क्या आप अनुभव सिन्हा की भीड़ के साथ हैं?

 Are you with Anubhav Sinha’s “Bheed” ?



-यूसुफ किरमानी 


दो सूचनाओं पर आप ग़ौर फ़रमा सकते हैं।



डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने एक फ़िल्म बनाई भीड़। यह लॉकडाउन के दौरान बिहार-यूपी के मज़दूरों के बड़े शहरों को छोड़कर अपने गाँव लौटने की कहानी है। 





इस फ़िल्म के ट्रेलर को बीती रात यानी गुरूवार की रात सोशल मीडिया (Social Media) और अन्य मंचों से हटवा दिया गया। इस फ़िल्म में पैसा लगाने वाले टी सीरीज़ भी इस मामले में पीछे हट गया।



इस फ़िल्म में प्रवासी मज़दूरों की (Migrant Labours) सच्ची कहानी है। इसमें कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराने वाले भगवा झूठ का  सच बयान किया गया है। इसमें सूटकेस पर सोते बच्चे, इसमें साइकल से पूरे परिवार को ढोते मज़दूर, इसमें भूखे प्रवासी मज़दूरों को रोककर मुस्लिम युवकों द्वारा उनके लिए पानी और खाने का इंतज़ाम करते जत्थे की कहानियाँ हैं। 



फ़िल्म का ट्रेलर यहाँ देखिए

चूँकि मैं एक पत्रकार हूँ तो इन घटनाओं का चश्मदीद भी हूँ। हम लोग इन तथ्यों को फ़ोटो, वीडियो के साथ बता चुके हैं लेकिन अनुभव सिन्हा के कहानी बताने का अंदाज निराला है। अनुभव सिन्हा का अनुभव एक-एक किरदार के साथ सामने आया है।




पता नहीं ये फ़िल्म रिलीज़ हो भी पाएगी या नहीं। अनुभव सिन्हा इससे पहले आर्टिकल 15 और मुल्क जैसी फ़िल्म बना चुके हैं।




मैं फ़िल्म पर अक्सर नहीं लिखता हूँ लेकिन कभी कभी अनुभव सिन्हा जैसों का पक्ष लेना पड़ता है।




राहुल गांधी के लंदन वाले भाषण में क्या था ? 



राहुल ने भारत की हक़ीक़त बताई थी।



उसमें यही तो था कि आज़ाद भारत में भीड़ जैसी फ़िल्म के ट्रेलर मात्र से कच्छा बनियान गिरोह डर जाता है। पठान जैसी फ़िल्म में एक खास रंग दिखाए जाने से दंगाइयों की आत्मा जाग उठती है। 



भीड़ का ट्रेलर हटते हुए हम देख रहे हैं और कच्छा बनियान गिरोह लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है। 



यह गिरोह बहुसंख्यकवाद की तानाशाही को ही सच मानने पर ज़ोर दे रहा है। 




बहुसंख्यक गुंडागर्दी में भीड़ जैसी फ़िल्म, अनुभव सिन्हा जैसे डायरेक्टर, राहुल गांधी जैसे नेता, शाहरुख़ खान जैसे अभिनेता का लोकतंत्र, उनका वजूद कोई मायने नहीं रखता। 




उसमें हमारी सीमा में कोई आया ही नहीं जैसे झूठ मायने रखते हैं। उसमें मेहुल चौकसी जैसे फ्राड मायने रखते हैं। जिन्हें कभी एक गुजराती मानवीय ने सरकारी कार्यक्रम में अपने मेहुल भाई कहा था। जिसमें किसी चौराहे पर खुद को जूते से पीटे जाने की बात कही थी।




दूसरी सूचना पर आते हैं। मीडिया में खबर फैलाई गई कि भारतीय महामानव को नोबेल का शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) देने पर विचार हो रहा है। यह खबर कच्छा बनियान गिरोह के आईटी सेल ने फैला दी। भारतीय चाटू मीडिया ने फ़ौरन उस सूचना को ग्रहण किया और फैला दिया।




कुछ ही देर में खंडन आ गया कि भारतीय महामानव को किसी भी तरह का नोबेल देने पर विचार दूर दूर तक नहीं हो रहा है। कच्छा बनियान गिरोह और उसका आईटी सेल अब बचाव के तर्क तलाश रहा है।



कच्छा बनियान गिरोह का यह पहला कांड नहीं है। इसी गिरोह के सदस्य किसी अग्निगोत्री ने अपनी फ़िल्म को ऑस्कर समारोह में भेजे जाने की घोषणा कर दी। तो यह कच्छा बनियान गिरोह न जाने कब से अफ़वाहों की दुकान चला रहा है। यह गिरोह एक देश में मूर्तियों को दूध पिलाने का राष्ट्रीय कारनामा तक कर चुका है। बहुसंख्यक आज भी उसे महान कारनामा मानता है।






टिप्पणियाँ

Dr. Sanjay Verma ने कहा…
बहुत सतर्क विवेचन है किरमानी जी, बधाई।

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