भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...

...भूकंप....बाढ़, सूखा, महामारी...बीमारी, ग़रीबी मुल्कों की सरहदें नहीं देखतीं...यहाँ भी भूकंप-वहाँ भी भूकंप...

...देखो...अब भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...हम नहीं जानते...उसने न देखा हिंदुस्तान और न पाकिस्तान...

...नफ़रतों की सरहदें तो हम बनाते हैं...कभी लाहौर में ...तो कभी कासगंज में...

...क़सम से यहाँ दिल्ली के लुटियन ज़ोन में आपस में तमाम जानी दुश्मन मरदूदों को हमने अपनी आँखों से बगलगीर होते देखा है...

...वो आपस में तुम्हारी नफ़रतों की फ़सल काटकर ख़ुश होते हैं...तुम लोग अकेले भूकंप, बाढ़, ग़रीबी से लड़ते रहते हो...

...तुम ख़ूब लड़ो...इतना लड़ो की एक और कासगंज बन सके और लुटियन ज़ोन के मरदूद तुम्हारी नादानी पर हंस सकें एक विद्रूप हंसीं..

...भूकंप की परवाह किए बिना तुम आपस में इतनी नफ़रतें बोओ, ताकि वो काट सकें इस पर वोटों की फ़सल... और धान-गेहूँ की जगह उग सकें लाशें और कराहते लोग...








टिप्पणियाँ

Satish Saxena ने कहा…
महंगाई से त्रस्त,भूख बेहाल ग्राम,शमशान बना के,
ध्यान बटाने को मूर्खों का, राजा के सहयोगी आये !

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