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पाकिस्तान में ऐसे लोग भी हैं

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मानवाधिकार आय़ोग पाकिस्तान के डायरेक्टर आई. ए. रहमान का लेख वहां चर्चा में है नोट ः मेरा यह लेख आज नवभारत टाइम्स, लखनऊ में ग्लोबल पेज पर छप चुका है। जिसका हेडिंग है - लीक से हट कर बोलते हैं रहमान भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते रिश्तों में मीडिया की भूमिका अहम हो गई है। पाकिस्तान के आग उगलते न्यूज चैनल और रक्त रंजित हेडिंग से भरे हुए वहां के अखबारों के बीच पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के डायरेक्टर आई.ए. रहमान का लेख चर्चा का विषय बन गया है। रहमान के लेख को पाकिस्तान के लोकप्रिय अखबार डान ने अंग्रेजी और उर्दू में पहले पेज पर एंकर प्रकाशित किया है। बता दें कि डान अखबार की स्थापना पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। ऐसे वक्त में जो उम्मीद भारत सरकार यहां के मीडिया से लगाए बैठी है, वही उम्मीद पाकिस्तान सरकार वहां की मीडिया से लगाए बैठी है। लेकिन डान ने कई मायने में कमाल कर दिया है। डान टीवी ने भारत के रक्षा विश्लेषक सी. उदय भास्कर को पैनल में लाकर और उनकी बात बिना किसी काट-छांट के अपने दर्शकों को दिखा देना, निश्चित रूप से पाकिस्तान सरकार और वहां की आर्मी को पसंद नह

आमिर खान और सत्यमेव जयते…क्या सच की जीत होगी

मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स की वेबसाइट nbt.in पर भी उपलब्ध है। थोड़ी देर के लिए बॉलिवुड स्टार आमिर खान (Bollywood Star Aamir Khan) के टीवी प्रोग्राम सत्यमेव जयते (Satyamev  Jayate) को अलग रखकर डॉक्टरों की दुनिया पर बात करते हैं। तमाम मुद्दे...सरोकार...हमारे आसपास हैं और उनसे पूरा देश और समाज हर वक्त रूबरू होता रहता है। पर कितने हैं जो इनसे वास्ता रखते हैं या इनका खुलकर प्रतिकार करते हैं। आमिर खान बॉलिवुड के बड़े स्टार हैं, उनकी एक मॉस अपील है। आप लोगों में से जिन्होंने 6 मई को उनका टीवी शो सत्यमेव जयते देखा होगा, या तो बहुत पसंद आया होगा या फिर एकदम से खारिज कर दिया होगा। फेसबुक (Facebook) हर बार की तरह ऐसे लोगों की प्रतिक्रिया का पसंदीदा अड्डा है। शो खत्म होने के बाद प्रतिक्रियाएं आने लगीं। हमारे कुछ मित्रों ने कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide) को धर्म और वर्ण में बांटने की कोशिश भी की। फेसबुक से पता चल रहा है कि वे इसे सिर्फ सवर्ण हिंदुओं की समस्या मानते हैं। उनका यह भी कहना है कि मुसलमान और दलित अपनी बेटियों को नहीं मारते। उन्होंने आंकड़े भी पेश किए हैं। मैं कम से कम इस स

