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आखिर ख्वाब का दर बंद क्यों है?

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मशहूर शायर शहरयार की यह रचना मुझे इतनी पसंद है कि मैं जब भी इसे पढ़ता हूं, बेहद इमोशनल हो जाता हूं। यहां मैं अपने ब्लॉग पर उस रचना को उन लोगों के लिए पेश करना चाहता हूं जिनकी नजरों से यह नहीं गुजरी है। शहरयार साहब की शायरी मौजूदा वक्त की हकीकत को बयान करती नजर आती है, आप अपने तरीके से इसके बारे में सोच सकते हैं। इस रचना का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि मौजूदा हालात में तमाम शायर और अदीब के लोगों को जो आवाज उठानी चाहिए, वह नहीं उठा रहे हैं। हिंदी और उर्दू में साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त है, इनमें से कोई रोमांटिक शायरी में डूबा हुआ है तो कोई इस कदर संवेदनशील हो गया है कि उसको आम आदमी के सरोकार नहीं दिखाई दे रहे हैं। वह अपनी मां, बहन और भाई में अपनी संवेदना के बिम्ब तलाश रहा है। कई लोग तरक्की पसंद होने का दंभ भर रहे हैं लेकिन बड़े मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत से ही फुरसत नहीं है। बहरहाल, शहरयार की कलम न रूकी है न रूकेगी...मुझे तो ऐसा ही लगता है। और हां, शहरयार की यह रचना मैं वाङमय पत्रिका से साभार सहित ले रहा हूं, जहां मूल रूप से इसका प्रकाशन हुआ है। देखिए वो क्या कह रहे हैं...

बोलो, अंकल सैम, पूंजीवाद जिंदाबाद या मुर्दाबाद

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एक कम्युनिस्ट देश (communist countries) के रूप में जब रूस टूट रहा था तो उस वक्त अति उत्साही लोगों ने लहगभग घोषणा कर दी थी कि पूंजीवादी देश (capitalist countries) ही लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं। अमेरिका को इस पूंजीवादी व्यवस्था (capitalism) का सबसे बड़ा रोल मॉडल बताया गया। रूस से टूटकर जो देश अलग हुए और उन्होंने कम्युनिज्म मॉडल को नहीं अपनाया, उन देशों ने कितनी तरक्की की या आगे बढ़े, इस पर कोई चर्चा नहीं की जाती। लेकिन अब अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ अमेरिका में ही आवाज उठने लगी है। वहां के प्रमुख अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इस सिलसिले में कई लेख प्रकाशित हुए जिसमें मौजूदा आर्थिक मंदी, वहां के बैंको के डूबने की वजह, इराक में जबरन दादागीरी के मद्देनजर पूंजीवादी व्यवस्था को जमकर कोसा गया है। इसके लिए जॉर्ज डबल्यू बुश की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इतना ही नहीं उसमें कहा गया है कि कहां तो हम रोल मॉडल बनने चले थे और कहां अब हमारा अपना तानाबाना ही बिखर रहा है। हमारी नीतियों की वजह से कुछ अन्य देश भी मंदी (recession) का शिकार हो रहे हैं। कल तक जो देश हमारे लिए एक आकर्षक बाजा

इस ब्लॉग पर ताजा खबरें भी

आप कुछ सोच रहे होंगे, हम जानते हैं। ब्लॉग पर ताजा खबरें (latest news) आखिर क्यों? मैं आपसे ही पूछना चाहता हूं क्यों नहीं? यह ठीक है कि ब्लॉग पर अपने विचार और यहां आने वाली टिप्पणियों का ही महत्व है तो बाकी ताम-झाम क्यों? दरअसल, मेरी कोशिश है कि आपका ब्लॉग हर नजरिए से परिपूर्ण हो, अगर कुछ पढ़ते-पढ़ते आपको ताजा खबरों की जरूरत महसूस हो तो कहीं और जाने की जरूरत नहीं है, ताजा खबरें वह भी live यहां हाजिर हैं। तमाम अंग्रेजी ब्लॉगों में इस तरह की कोशिश की गई है और उसका feedback भी बहुत बेहतर मिला है। इन खबरों को लेकर अपना कोई नजरिया (opinion)न बनाएं क्योंकि वह सिर्फ सूचना (information) भर हैं, जाहिर है कि इस तरह का डिजिटल मीडिया (digital media)अमेरिका (US) के ही साये में पल और बढ़ रहा है तो हो सकता है कि वह खबर आपके नजरिए से तालमेल न खाए। इसलिए उसे सूचना की ही नजर से देखें। उम्मीद है कि यह डिजिटल कोशिश पसंद आएगी। क्या करना हैः बस ब्लॉग के दाहिने तरफ देखिए, मेरे प्रोफाइल के ठीक नीचे तमाम विडियो दिखाई देंगे, किसी पर भी क्लिक करके आप अपनी मनपसंद खबर (या सूचना) जान सकते हैं।

...शुक्रिया...

