आतंकवाद के बीज से आतंकवाद की फसल ही काटनी पड़ेगी

- स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर, सलाहकार संपादक, द इकोनॉमिक टाइम्स 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी आतंकवाद को नियंत्रित करने और इसे खत्म करने पर काफी कुछ कहते रहते हैं। लेकिन आतंकवाद की सही परिभाषा क्या है ? डिक्शनरी में इसकी परिभाषा बताई गई है – अपना राजनीतिक मकसद पूरा करने के लिए खासतौर पर नागरिकों के खिलाफ हिंसा और धमकी का गैरकानूनी इस्तेमाल।
इस परिभाषा के हिसाब से जो भीड़ बीफ ले जाने की आशंका में लोगों को पीट रही है और जान से मार रही है, वह लिन्चिंग मॉब (जानलेवा भीड़) दरअसल आतंकवादी ही हैं। कश्मीर में भी जो लोग इस तरह पुलिसवालों की हत्या कर रहे हैं वह भी वही हैं। जान लेने वाली यह सारी भीड़ अपने धार्मिक-राजनीतिक मकसदों के लिए नागरिकों के खिलाफ गैरकानूनी हिंसा का सहारा ले रही है। यह सभी लोग आतंकवादी की परिभाषा के सांचे में फिट होते हैं।


