हिजबुल्लाह की परेड से कई देश पानी-पानी

मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स लखनऊ में 20 नवंबर 2017 को प्रकाशित हो चुका है...हिंदीवाणी के पाठकों के लिए यहां पेश किया जा रहा है...-यूसुफ किरमानी





इसी हफ्ते सोमवार को सीरिया के अल कौसर शहर में हिजबुल्लाह ने अपने हथियारों की एक परेड निकाली। लेकिन इस परेड ने दुनिया की जानी-मनी शक्तियों को शर्मसार कर दिया। इस परेड में अमेरिकी और रूसी हथियार थे। मंगलवार को परेड के फोटो ट्वीट हुए तो दुनियाभऱ में हलचल मच गई। अमेरिकी हथियारों पर सभी की नजर पड़ी। इनमें यूएस के सबसे शक्तिशाली टैंक M113 की कई यूनिट शामिल थीं। 
अमेरिका रक्षा विभाग ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा कि हम इसकी जांच करने जा रहे हैं कि आखिर हिजबुल्लाह तक ये हथियार कैसे पहुंचे। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की प्रवक्ता एलिजाबेथ ट्रूडेयू ने कहा कि हिजबुल्लाह के पास M113 का पहुंचना हमारे लिए चिंता की बात है। एलिजाबेथ ने यह भी कहा कि हम बेरूत स्थित अपने दूतावास के संपर्क में हैं और उससे भी जांच में मदद ले रहे हैं। लेकिन अमेरिका के बाद जो देश चिंतित नजर आया वो इस्राइल था। लेबनान ने अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी।




इस्राइल क्यों चिंतित है
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अमेरिका ने अपने इस शक्तिशाली टैंक को सबसे पहले इस्राइल को 1988 में बेचा था। इस्राइल ने साउथ लेबनान के नाम से साउथ लेबनान आर्मी (SLA) बना रखी थी और ये टैंक उसके इस्तेमाल के लिए आए थे। 1999 में साउथ लेबनान पर कब्जे के लिए जब इस्राइल ने हमला किया तो इसी टैंक का इस्तेमाल किया था। यहां हिजबुल्लाह से उसका टकराव हुआ। बुरी तरह पराजित होने के बाद इस्राइल ने सन् 2000 में साउथ लेबनान से पीछे हटने की घोषणा कर दी। इस्राइल की चिंता यह है कि इन्हीं टैंकों को उसने एसएलए को इस्तेमाल के लिए दिया था तो वो हिजबुल्लाह के पास कैसे पहुंच गए। इस्राइल अपने स्तर पर भी इसकी जांच में जुट गया है। हिजबुल्लाह से इस्राइल का दूसरा युद्ध 2006 में हुआ। इस्राइल के मुताबिक इस युद्ध में न कोई हारा न जीता। लेकिन नुकसान बहुत हुआ। हिजबुल्लाह से उसकी हल्की-फुल्की झड़प अब भी चल रही है। इस्राइल यह मानता है कि जब भी उसे कभी फिर से लेबनान या ईरान से लड़ना पड़ा तो हिजबुल्लाह से उसका सामना फिर होगा। ऐसे में हिजबुल्लाह की मजबूती उसके लिए परेशानी का सबब है।

लेबनान भी परेशान
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परेड में अमेरिकी टैंकों को देखकर लेबनान भी परेशान हुआ। लेबनान ने फौरन खंडन जारी किया कि सहयोगी और दोस्ती होने के बावजूद हमने ये टैंक कभी भी हिजबुल्लाह को नहीं बेचे और न ही साउथ लेबनान में इस्राइल से जब्त हथियार कभी हिजबुल्लाह को सौंपे गए। न ही हमारे यहां से इसकी स्मगलिंग हुई।