आखिरकार काफी जांच-पड़ताल के बाद 10 अक्टूबर 2008 को blogspot.com ने मेरे ब्लॉग का ताला खोल दिया गया। मैं यही कह सकता हूं कि शुक्रिया। हालांकि उनका यह कदम एकदम फिजूल था, जिसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी है लेकिन माफ तो आप लोग ही करेंगे, जिन्हें इसके चलते असुविधा हुई। बहरहाल, सभी का शुक्रिया। तो, फिर एक बार जुटते हैं अपने काम में...

क्षमा चाहता हूं

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पता नहीं ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम (BLOGSPOT.COM) वालों को क्या लगा कि उन्होंने मेरे ब्लॉग को लॉक कर दिया है। इस दौरान कई लोग आए और यूं ही लौट गए, कुछ ने वहां संदेश पढ़ने के बाद ब्लॉग को explore किया। माजरा क्या है – ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम को लग रहा है कि इस ब्लॉग पर spaming करने के लिए लिंक दिए गए हैं, क्योंकि सारे लिंक एक ही साइट पर जा रहे थे। दरअसल, यह चिट्ठाजगत की वजह से हुआ, जिसके कई सारे लिंक मेंने यहां अलग-अलग वजहों से दिए थे लेकिन अब एक लिंक को छोड़कर बाकी सब हटा लिया है। ब्लॉग स्पॉट को भी इस बारे में सूचित किया गया है, अब देखना है कि भाई लोग कब ताला खोलते हैं जिससे आपको यहां आने में हो रही असुविधा खत्म हो। बहरहाल, मैं उन तमाम मित्रों का आभारी हूं जिन्होंने मुझे इसके लिए ईमेल किए और रजिया राज़ ने तो असुविधा के बाद भी टिप्पणी लिखी। कृपया सहयोग बनाए रखें। एक और बात – इस ब्लॉग पर अगर कोई कुछ लिखना चाहता है तो उसका स्वागत है। आप मुझे अपना लेख ईमेल के जरिए भेज सकते हैं। लेख के लिए कोई नीति तय नहीं की गई है लेकिन एक बात जो मैं साफ करना चाहूंगा कि कृपया सामाजिक सरोकार (social concerns)को अगर

बच्चे और दम तोड़ती संवेदनहीनता

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बच्चों को लेकर समाज संवेदनहीन (Emotionless)होता जा रहा है। बच्चे घर से निकलते हैं स्कूल जाने के लिए और बुरी संगत में पडक़र या तो नशा (Drug Addict) करने लगते हैं या फिर अपराधी गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं। शहरों में मां-बाप पैसा कमाने के चक्कर में बच्चों पर नजर नहीं रख पाते जबकि वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन समय नहीं है। दफ्तर से घर और घर से दफ्तर, बीच में कुछ देर के लिए टीवी पर थर्ड क्लास खबरों और प्रोग्राम से समय काटना, बस यही रोजमर्रा की जिंदगी हो गई है। पत्नी अगर वर्किंग नहीं है तो घर के तमाम काम के अलावा बच्चों को संभालना सिर्फ उसके अकेले की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों इस तरह की कुछ समस्याओं पर एक समाजशास्त्री (Sociologist) से बात होने लगी। उसका कहना था कि अगर आपकी लाइफ में आटा-दाल-चावल और नौकरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है तो भूल जाइए कि आप अपने बच्चे को किसी मुकाम तक पहुंचा सकेंगे। परिवार नामक संस्था को जिंदा रखना है तो बच्चे का ध्यान रखा जाना सभी की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। बच्चा स्कूल जाता है, वहां कभी उसके चेहरे को लेकर तो कभी उसके बाल को लेकर, कभी धर्म और भाषा को लेकर दूसरे बच्चे भद्

कंझावला के किसान

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राजधानी दिल्ली में एक गांव है जिसका नाम कंझावला है। यहां के किसनों की जमीन (Farmers Land) काफी पहले डीडीए ने अपनी विभिन्न योजनाओं के लिए Aquire कर ली थी। उस समय के मूल्य के हिसाब से किसानों को उसका मुआवजा भी दे दिया गया था। अब दिल्ली सरकार जब उसी जमीन पर कई योजनाएं लेकर आई और जमीन का रेट मौजूदा बाजार भाव से तय कर कई अरब रुपये खजाने में डाला लिए तो किसानों की नींद खुली और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। पहले तो ये जानिए कि दिल्ली के किसान (नाम के लिए ही सही) की स्थिति बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा के किसान जैसी नहीं है, जहां के किसान पर काफी कर्ज है और उसे मौत को गले लगाना पड़ता है। दो जून की रोटी का जुगाड़ वहां का किसान मुश्किल से कर पाता है और धन के अभाव में उसके फसल की पैदावार भी अच्छी नहीं होती है। दिल्ली के किसान तो आयकर देने की स्थिति में हैं, यह अलग बात है कि देते नहीं। आप दिल्ली के किसी भी गांव में चले जाइए, आपको जो ठाठ-बाट वहां दिखेगा, वैसा तो यूपी-बिहार से यहां आकर कई हजार कमाने वालों को भी नसीब नहीं है। सरकार से अपनी जमीन का मुआवजा लेने के बाद दिल्ली के किसान न