िए। यूपी सरकार  ने अतीक-अशरफ़ हत्याकांड की जाँच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक जाँच समिति बनाई है। इस समिति में कौन-कौन हैं-  जांच समिति के अध्यक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अरविंद कुमार त्रिपाठी, सदस्यों में रिटायर्ड जस्टिस बृजेश कुमार सोनी और पूर्व डीजीपी सुबेश कुमार सिंह हैं। जाँच समिति के तीनों नाम फिर से पढ़िए। फिर हत्या करने वाले तीनों आरोपियों के नाम पढ़िए ...और फिर उन्हें मिलाकर पढ़िए। जाँच रिपोर्ट का सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वो क्या होगी। जातिवाद सत्य है। धार्मिक नारे सत्य हैं।  वैसे, यह लेख अपराधियों या जाँच समिति के लोगों की जाति पर नहीं है। यह लेख अतीक पर है और उस सिस्टम पर है, जिसमें अतीक जैसे मोहरे तैयार होते हैं। अतीक-अशरफ़ की हत्या का जिन तीनों पर आरो

भारतीय सिख या गोल्डन इंसान कहें उन्हें

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सिखों के गोल्ड दान की बहुत तारीफ़ हो रही है... वो लोग हमेशा तारीफ़ के क़ाबिल काम करते हैं।...इसमें रत्ती भर शक नहीं है। लेकिन मुझे ग़ुस्सा उस आक्रमणकारी महमूद गजनवी और उन चंद मुगल हमलावरों पर आ रहा है जो हमारे देश के मंदिरों का सोना लूटकर ले गए। इन लोगों को क्या गाली दूँ?  वो गोल्ड बचा रहता तो आज हमारे बहुसंख्यक सनातनी भाई भी मंदिरों के गोल्ड से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और अस्पताल बनवा रहे होते।  लेकिन अभी भी सनातनियों का सामर्थ्य मरा नहीं है। वे बहुत बड़े दानवीर हैं।  जोश में आ जाएँ तो सनातनी भाई सिखों से भी बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।  #अयोध्या में भव्य #राम_मंदिर के लिए जो कौम कई अरब रूपये चंदा दे सकती है। उसके लिए सैकड़ों यूनिवर्सिटी खड़ी कर देना मामूली बात है। अस्पताल, कॉलेजों के लिए भी सनातनी चंदा क्यों नहीं  देंगे ? सनातनी जाग उठा है। वह अब मंदिर से आगे जाकर सोच रहा है। मुबारक। इस शिकायत में कोई दम नहीं है कि सनातनी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार आदि के बजाय मंदिर को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं। एक बार मंदिर बन जाये तो वे ज़रूर इन ज़रूरतों पर भी ध्यान देंगे। बहरहाल, बात हम सिखों पर कर