ठगों की सफलता की गढ़ी हुई कहानियाँ और मीडिया

भारतीय जनमानस को इस बात का इतना आदी बना दिया गया है कि जैसे ही फ़ोर्ब्स लिस्ट में किसी भारतीय का नाम आता है हम गर्व से चौड़े होने लगते हैं। अरे इतनी दौलत वाला अपना भारतीय है...तुरंत टीवी पर उस धनी भारतीय की कहानियाँ चलने लगती हैं छपने लगती हैं।...हमारा गर्व बल्लियों उछलने लगता है।

फ़रार नीरव मोदी का नाम भी फोर्ब्स इंडिया की 2016 में आई भारत के सबसे धनी लोगों की लिस्ट में था। उस वक़्त उसकी संपत्ति 1.74 बिलियन डॉलर (1.1 लाख करोड़ रुपये) बताई गई थी। इसी लिस्ट में नाम आने के बाद नीरव मोदी ब्रांड को ग्लोबल पहचान मिली थी।...तब किसी को पता नहीं था कि ये पीएनबी से चुराए गए या लूटे गए पैसे हैं जिनकी बदौलत एक ठग धनी लोगों की लिस्ट में शामिल हो गया।...टीवी पर...अख़बारों में इस ठग की ओढ़ी गई सफलता की कहानियाँ चलने लगी।...तब समस्त गुजराती और भारतीय गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। 

दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन में इस ठग के शोरूम के आगे से मेरे जैसे तमाम भारतीय गर्व से छाती चौड़ी किए हुए ऐसे हीरों को देखते हुए निकलते थे कि चलो ख़रीद तो नहीं सकते लेकिन भारतीय भाई की कम से कम ग्लोबल पहचान तो है। 

फ़ोर्ब्स में तमाम नाम आते रहते हैं। मुकेश अंबानी का नाम स्थायी तौर पर वहाँ रहता हा है। हम लोग नहीं जानते कि मुकेश पर या उनकी कंपनियों पर कितना बैंक लोन है। यह बात सिर्फ केंद्र सरकार और भारतीय सुप्रीम कोर्ट जानती है। कोर्ट जनता को बताना नहीं चाहती कि अंबानियों पर कितना बक़ाया है और वापसी की स्थिति कैसी है।...लेकिन भारतीय मीडिया ने अंबानियों और बाक़ी की सफलता की कहानियों का हमें इतना आदी बना दिया है कि हम लोग उसके आगे और कुछ सोच ही नहीं पा रहे हैं। आप सोचेंगे तो आप को नेगेटिव थिंकिंग यानी नकारात्मक सोच वाला घोषित कर दिया जाएगा। भारतीय कॉर्पोरेट कंपनियाँ आपका इंटरव्यू लेते वक़्त इस बात पर ख़ास ध्यान देती हैं कि आपकी सोच क्या है। आगे उस कंपनी में आपका करियर भी उसी सोच के इर्दगिर्द घुमाया जाता रहेगा।

इसमें किसी तब्दीली के आसार भी नहीं हैं। भारतीय मीडिया ऐसा ही रहेगा। हमें नीरव मोदी जैसों की रातोंरात अर्जित की गई फ़र्ज़ी सफलता की कहानियाँ टीवी चैनलों पर देखनी ही होंगी। हम सभी को फ़र्ज़ी सकारात्मक सोच वाली कहानियों के सहारे ज़िंदा रहने की कोशिश करनी होगी। हम महँगाई के आँकड़ों पर उफ़ तो कर सकते हैं लेकिन उससे ज़्यादा की प्रतिक्रिया आपको हैप्पीनेस के इंडेक्स से बाहर कर देगी। आप तमाम जानलेवा बीमारियों के साथ ज़िंदा रहिए लेकिन दवा के बढ़ते दाम पर आपकी प्रतिक्रिया आपको सकारात्मक सोच की छवि वाला बना देंगी। अभी जब पचास करोड़ कर्मचारियों के पीएफ रेट में कमी की गई तो किसी ने उफ़ तक नहीं किया। अगर किसी ने किया भी होगा तो यह ठीक ही रहा कि मीडिया की नज़र वहाँ नहीं पहुँची और वह लोग नकारात्मक छवि वाला होने से बच गए। 

अभी तक हम लोग यह मानते रहे हैं कि भारत में नेता, नौकरशाही का गठजोड़ सारे सिस्टम को नियंत्रित करता है लेकिन गठजोड़ की इस लिस्ट को बदलने की ज़रूरत है। इस गठजोड़ में मीडिया को भी शामिल किया जाना चाहिए और इन सब को दरअसल पूँजीपति तो नियंत्रित कर ही रहा है। पूँजीपति तय कर रहा है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी और प्रधानमंत्री कौन बनेगा। वह राजनीतिक स्लोगन तक तय कर रहा है। कैसे—- बहुत महँगे दामों पर विज्ञापन एजेंसियाँ अनुबंधित की जाती हैं। उनका पैसा पूँजीपति से मिले पैसे से चुकाया जाता है। वह विज्ञापन एजेंसी उस पार्टी का प्रचार अभियान तैयार करती है। वही विज्ञापन कंपनी स्लोगन भी तैयार करती है। पार्टी जीत कर आती है तो फिर पीएम मटीरियल का विज्ञापन शुरू हो जाता है। सबकुछ होने के बाद अगले ही साल उस विज्ञापन कंपनी के भारतीय प्रमुख को  पद्मश्री मिल जाती है। साफ़ है कि सब एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। लेकिन इन सभी के बीच अगर सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अगर कोई है तो वह नियंत्रित मीडिया है।



अब चूँकि सोशल मीडिया का दौर है तो सरकार विरोधी प्रचार का रूक पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन उसका इंतज़ाम रिलायंस जियो की मनोपली के ज़रिए कर दिया गया है। आने वाले वक़्त में कम से कम भारत में सारे सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म रिलायंस जियो के मोहताज होंगे। जियो का नेट डाउन है तो आप सोशल मीडिया की कोई साइट नहीं चला सकेंगे।  रिलायंस के हाथ में होगा कि वह किस सोशल मीडिया साइट को इंटरनेट के ज़रिए ब्लॉक करे या डाउन कर दे। ऐसी ही हरकत पिछले दिनों एयरटेल व फ़ेसबुक ने करने की कोशिश की थी। अब वही काम रिलायंस जियो करेगा और हम लोगों को हवा भी न लग पाएगी।

मैं आपको कोई सुझाव नहीं देने जा रहा कि आप टीवी न देखें या अख़बार न पढ़ें। लेकिन भारतीय जनमानस को यह तय करना होगा कि वह मीडिया के बनाए जाल में नीरव मोदी या मुकेश अंबानी की गढ़ी गई सफलता की कहानियों को कितना बर्दाश्त कर पाता है। आख़िर आपके बर्दाश्त की कोई तो सीमा होगी साहेब...

(लेख का अगला हिस्सा जल्द आएगा)

टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…
कोई कुछ भी करें, मेरा क्या जा रहा है, ऐसी सोच भरी हो दिमाग में, ऐसे ही किसे बनते रहेंगे, हम लूट खसोट कर भाग लेगें और हम हाथ मलते रह जायेगें ,................
जागरूक प्रस्तुति
हिन्दीवाणी ने कहा…
बहुत शुक्रिया कविता जी, इस बेबाक टिप्पणी के लिए...
HARSHVARDHAN ने कहा…
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ललिता पवार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हिन्दीवाणी ने कहा…
हर्षवर्धन जी, आपका सहयोग लगातार मिल रहा है। शुक्रिया।

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