कहीं पछताना न पड़े



वैलंटाइंस डे पर जिस बेहूदगी और मॉरल पुलिसिंग को इस देश ने अपनी आंखों से देखा, सुना और पढ़ा, वह सचमुच शर्मनाक है। चंद लोगों ने भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर जो घटिया अभियान चलाया, यह देखकर अफसोस होता है कि वे और हम सभी आजाद भारत के नागरिक हैं।
आमतौर पर संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदार अब तक सिर्फ उत्तरी भारत में ही वैलंटाइंस डे का विरोध और शौर्य दिवस मनाया करते थे लेकिन इस बार शुरुआत दक्षिण भारत से हुई और वहां भी मुट्ठी भर लोग लड़के- लड़कियों से बदतमीजी करते नजर आए।
उज्जैन शहर में जो कुछ भी हुआ वह तो तमाम संघियों के लिए डूब मरने की बात है। आप लोगों में से लगभग सारे लोगों ने वह खबर पढ़ी होगी कि स्कूटर पर जा रहे भाई- बहन को बजरंगी सेना के गुंडों ने रोक लिया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। उनका स्कूटर क्षतिग्रस्त कर दिया। यह वही शहर है, जहां एक प्रोफेसर को सरेआम एक राजनीतिक दल के छात्र संगठन के नेताओं ने गला दबाकर मार डाला। ये लोग प्रोफेसर को ज्ञापन देने गए थे। यह छात्र संगठन अपने आप को सबसे अनुशासित संगठन बताता है लेकिन उसके नेताओं की करनी अभी उज्जैन शहर भूला नहीं है। उसी शहर में भाई-बहन के साथ हुई यह घटना यह बताती है कि ऐसे लोग जब सत्ता में आते हैं तो आम आदमी से किस तरह का बर्ताव करते हैं।
जिस भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार से इन तत्वों का जन्म हुआ है, उन लोगों ने तमाम किंतु-परंतु से इन घटनाओं पर घड़ियाली आंसू बहाए लेकिन यह कहना भी नहीं भूले कि किसी को भारतीय संस्कृति से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं है। इन लोगों से कोई यह नहीं पूछता कि भाई भारतीय संस्कृति के मॉडल कोड आफ कंडक्ट आप लोगों ने ही बनाए हैं ?




अब एकाध महीने बाद देश में आम चुनाव होना है। इस बार कहा जा रहा है कि बीजेपी के चांस अच्छे हैं और प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग को ज्यादा वेट नहीं करना पड़ेगा लेकिन जो पार्टी देश का शासन चलाने का सपना देख रही हो, उसकी सोच सांप्रदायिक होने के साथ-साथ संकीर्ण और घटिया मानसिकता की होगी, यह इस देश की जनता को देखना है कि वह दरअसल ऐसी पार्टियों से किस तरह के लोकतांत्रिक व्यवस्था की आपेक्षा रखती है। कहीं बाद में पछताना न पड़े।

टिप्पणियाँ

अक्षत विचार ने कहा…
कोई डंडे से और कोई अपने शब्दों से गरिया रहा है। सबकी ठेकेदारी ऐसे ही चल रही है।

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