कश्मीर डायरी/ इतिहास से सीखो


कश्मीर डायरी/ 

बहुत पुरानी कहानी नहीं है
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इराक़ में सद्दाम हुसैन की हुकूमत थी। सद्दाम इराक़ के जिस क़बीले या ग्रुप से था वह अल्पसंख्यक है। इसके बावजूद उसका बहुसंख्यक शिया मुसलमानों पर शासन था। वहाबी विचारधारा से प्रभावित होने की वजह से इराक़ की बहुसंख्यक शिया आबादी पर उसका ज़ुल्म-ओ-सितम सारी हदें पार कर गया था। बहुसंख्यक होने के बावजूद शिया सद्दाम का विरोध इसलिए नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें अहिंसा के बारे में चूँकि जन्म से ही शिक्षा मिलती है तो वे सद्दाम का हर ज़ुल्म सह रहे थे।

इसी दौरान अमेरिका ने सद्दाम को पड़ोस के शिया मुल्क ईरान पर हमले के लिए इस्तेमाल किया और अमेरिका की मदद से हमला कर दिया। एक साल तक लड़ाई चली। सद्दाम हार गया और पीछे हट गया। लेकिन इस बहाने अमेरिका इराक़ में जा घुसा। अमेरिका को इराक़ में जाकर यह समझ आया कि सद्दाम तो अल्पसंख्यक है, क्यों न यहाँ बहुसंख्यक शियों में से किसी को खड़ा करके उनकी कठपुतली सरकार बनाई जाए। अमेरिका ने इस नीति को लागू करना शुरू कर दिया। सद्दाम क़ैद कर लिया गया और इराक़ में बहुसंख्यक शिया हुकूमत क़ायम हो गई। 

यहीं पर अमेरिका से एक चूक हो गई। उसकी सारी रणनीति का उस वक़्त पलीता लग गया जब शिया हुकूमत बनते ही उसने ईरान से मदद लेनी, सलाह लेनी शुरू कर दी। नजफ़ में बैठे शिया रहबर हुकूमत को गाइड करने लगे। अब इराक़ में हर काम ईरान के सलाह मशविरे से होता है।

हमारे सामने बांग्लादेश का उदाहरण सामने है। पाकिस्तान का एक हिस्सा जो पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था, वहाँ के लोग पाकिस्तान के साथ रहने को तैयार नहीं थे। उनकी भाषा, संस्कृति पूरे पाकिस्तान से अलग थी। उन्होंने बग़ावत कर दी। इंदिरा गांधी की मदद से बांग्लादेश बन गया। इंदिरा को दुर्गा बना दिया गया लेकिन 1977 में जनता ने इंदिरा की कुछ ग़लतियों के लिए उखाड़ फेंका। आज इतिहास में इंदिरा गांधी का मूल्याँकन सिर्फ बांग्लादेश बनवाने के लिए नहीं करता।

इस छोटी सी ऐतिहासिक घटना का ज़िक्र मैंने दरअसल कश्मीर के संदर्भ में किया। कश्मीर में मेरा आना जाना रहा है। यह हक़ीक़त है कि वहाँ की बहुसंख्यक आबादी ने कभी भारत सरकार के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया। लेकिन वहाँ विधानसभा चुनाव होते रहने की वजह से सारी स्थितियाँ ढंकी छिपी थीं और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना हुआ था। लेकिन संविधान के जिस धागे से कश्मीर बँधा हुआ था उसे अब तोड़ दिया गया है।

आख़िर भारत सरकार वहाँ संगीनों के साये में कितने दिन हुकूमत करेगी। वहाँ के अवाम को साथ लिए बिना मोदी शाह किनका राज वहाँ स्थापित करा पाएँगे। 

मुग़लों ने 600 साल और अंग्रेज़ों ने 200 साल जाहिल व बेवक़ूफ़ बहुसंख्यक भारतीयों पर हुकूमत की लेकिन एक दिन दोनों को बोरिया बिस्तर बाँध कर जाना पड़ा। उनका वजूद सिर्फ ऐतिहासिक इमारतों के रूप में मौजूद है। कश्मीरियों ने अगर कुछ ठान लिया है तो बेशक आप वहाँ एक हज़ार साल फ़ौज के बल पर शासन कर लें आपको कश्मीर वहाँ के लोगों के हवाले करके आना पड़ेगा। अभी तक वहाँ की गतिविधियों में मुट्ठीभर आतंकी पाकिस्तान के इशारे पर हरकतें करते थे लेकिन अब ? क्या वहाँ की जनता की हमदर्दी उन्हें हासिल नहीं हो जाएगी। हालात ये है कि वहाँ की कोई भी राजनीतिक पार्टी और क्षेत्रीय दल अब भाजपा व कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने को तैयार नहीं होंगे।

देश में ऐसे दस राज्य हैं जिन्हें कश्मीर की तरह विशेष दर्जा मिला हुआ है। क्या उन राज्यों को अपने नियंत्रण में लेने की जुर्रत, हिमाक़त भारत सरकार कर सकती है ? लेकिन आपने कश्मीर में यह एक ही भूल और हिमाकत इसलिए की है कि वहाँ की बहुसंख्यक आबादी पर आपका़ शासन आपके चुनावी एजेंडे को मुकम्मल करता है।

भारत की जनता अभी जागी नहीं है, वरना उसमें किसी भी नागपुरी एजेंडे को उखाड़ने की ताक़त है। बेशक नागपुरी संतरों को यह ग़लतफ़हमी हो कि वह पूरे देश को नाज़ी विचारधारा में कंडीशन्ड कर चुके हैं लेकिन कही से कोई चिंगारी उड़ेगी और बेईमानी, छल से हासिल किए गए मक़सद को उड़ा देगी।


मोदी आज रात 8 बजे देश को संबंधित करने वाले हैं। इसे 8-8 के संयोग से भक्तों ने जोड़ दिया है। आप लोगों को याद होगा जब पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी यह कहकर की थी कि इससे आतंकवाद की कमर टूट जाएगी...देश की आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाएगी...युवकों को रोज़गार मिलेगा यानी हर बीमारी का इलाज नोटबंदी को बताया गया था। अब वही बातें फिर कश्मीर के संदर्भ में कही जा रही हैं। आज रात देखते हैं कि मोदी जी नया सब्ज़बाग़ क्या दिखाते हैं ? बहरहाल, उन्होंने कश्मीर में अपनी गर्दन फँसा ही दी है।



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