कवि-कथाकार संजय कुंदन क्या वाकई ब्राह्मणवादी हैं

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अविनाश के मोहल्ला ब्लॉग पर फॉरवर्ड प्रेस में प्रकाशित प्रमोद रंजन की संपादकीय टिप्पणी , मॉडरेटर का वक्तव्य और इन सब पर कुछ लोगों की प्रतिक्रियाएं पढ़ीं तो मन में कुछ सवाल उठे , बातें उभरीं , जिन्हें आप लोगों से शेयर करना चाहता हूं। पहली बार बहुजन आलोचना की अवधारणा का पता चला। अगर इस संदर्भ को समझने में परेशानी हो तो पहले प्रमोद रंजन की टिप्पणी मोहल्ला लाइव ब्लॉग पर पढ़ें, इस लिंक पर जाएं http://mohallalive.com/2012/04/24/bahujan-sahitya-varshiki-editorial-of-forward-press - यूसुफ किरमानी साहित्य एक जनतांत्रिक माध्यम है। हर किसी को हक है कि वह नई-नई अ ï वधारणा लेकर आए। वैसे बहुजन का फॉर्मूला यूपी और बिहार की राजनीति में पिट चुका है। राजनेता अब इससे आगे निकल चुके हैं। लेकिन अब साहित्य में इसे चलाने की कोशिश की जा रही है। सच्चाई यह है कि सामाजिक संरचना को बौद्धिकों से बेहतर राजनेता ही समझते हैं। (क्या इसीलिए अब भी हिंदीभाषी क्षेत्र की जनता पर साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों से ज्यादा राजनेताओं की बात का असर होता है ?) खैर, प्रमोद रंजन ने जो बहुजन आलोचना पेश की है उसके मानदंड ब

धर्म गुरुओं की राजनीतिक चाहतें

भारत के धर्मगुरुओं की राजनीतिक चाहतें छिपी नहीं हैं। पर, वे लोग जब यही काम कौम के नाम पर करने लगें तो उन पर तरह-तरह के संदेह पैदा होते हैं। फिर अगर इस खेल में धार्मिक संस्थाएं भी शामिल हो जाएं तो कौम बेचारी बेवकूफ बनती रहती है। मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स की आनलाइन साइट पर उपलब्ध है। पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - नवभारत टाइम्स

अरब देशों में आजादी की भूख...जाग चुकी हैः अब्बास खिदर

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इराकी मूल के जर्मन लेखक अब्बास खिदर (Iraqi born German Writer Abbas Khider) का भारतीय युवक जैसा दिखना एक तरफ मुसीबत बना तो दूसरी तरफ उसने उन्हें एक पहचान भी दी। डैर फाल्शे इन्डैर (गलत भारतीय) नॉवेल ने उन्हें भारत के करीब ला दिया है। इराक में सद्दाम हुसैन (Saddam Hussain) के शासनकाल में युवा आंदोलनकारियों का नेतृत्व करने की वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया था। सद्दाम ने उनकी हत्या करानी चाही तो उन्होंने सन् 2000 में इराक छोड़ दिया। तमाम अरब, अफ्रीकी मुल्कों से होते हुए स्वीडन जाने की कोशिश में उन्हें जर्मनी की पुलिस ने बॉडर्र पर गिरफ्तार कर लिया। वहां उन्होंने शरण ले ली और वहां पैदा हुआ जर्मन साहित्य को समृद्ध करने वाला एक लेखक। ढेरों अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके अब्बास खिदर ने भारत आने पर सबसे पहला इंटरव्यू मुझे नवभारत टाइम्स के लिए दिया, उनका यह इंटरव्यू नवभारत टाइम्स में 3 मार्च, 2012 को छपा है। अखबार में आपको इस इंटरव्यू के संपादित अंश मिलेंगे लेकिन यहां आपको उसके असंपादित अंश पढ़ने को मिलेंगे। अब जबकि इराक से अमेरिकी फौजों (US Army) की वापसी हो चुकी है। आप इ

एक ख्वाब ले आया मुझे भारत की दहलीज पर

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अध्यात्मिक भारत में मोहर्रम के मायने

