पाकिस्तान में धर्म का अपहरण

एशिया में अगर किसी मुल्क के लोगों की धार्मिक आजादी (religious freedom)जबर्दस्त खतरे में पड़ गई है तो वह पाकिस्तान है। वहां के ब्लासफेमी कानून की आलोचना करने पर एक और राजनेता की जान ले ली गई। इस बार तालिबानी कट्टरपंथियों ने वहां के मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या कर दी, जबकि इसी मुद्दे पर पाकिस्तानी पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। सलमान की हत्या के बाद पाकिस्तानी पत्रकार बीना सरवर ने एनबीटी के साथ एक बातचीत में कहा था कि कट्टरपंथी इस कानून के खिलाफ उठ रही हर आवाज को दबाना चाहते हैं। इस कानून को लेकर जो बहस बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उठी थी, वह अब नए सिरे से शुरू हो गई है। मसलन, क्या वाकई कुरान में ऐसा कोई आदेश है कि मुहम्मद की निंदा करने वाले को मृत्युदंड दिया जाए?

सूर-ए-अजाब
कुरानशरीफ में ब्लासफेमी (blasphemy)को लेकर आई कुरान शरीफ की आयत सूर-ए-अजाब में कहा जा रहा है - ऐ मुहम्मद, जिसने अल्लाह और उसके संदेशवाहक की निंदा की, अल्लाह उसको इसी दुनिया में और बाद में भी सजा देगा। उसने उनकी बर्बादी के पूरे इंतजाम कर दिए हैं। अगर किसी ने कुरान का अध्ययन किया है तो उसे बखूबी मालूम होगा कि कुरान की जितनी भी आयतें हैं, उनके संदेश बहुत स्पष्ट हैं। कहीं कोई बीच का रास्ता नहीं अपनाया गया है। कुरान में इस बात का जिक्र है कि लोगों ने न सिर्फ अल्लाह के रसूल यानी पैगंबर (prophet) हजरत मुहम्मद साहब की निंदा की बल्कि जब उन्होंने इस्लाम (Islam) का संदेश फैलाना शुरू किया तो उनका मजाक भी उड़ाया। लेकिन कुरान की किसी आयत में या हदीस में इस बात का जिक्रनहीं मिलता कि अल्लाह ने पैगंबर की निंदा के लिए कत्ल का आदेश दिया।

बुराई का बदला
क्या मुसलमान पूरी दुनिया की कोर्स बुक्स में शामिल उस मशहूर घटना को भूल गए हैं? अरब की एक महिला मुहम्मद साहब से नफरत करती थी और वह जब उसके दरवाजे से निकलते तो उन पर कूड़ा फेंक देती थी। एक दिन जब मुहम्मद पर कूड़ा नहीं फेंका गया तो उन्हें हैरानी हुई और उन्होंने सीधे उस महिला के मकान पर दस्तक दी। वह बीमार थी। रसूल ने उसका हाल पूछा और उसके शीघ्र अच्छे होने के लिए अल्लाह से दुआ की। अगले दिन वह महिला मुहम्मद साहब का इंतजार कर रही थी और उनके वहां पहुंचने पर उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया। ऐसी सैकड़ों मिसालें हदीस में मौजूद हैं लेकिन ईशनिंदा करने वाले को कत्ल करने की मिसाल इसमें कहीं नहीं है।

ऊपर मैंने जिस आयत का जिक्र किया है , वह कुरान की मशहूर आयतों में से एक है। धर्मग्रंथ की मीमांसा ( तफसीर ) लिखने वाला दुनिया का बड़े से बड़ा विद्वान ( आलिम ) इस आयत की व्याख्या इस तरह नहीं करेगा कि इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष , किसी भी रूप में ईशनिंदा करने वालों के कत्ल की इजाजत दी गई है। अल्लाह ने अगर उनके लिए सजा - ए - मौत मुकर्रर की होती तो उसका जिक्त्र करने से अल्लाह या मुहम्मद को भला कौन रोक सकता था ?