तो आखिर असलियत क्या है
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ब्रिटेन के डिफेंस एक्सपर्ट चार्ल्स शूब्रिज का कहना है कि हिजबुल्लाह को अमेरिकी हथियार मिलने का विश्लेषण कई तरह से हो सकता है। उनके मुताबिक सीरिया में बशर अल असद की हुकूमत को गिराने के लिए अमेरिका ने सीरिया में उस रिबेल ग्रुप यानी अल कायदा (जो बाद में अल नुसरा फ्रंट भी बना) की पैसे और हथियार से पूरी मदद की। अमेरिका ने अपने कीमती हथियार अल कायदा को सौंप दिए। जो बाद में आईएसआईएस (दाइश) के हाथ भी लगे क्योंकि दाइश भी अल कायदा से अलग होकर बना था। सभी जानते हैं कि असद की मदद में ईरान और हिजबुल्लाह सामने आए। हिजबुल्लाह ने सीरिया पहुंचकर असद की भरोसेमंद सेना के साथ अल कायदा के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। आसमान से रूस की मदद मिलने के बावजूद जमीन की लड़ाई जीतना सीरिया में आसान नहीं था। हिजबुल्लाह को इसमें महारथ हासिल है। उसने न सिर्फ अल कायदा को धूल चटाई बल्कि दाइश को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। इस दौरान अलकायदा और दाइश के आतंकी बड़े पैमाने पर हथियार छोड़कर भागे। यही हथियार हिजबुल्लाह के हाथ लगे हैं। दूसरी संभावना ये है कि इस्राइल के पीछे हटने के बाद हो सकता है कि उसके समर्थक संगठन एसएलए ने ये हथियार बाजार में स्मगलरों को बेच दिए हों और उसे हिजबुल्लाह ने खरीद लिया हो।
चार्ल्स ने कहा कि अमेरिकन टैंकों की परेड कराकर हिजबुल्लाह ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। एक तो यह पता लग रहा है कि मिडिल ईस्ट में अमेरिका आतंकी संगठनों या उन देशों की सरकारों को चाहे जितना हथियार सप्लाई करे, जमीनी लड़ाई में वो हिजबुल्लाह सामना नहीं कर पाएगा। अभी इराक के मोसूल में दाइश के खिलाफ जो लड़ाई चल रही है, उसमें हश्द अल शब्बी को बड़ी कामयाबी मिली है। कहा जाता है कि हश्द अल शब्बी को भी हिजबुल्लाह ने ही ट्रेनिंग दी है। हश्द इराक सरकार के तहत काम करता है और इसे सिर्फ दाइश से लड़ने के लिए ही तैयार किया गया है।




क्या है M113 टैंक
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अमेरिका को अपने M113 टैंक पर बहुत नाज है। इसकी चेसिस इतनी मजबूत है कि इसे न्यूक्लियर मिसाइल कैरियर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका इसका इस्तेमाल 1960 से कर रहा है और जहां-जहां युद्ध होता है, यह दिखाई दे जाता है। वियतनाम वॉर में भी इसका इस्तेमाल हो चुका है। आरोप है कि सीरिया सरकार के खिलाफ इस्तेमाल के लिए वहां के आतंकी संगठनों को इसे दिया गया।

क्या है हिजबुल्लाह
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हिजबुल्लाह यूएन और अमेरिका के मुताबिक ईरान समर्थित एक आतंकवादी और राजनीतिक संगठन है लेकिन यह संगठन सीरिया में आईएस, अल नुसरा, अल कायदा व अन्य वहाबी आतंकवादियों के खिलाफ लड़ रहा है। इसकी स्थापना 1985 में हुई। इसके महासचिव हसन नसरल्लाह हैं, जो कई देशों में मुस्लिम युवकों के यूथ आइकन भी हैं। लेबनान में ईसाई राष्टट्रपति औन को सत्ता हाल ही में हिजबुल्लाह की मदद से मिली है। यानी हिजबुल्लाह वहां की सरकार में शामिल है। लेबनान और इस्राइल में कई बार संघर्ष हो चुका है। लेबनान का वजूद बचाने के लिए हिजबुल्लाह रक्षा कवच की तरह काम करता है। लेबनान खुद अपनी सेना से ज्यादा हिजबुल्लाह को ताकतवर मानता है और सहयोग लेता है। साल 2000 के युद्ध में इस्राइल को हिजबुल्लाह की वजह से लेबनान से हारना पड़ा। हिजबुल्लाह का शाब्दिक अर्थ है अल्लाह की पार्टी। इस संगठन को ईरान की पूरी मदद है। कहा जाता है कि इसे गुरिल्ला वॉर की ट्रेनिंग ईरानी आर्मी से मिलती है। मिडिल ईस्ट में चलने वाली जमीनी लड़ाई में गुरिल्ला वॉर की बहुत अहमियत है।



   

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