बढ़ गया है जूते का सम्मान
-चंदन शर्मा आखिर साबित हो ही गया कि जूते की ताकत कलम से ज्यादा हो चुकी है। चाहे वह इराक हो या इंडिया हर जगह जूतों की शान में इजाफा हुआ है। वैसे दोनों ही जगह इस शान को बढ़ाने वाले कलम के सिपाही ही रहे हैं। अब इसमें कोई नई बात नही है। हमेशा से ही यही कलम के सिपाही ही किसी भी चीज का भाव बढ़ाते व गिराते रहे है। इस बार जूतों की बारी आ गई। इंटरनेशनल जूता कंपनियों को इसका अहसास पहले ही हो चुका था। इसलिए सभी बड़ी कंपनियों ने पूरे देश में जूते के शोरूम की कतारें लगानी शुरु कर दी थी। कोई भी बाजार नहीं छोड़ा जहां पर जूतों की दुकान न हो। क्या पता कोई प्रतिभावान कलम का सिपाही किस गली या बाजार से निकल आए और जूतों की किस्मत चमका दे। ऐसे प्रतिभावान बिरले ही होते हैं और इनको ढ़ूंढना भी आसान काम नहीं है। विवेकानंद, महात्मा गांधी, नेहरू और जाने कितनों ने अपने-अपने ढंग से भारत की खोज करने की कोशिश की पर ऐसे प्रतिभावान की खोज नहीं कर पाए। यहां तक कि राहुल गांधी का युवा भारत की खोज का अभियान भी ऐसे महामानव को ढ़ूंढ पाने में असफल रहा। उन्हें शायद इस बात का इल्म भी नहीं हुआ होगा कि जिसे सारे देश की युवाशक्ति ढूंढ