एक आयत में और तमाम हदीसों में इस बात का जिक्त्र मिलता है कि उस समय इस्लाम और मुहम्मद के विरोधी सिर्फ इसलिए बैठकों का आयोजन करते थे , कि उनमें इनका मजाक उड़ाया जा सके। वे आपस में कहते थे - ' रा - इना ' ( यानी कृपया इसे दोहराएं ) । फिर वे रसूल के खिलाफ किसी जुमले को दोहराकर अपने मुंह से तरह - तरह की आवाजें निकाला करते थे। ऐसे लोगों के बारे में भी कुरान की यह आयत नहीं उतरी कि इन्हें कत्ल कर दिया जाए। आयत यह उतरी कि - हे ईमान रखने वालो , रा - इना बार - बार मत कहो , बल्कि इसकी जगह कहो ' उनजुरना ' । उन्हें ध्यानपूर्वक सुनो ताकि तुम्हें पैगंबर से हर बात को बार - बार दोहराने को न कहना पड़े। ( कुरान 2: 104) अरबी डिक्शनरी में ' रा - इना ' और ' उनजुरना ' के मायने एक ही हैं लेकिन ' रा - इना ' नेगेटिव है और ' उनजुरना ' पॉजिटिव।

एक और आयत ( कुरान 57-58) ईशनिंदा करने वालों के लिए उतरी , जिसका अर्थ है - ऐ ईमान रखने वालों , मक्का के उन लोगों को तुम अपना दोस्त मत बनाओ जो इस किताब ( कुरान ) पर यकीन नहीं रखते , जो तुम्हारे धर्म का सम्मान नहीं करते और मजाक उड़ाते हैं। अगर तुम वाकई ईमान रखते हो तो अल्लाह से डरो। जब तुम्हें नमाज के लिए बुलाया जाता है तो उनके ऐतराज पर ध्यान मत दो। उन लोगों का समूह ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि वह सच नहीं जानता है।

कुरान की एक और आयत से यह बात और साफ हो जाएगी - जिस बंदे को अल्लाह ने जिंदगी दी है , उसकी जान मत लो। क्योंकि तुम्हारे पास उसकी जान लेने का अधिकार नहीं है। क्या तुम्हें यह अधिकार दिया गया है ? समझदार बनो। ( कुरान 6:151) । यह आयत भी देखिए - अगर कोई एक जिंदगी बचाता है तो यह सभी लोगों की जान बचाने के बराबर है। ( कुरान 5:32) ।

बद्र की जंग
अगर किसी ने इस्लाम के इतिहास का अध्ययन किया है तो उसने बद्र की जंग के बारे में जरूर पढ़ा होगा। इस जंग में मुहम्मद के अनुयायियों को यहूदियों और ईसाइयों पर पहली बार जीत हासिल हुई थी। इस जंग में मुहम्मद साहब की ओर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हजरत अली को पैगंबर ने आदेश दिया कि वह इस बात का खास ख्याल रखें कि पराजय स्वीकार करने वालों को अपनी धार्मिक आजादी हासिल हो , उन पर किसी तरह का जुल्म न किया जाए। हार मानने वालों पर जजिया टैक्स लगाया गया लेकिन किसी भी हदीस या इतिहास की किताब में जिक्त्र नहीं मिलता कि मुहम्मद साहब या हजरत अली ने उनके कत्ल का आदेश दिया हो। हैरानी तो यह है कि पाकिस्तान के बड़े मौलाना - मौलवी इस मुद्दे पर चुप हैं। मस्जिद में नमाज पढ़ते लोगों और मुहर्रम के जुलूसों पर हमला करने वालों को ये मौलवी अपनी चुप्पी के जरिये आखिर किस जन्नत में भेजना चाहते हैं?

साभारः नवभारत टाइम्स, मार्च 10, 2011
courtesy: Nav Bharat Times March 10, 2011
also available at http://nbt.in

टिप्पणियाँ

shahroz ने कहा…
bhai aapne kaiyon ki aankhen khol di hain.
bahut hi samyik aur prbhavi lekh!

filhal main ranchi mein hun. dainik bhaskar me
Minoo Bhagia ने कहा…
kirmani ji har baar ki tarah gyanvardhak lekh likha hai aapne

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