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Meaning of Muhramme in Spiritual India इस्लामिक कैलंडर के हिसाब से साल की शुरुआत हो चुकी है। मोहर्रम उसका पहला महीना है। लेकिन न सिर्फ इस्लामिक कैलंडर के हिसाब से बल्कि पूरी दुनिया में जितनी भाषाएं, धर्म, जातियां मौजूद हैं, उनके लिए भी मोहर्रम के कई मायने और मतलब है। पर, अध्यात्मिक भारत के लिए इसका महत्व बहुत खास है। भारत में मुंशी प्रेमचंद ने कर्बला का संग्राम जैसी प्रसिद्ध पुस्तक लिखकर इसे आम हिंदी भाषी लोगों तक पहुंचाया तो भारत के नामवर उर्दू शायर कुंवर मोहिंदर सिंह बेदी ने इसे नए तेवर और अकीदत के साथ पेश किया। अपनी एक रचना में वह लिखते हैं कि कर्बला के मैदान में शहीद होने वाले पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन महज किसी एक कौम की जागीर क्यों रहें, क्यों न उस कुर्बानी को आम बनाया जाए जो इंसानियत के नाम दर्ज है। जिसमें छह महीने के बच्चे से लेकर बड़ों तक बेमिसाल शहादत शामिल है। महात्मा गांधी ने अपनी अहिंसा की अवधारणा का जिक्र करते हुए लिखा है कि उन्हें इस तरफ प्रेरित करने वाली विभूतियों में इमाम हुसैन भी शामिल हैं। पूरी दुनिया में जब हिंसा अपने नए-नए चेहरे रखकर

पाकिस्तान में धर्म का अपहरण

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एशिया में अगर किसी मुल्क के लोगों की धार्मिक आजादी (religious freedom)जबर्दस्त खतरे में पड़ गई है तो वह पाकिस्तान है। वहां के ब्लासफेमी कानून की आलोचना करने पर एक और राजनेता की जान ले ली गई। इस बार तालिबानी कट्टरपंथियों ने वहां के मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या कर दी, जबकि इसी मुद्दे पर पाकिस्तानी पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। सलमान की हत्या के बाद पाकिस्तानी पत्रकार बीना सरवर ने एनबीटी के साथ एक बातचीत में कहा था कि कट्टरपंथी इस कानून के खिलाफ उठ रही हर आवाज को दबाना चाहते हैं। इस कानून को लेकर जो बहस बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उठी थी, वह अब नए सिरे से शुरू हो गई है। मसलन, क्या वाकई कुरान में ऐसा कोई आदेश है कि मुहम्मद की निंदा करने वाले को मृत्युदंड दिया जाए? सूर-ए-अजाब कुरानशरीफ में ब्लासफेमी (blasphemy)को लेकर आई कुरान शरीफ की आयत सूर-ए-अजाब में कहा जा रहा है - ऐ मुहम्मद, जिसने अल्लाह और उसके संदेशवाहक की निंदा की, अल्लाह उसको इसी दुनिया में और बाद में भी सजा देगा। उसने उनकी बर्बादी के पूरे इंतजाम कर दिए हैं। अगर किसी ने कुरान का अध्ययन किया ह

पाकिस्तान में कट्टरपंथी पुराने अजेंडे पर ही चल रहे हैं

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पाकिस्तान में चंद दिन पहले वहां के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी गई। वह पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून (ब्लासफेमी) के गलत इस्तेमाल व इसमें से सजा-ए-मौत की धारा को खत्म किए जाने के प्रमुख पैरोकार थे। बीना सरवर पाकिस्तान की जानी-मानी पत्रकार और डॉक्युमेंटरी फिल्ममेकर हैं। वह इस समय वहां के प्रमुख समचारपत्र जंग ग्रुप में संपादक – स्पेशल प्रोजेक्ट्स (अमन की आशा) हैं। उन्होंने ब्राउन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी आफ लंदन के अलावा हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है। बीना सरवर से पाकिस्तान के मौजूदा हालत पर मैंने बातचीत की है...यह इंटरव्यू नवभारत टाइम्मस अखबार में 20 जनवरी,2011 को प्रकाशित हुआ है और उसकी वेबसाइट पर आनलाइन भी उपलब्ध है... पाकिस्तान में उदारवादी नेता व पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या को आप राजनीतिक या कट्टरपंथियों की करतूत मानती हैं? दोनों ही। जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की है, वह दिखता तो कट्टरपंथी है लेकिन दरअसल इस हत्या का मतलब और मकसद कुछ और भी है। हत्यारे मलिक मुमताज कादरी की ड्यूटी एलीट फोर्स में सिर्फ पंजाब के गवर्नर की सुरक्षा के लिए लगाई गई। हालांकि इससे पहले उसे

