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तू मुसलमान है तो क्यों है...

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तमाम वजहों से मुसलमान हर वक्त चर्चा में रहता है लेकिन इन दिनों कुछ ज्यादा चर्चा में है। कभी किसी ब्लॉग पर तो कभी किसी अखबार में। लगता है कि इस समय देश का सबसे जरूरी काम मुसलमानों पर चर्चा करना ही रह गया है। तो मैं भला पीछे क्यों रहूं। मैं अपने इस ब्लॉग पर इस चर्चा को जानबूझकर कर रहा हूं। पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों पर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान की टिप्पणी के बाद उनकी फिल्म माई नेम इज खान का शिवसेना के गुंडों ने जिस तरह से विरोध की कोशिश की, उसे इस देश के लोगों ने अपने ही ढंग से जवाब देकर उनकी कोशिश को तार-तार कर दिया। हालांकि शिवसेना के लोग यह जाने बिना विरोध कर रहे थे कि हो सकता है कि यह शाहरुख की अपनी फिल्म को सफल बनाने के लिए की गई चालाकी हो, क्योंकि मुझसे निजी बातचीत में तमाम मुस्लिम लोगों ने कहा कि यह सब शाहरुख की चालाकी थी, जिसमें शिवसेना पस्त हो गई। लेकिन मैं शाहरुख पर कोई शक किए बिना इस बात को आगे बढ़ाना चाहता हूं। इस देश में कट्टरवाद के पोषक एक खास किस्म के तालिबानियों (मैं यहां किसी धर्म विशेष का नाम नहीं ले रहा हूं, आप समझदार हैं) ने जो माहौल बना दिया है, उसमें आम मुसलमान क्

एक सावधान कवि की बात

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मुद्दे बहुत सारे हैं लेकिन बीच-बीच में हम लोगों को कविता और कवियों की बात भी कर लेनी चाहिए। जिन्हें कविताएं या गजलें पसंद नहीं है, उनकी संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लग जाते हैं। खैर, यह तो एक बात थी जो मुझे कहनी थी और मैंने कही। मैं खुद कोई बहुत बड़ा या छोटा-मोटा भी कवि नहीं हूं। हां, जो पसंद आता है, पढ़ता जरूर हूं। इसी सिलसिले में मैंने पिछले दिनों इस ब्लॉग पर राही मासूम रजा की कुछ कविताएं पोस्ट की थीं जो मुझे बेहद पसंद हैं। उसी कड़ी में कैफी आजमी और सीमा गुप्ता की कविताएं भी पोस्ट कीं। लेकिन इस बार मैं जिस कवि के बारे में आपसे बात कर रहा हूं उनका नाम मनमोहन है। उनके बारे में आपको साहित्यिक पत्रिकाओं में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिलेगा, खुद मैंने भी उनको बहुत ज्यादा नहीं पढ़ा है और पहली बार अपने ही एक साथी धीरेश सैनी से उनका नाम सुना। धीरेश की धुन बजी और उन्होंने मनमोहन की कई कविताएं मुझे सुनाईं। फिर एक दिन धीरेश के जरिए धीरेश के मोबाइल पर उनसे बात भी की। हिंदी साहित्य में जब खेमेबाजी और आरोपबाजी अपने चरम पर है, ऐसे मनमोहन जैसा कवि खुद को आत्मप्रचार से बचाए हुए है, हैरत होती है। हिंदी साह

Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब

मेरे ही साथी भाई, धीरेश सैनी ने अपने ब्लॉग पर एक गांधीवादी अनुपम मिश्र के सेक्युलरिज्म का भंडाफोड़ किया है। उस पर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं भी उन्हें मिली हैं। क्यों न आप लोग भी उस लेख को पढ़ें। ब्लॉग का लिंक मैं यहां दे रहा हूं। Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब