शाहीनबाग का गणतंत्र...

गणतंत्र क्या है...

इसे बेहतर ढंग से दिल्ली के शाहीन बाग ने आज समझाया...

मजमा...कोई गणतंत्र नहीं है जो कभी राजपथ पर तो कभी लाल किले की प्राचीर के सामने लगाया जाता है...

मजमा...तमाम सुरक्षा घेरे में, तमाम सुरक्षाकर्मियों को सादे कपड़ों में बैठाकर नहीं लगाया जा सकता...

मजमा...जो शाहीन बाग में स्वतः स्फूर्त है...नेचुरल है...

मजमा...जो एक तानाशाह खास कपड़े वालों में देखता है...

मजमा ...जो कोई इवेंट मैनेजमेंट कंपनी नहीं लगा सकती...

मजमा...जो तानाशाह का न्यू यॉर्क में पैसे देकर कराया हाउडी इवेंट नहीं है...

मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी गीतकार का बयान नहीं है जो उसे किसी तानाशाह में फकीरी के रूप में दिखता है...

मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी हीरो का जुमला नहीं है जो तानाशाह के आम खाने के ढंग के रूप में देखता है...

मजमा...जो उस लंपट तड़ीपार सरगना का ख्वाब है जिसे वह अपने भक्तों में तलाशता है...
-यूसुफ़ किरमानी

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