पिछड़ों की राजनीति अब पीछे नहीं आगे बढ़ेगी

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बिहार किसे चुनता है, इसका इंतजार सभी को था। तमाम नेता चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे। राजनीतिक विश्लेषक भी अपनी-अपनी धारा में बह रहे थे। जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार और दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रफेसर महेश रंगराजन की नजर भी इस चुनाव पर थी। नतीजे आने के बाद मैंने उनसे बात कीः क्या नीतिश को वाकई विकास के ही नाम पर वोट मिला बिहार के लोगों ने सिर्फ विकास के लिए वोट नहीं दिया है। भागलपुर, लातेहार, जैसे कई नरसंहार झेल चुका बिहार पहले से ही राजनीतिक रूप से जागरूक था और उसने हर बार विकास के लिए ही वोट दिया था लेकिन जिस सामाजिक न्याय को उससे छीन लिया गया था, इस चुनाव में उसे वापस लाने की छटपटाहट साफ नजर आ रही थी। नीतिश कुमार ने जनकल्याण की नींव तो पिछले ही चुनाव में डाल दी थी। लालू प्रसाद यादव के वक्त से भी पहले बिहार अपना राजनीतिक चेहरा बदलने के लिए परेशान था लेकिन गुंडो और बाहुबलियों की सेना उसे ऐसा करने से बार-बार रोक रही थी। पर उन्होंने ऐसा क्या किया नीतिश आए तो उन्होंने 50 हजार ऐसे गुंडों को सीधे जेल भेज दिया। भागलपुर के हत्यारों को सजा दिलाई। नीतिश ने बिहारी अस्मिता का नारा दिया

सिर्फ परंपरा निभाने के लिए मत मनाइए बकरीद

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आपकी नजर से वह तस्वीरें जरूर गुजरी होंगी, जिनमें कुरबानी (Sacrifice) के बकरे काजू, बादाम और पिज्जा (Pizza)खाते हुए नजर आ रहे होंगे। यह सिलसिला कई साल से दोहराया जा रहा है और हर साल यह रिवाज बढ़ता ही जा रहा है। जिसके पास जितना पैसा (Money)है, वह उसी हिसाब से कुरबानी के बकरे की सेवा करता है और उसके बाद उसे हलाल कर देता है। यह अब रुतबे का सबब बन गया है। जिसके पास जितना ज्यादा पैसा, उसके पास उतना ही शानदार कुरबानी का बकरा और उसकी सेवा के लिए उतने ही इंतजाम। इस्लाम के जिस संदेश को पहुंचाने के लिए इस त्योहार का सृजन हुआ, उसका मकसद कहीं पीछे छूटता जा रहा है। इस त्योहार (Festival)की फिलासफी किसी हलाल जानवर की कुरबानी देना भर नहीं है। इस्लाम ने इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा सिर्फ इसलिए नहीं बनाया कि लोग खुश होकर खूब पैसा लुटाएं और उसका दिखावा भी करें। हजरत इब्राहीम से अल्लाह ने अपनी सबसे कीमती चीज की कुरबानी मांगी थी। उन्होंने काफी सोचने के बाद अपने बेटे की कुरबानी का फैसला किया। उनके पास एक विकल्प यह भी था कि वह किसी जानवर की बलि देकर अपनी भक्ति पूरी कर लेते, लेकिन उन्होंने वह फैसला किया जिसके