हालांकि बीजेपी में बहुत सारे लोग इससे सहमत नहीं होंगे। वह कहेंगे कि हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं और बीफ विरोधी हिंसा को समझने की जरूरत है। कश्मीर में हुर्रियत भी मारे गए पुलिसवालों की मौत पर घड़ियाली आंसू बहाएगी और कहेगी कि भारतीय सेना जिस तरह कश्मीर में लोगों का दमन कर रही है, इसे उस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। बचाव में दिए जा रहे ऐसे तर्क उसी तरह भोथरे हैं जैसे अलकायदा और आईएसआईएस के आतंकी भी हरकतों के लिए तर्क गढ़ते रहे हैं।
15 साल के जुनैद की हत्या का अपराध सिर्फ उसके मुस्लिम होने पर किया गया। लेकिन मोदी ने लंबी चुप्पी के बाद इसकी निंदा की। उनके कई मंत्रियों ने भी निंदा की। लेकिन एेसी लिन्च मॉब अचानक हवा में नहीं पैदा हुई, तीन साल के बीजेपी शासनकाल के दौरान सामाजिक-राजनीतिक माहौल को जिस तरह खाद पानी देकर सींचा गया यह उसी की देन हैं।
सांप्रदायिकता और अंध राष्ट्रवाद के खतरनाक तालमेल ने हालात को बदतर कर दिया है। इधर मोदी ने शांति की अपील की और उधर झारखंड में गौरक्षकों ने एक और मुस्लिम की हत्या कर दी। यह बताता है कि बोतल से बाहर निकले जिन्न को वापस बोतल में बंद करना कितना मुश्किल है।   
मुझे डर है कि अगर इसे जल्दी नहीं रोका गया तो कहीं हिंदू आतंक का मुस्लिम आतंक से आमना-सामना न हो जाए और पूरे देश में आग की लपटें दिखाई दें। अगर सरकार मुसलमानों की हिफाजत नहीं कर सकती तो इस बात का बहुत बड़ा खतरा है कि मुसलमान अपनी हिफाजत के लिए दस्ते न तैयार कर लें। इन हालात में हिंदू-मुस्लिम आतंक और बढ़ेगा और सरकार असहाय होकर सिर्फ तमाशा देखेगी।  
मोदी दुनिया को भारत की छवि एक ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब के रूप में बेचना चाहते हैं। लेकिन अगर भारत की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इंडस्ट्री लिन्च मॉब हो जाएगी तो यह नामुमकिन है। अर्थशास्त्री दानी रोड्रिक ने बताया है कि किसी भी देश की आर्थिक तरक्की उसके आंतरिक संघर्षों पर काबू पाकर ही हो सकती है। आजादी के बाद से ही भारत अपने आंतरिक संघर्षों को काफी हद तक काबू करता रहा है और इस वजह से बेहतर सामाजिक व आर्थिक नतीजे देश को मिले। लेकिन यह उपलब्धि अब खतरे में है।
 15 साल पहले यूएस के तत्कालीन राष्ट्रपति ने भारत को इस बात के लिए बधाई दी थी कि भारत में 150 मिलियन मुस्लिम होने के बावजूद कोई आतंकवादी नहीं है। हो सकता है कि उन्होंने बहुत बढ़ाचढ़ा कर यह बात कही हो लेकिन यह तारीफ भी किसी ने ऐसे ही नहीं कर दी थी। 2001 से जिस तरह से पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में आया, इसमें भारतीय मुसलमानों की छवि बेदाग रही है। तमाम राजनीतिक प्रयासों की वजह से यह संभव हुआ था और अल्पसंख्यकों ने भी माना कि भारत उनका भी है। लेकिन अफसोस है कि बढ़ते लिन्च मॉब ने अब उस युग के अंत होने का संकेत दे दिया है।
पूरे पश्चिम देशों में छोटे-छोटे मुस्लिम आतंकी गुटों ने भारी तबाही मचा रखी है। ये ग्रुप पैदा भी वहीं हुए हैं। उन्हें आईएसआईएस या किसी विदेशी एजेंसी से पैसे या मदद की दरकार नहीं है। इंटरनेट पर बम बनाने का तरीका और इसकी विशेषज्ञता मौजूद है। आतंकवाद इस्लाम की देन नहीं है। भारत की तरह पश्चिमी देशों में भारी तादाद में मुसलमान कानून को मानने वाले लोग ही है। लेकिन जहां मामूली मुस्लिम आबादी भी है वहां आतंकवादी भारी खतरा बने हुए हैं। इन सवालों पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।
भारत में मुस्लिम आबादी अब करीब 180 मिलियन है। मान लीजिए कि इस आबादी में से सिर्फ 0.01 फीसदी ही मुस्लिम आतंकवाद को अपना लें तो कल्पना कीजिए कितनी तबाही मच जाएगी। और अगर 0.01 फीसदी हिंदू यह मान लें कि 0.01 फीसदी मुसलमानों की हिंसा के लिए सारे मुसलमान जिम्मेदार हैं तो सोचिए कि भारत में सांप्रदायिक आतंकवाद कहां तक पहुंचेगा। ऐसे में अगर हिंदू-मुसलमानों की 99.99 फीसदी आबादी इस तरह के अपराधों से नफरत भी करे तो भी हालात को बिगड़ने से कोई रोक नहीं पाएगा। यह तभी संभव है जब सारे विजिलेंट ग्रुपों को सख्ती से रोक न दिया जाए।
दाउद इब्राहिम ने मुंबई बम ब्लास्ट ऐसे ही नहीं कर दिया था। दो बड़ी घटनाएं इसके लिए जिम्मेदार थीं। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद देशभर में बड़े पैमाने पर मुस्लिम विरोधी दंगे हुए। इसके बाद 1993 में मुंबई में शिवसेना की महाआरती के दौरान दंगे हुए। मुंबई में 13 स्थानों पर बम विस्फोट हुए, जिसमें शिवसेना का मुख्यालय भी था। संयोग से यह हिंसा और नहीं बढ़ी और लोगों का गुस्सा धीरे-धीरे शांत हो गया।
अगर अब हिंदू-मुस्लिम आतंक बढ़ता है तो उसे आसानी से रोक पाना मुश्किल होगा। मुझे डर है कि जो लोग हिंदू हिंसा का बीज बो रहे हैं वो बदले में मुस्लिम हिंसा की फसल काटेंगे। इसी तरह जो मुस्लिम हिंसा का बीज बो रहे हैं वो हिंदू हिंसा की फसल काटेंगे। यह अनवरत सिलसिला है जो फैलता चला जाएगा।
(मूल लेख अंग्रेजी में, अनुवाद - यूसुफ किरमानी)
मूल लेख द इकोनॉमिक टाइम्स पर उपलब्ध


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