कविता : तुम अभी याद नहीं आओगे

तुम अभी याद नहीं आओगे

जब मुश्किल तुम पर आई है
जब तुम्हारे जाने की बारी आई है
तुम अभी याद नहीं आओगे

तुम तब याद आओगे
जब हम मुश्किल में आ जाएंगे
जब जीने के लाले पड़ जाएंगे

जब सेठ को याद आएगा घर बनवाना
जब पानी लीक करेगा नल पुराना

जब दीवारों पर सीलन आ जाएगी
जब फर्नीचर बनवाने की बारी आएगी

जब धूल मिट्टी बस जाएगी घर के कोने-कोने
कपड़े और बर्तन पर गंदगी हो जाएगी जमा होने
तुम तब याद आआगे

तुम तब याद आओगे
जब गाड़ी दौड़ते-दौड़ते ठहर जाएगी
जब मोटे टायरों पर कील धंस जाएगी

जब पैर थक जाएंगे चलते चलते
जब आंखें थक जाएंगी रिक्शा तकते

जब कोई बाइक से होम डिलिवरी नहीं करेगा
जब दुकान से भार खुद उठाना पड़ेगा

जब हरी सब्जी के लिए दिल तरस जाएगा
जब घर का गार्डन जंगली घास से भर जाएगा

तुम तब याद आओगे

अभी तो हमने 
अपनी आंखें, अपनी आत्मा क्वारंटाइन कर ली है
अभी तो मास्क ने हमारी बोली बंद कर दी है
अभी कैसे याद कर लें तुम्हें
अभी तो अमीरों की जान एक बीमारी ने जकड़ ली है

अभी तुम्हारे आंसू, तुम्हारा दर्द
तुम्हारा झोला, तुम्हारी दूरियां
सब बेकार है
तुम सेकंड क्लास सिटिजन, 
तुमसे बनता कहां समाचार है

तुम अभी याद नहीं आओगे
तुम तभी याद आओगे
जब हमें याद करना होगा
-मुस्तजाब किरमानी



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