क्या हो मीडिया की भाषा

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अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के सेंट लुई कैंपस में भाषा विज्ञान के प्रफेसर डॉ. एम. जे. वारसी मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। अब तक भाषा विज्ञान से जुड़े उनके 25 शोधपत्र और अनेक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। यूनिवर्सिटी आफ बर्कले ने उन्हें हाल ही में सम्मानित किया है। उसके बाद अमेरिका में भाषा विज्ञान के मामले में भारत की कद बढ़ी है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी (एएमयू) के छात्र रह चुके डॉ. वारसी से यूसुफ किरमानी की बातचीत। यह इंटरव्यू शनिवार 12 जून 2010 को नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज पर छपा है। वहां से इसे साभार लिया जा रहा है। आपकी किताब लैंग्वेज एंड कम्युनिकेशन की काफी चर्चा हो रही है। आप मीडिया के लिए किस तरह की भाषा का सुझाव देना चाहते हैं? मैंने इसी विषय से जुड़ा पेपर वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के लिए तैयार किया था। बाद में इस पर किताब लिखने का प्रस्ताव मिला। इस किताब में मैंने इस बात को उठाया है कि मीडिया की भाषा कैसी होनी चाहिए और चूंकि मीडिया सीधे आम आदमी से जुड़ा है तो इसके इस्तेमाल की क्या तकनीक होनी चाहिए। मैंने एक बात खासतौर पर रेखांकित की है कि मीडिया की भाषा साहित्यिक नह

दिल्ली को पेरिस बनाएंगे

इस वक्त दिल्ली का जो हाल है, वह यहां के बाशिंदों से पूछिए। कॉमनवेल्थ गेम्स की वजह से दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की जो तैयारियां की जा रही हैं, उसने इस शहर की शक्ल बिगाड़ दी है। सरकार को पहले यह याद नहीं आय़ा कि एनसीआर के किसी शहर से दिल्ली में प्रवेश करने के लिए कम से कम सीमा पर जो व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वह नहीं थीं और उसे वक्त रहते मुहैया कराने की कोशिश की जाती। अब जब ध्यान आया है तो पूरे बॉर्डर को ही तहस-नहस कर दिया गया है, चाहे आप गाजियाबाद से आ रहे हैं या फिर फरीदाबाद या गुड़गांव से...सोनीपत से...नोएडा से...यही आलम है... नवभारत टाइम्स में कार्यरत जयकांत शर्मा ने अपनी व्यथा पर कलम चलाई है...उनकी कविता पढ़े। कृपया इस कविता में साहित्य न तलाशें, यह उनके अपने विचार हैं। दिल्ली को पेरिस बनाएंगे, वहां सौ-सौ मजिल की इमारते हैं, यहां पांच मजिला को भी गिराएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां टावर या मकान सील नहीं होते, यहां सब कुछ सील करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां छोटी-मोटी बातों पर झगड़े नहीं होते, यहां बिना बात के झगड़े करवाएंगे दिल्ली को पेरिस बनाएंगे वहां हर काम तरतीब से होता ह

आरटीआई पर भारत सरकार की नीयत ठीक नहीं

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सूचना का अधिकार (आरटीआई) पर सरकार की नीयत ठीक नहीं है। भारत में इस मुहिम को छेड़ने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपनी व्यस्तता के बावजूद इस विषय पर मुझसे खुलकर बातचीत की। इस बातचीत को प्रमुख हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स ने 15 मई 2010 को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया है। अगर आप कहीं ऐसी जगह हैं जहां नवभारत टाइम्स उपलब्ध नहीं है तो इस इंटरव्यू को नवभारत टाइम्स की वेब साइट पर आनलाइन भी पढ़ सकते हैं। उस साइट पर जाने के लिए क्लिक करें। मेरी कोशिश होगी कि आज या कल में उस इंटरव्यू को अपने इस ब्लॉग पर भी लगा दूं। --यूसुफ किरमानी