संदेश

चंदन का गुलिस्तां

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  अंग्रेजी का पत्रकार अगर हिंदी में कुछ लिखे तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरे मित्र चंदन शर्मा दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी अखबार Metro Now में विशेष संवाददाता हैं। तमाम विषयों पर उनकी कलम चलती रही है। कविता और गजल वह चुपचाप लिखकर खुद पढ़ लिया करते हैं और घर में रख लिया करते हैं। मेरे आग्रह पर बहुत शरमाते हुए उन्होंने यह रचना भेजी है। आप लोगों के लिए पेश कर रहा हूं। गुलिस्तां कहते हैं कभी एक गुलिस्तां था मेरे आशियां के पीछे हमें पता भी नहीं चला पतझड़ कब चुपचाप आ गया गुलिस्तां की बात छोड़िए वो ठूंठो पर भी यूं छा गया गुलिस्तां तो अब कहां हम तो कोंपलो तक के लिए तरस गए -चंदन शर्मा

बाजीगरों के खेल से होशियार रहिए

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संसद में तमाम बाजीगर फिर एकत्र हो गए हैं और हमारे-आपके जेब से टैक्स का जो पैसा जाता है, वह इन्हें भत्ते के रूप में मिलेगा। जाहिर है एक बार फिर इन सबका मुद्दा आतंकवाद ही होगा। मीडिया के हमले से बौखलाए इन बाजीगरों में इस बार गजब की एकजुटता दिखाई दे रही है। चाहे वह आतंकवाद को काबू करने के लिए किसी केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने का मामला हो या फिर एक सुर में किसी को शाबासी देने की बात हो। प्रधानमंत्री ने मुंबई पर हमले के लिए देश से माफी मांग ली है और विपक्ष के नेता व प्रधानमंत्री बनने के हसीन सपने में खोए लालकृष्ण आडवाणी ने सरकार द्वारा इस मुद्दे पर अब तक की गई कोशिशों पर संतोष का भाव भी लगे हाथ जता दिया है। आडवाणी ने केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने पर भी सहमति जता दी है। आडवाणी यह कहना भी नहीं भूले कि राजस्थान और दिल्ली में बीजेपी की हार का मतलब यह नहीं है कि हमारे आतंकवाद के मुद्दे को जनता का समर्थन हासिल नहीं है। तमाम बाजीगर नेता जनता का संदेश बहुत साफ समझ चुके हैं और उनकी इस एकजुटता का सबब जनता का संदेश ही है। यह हकीकत है कि मुंबई का हमला देश को एक कर गया है। इतनी उम्मीद बीजेपी और मुस्लिम कट्टर

बीजेपी के पास अब भी वक्त है, मत खेलों जज्बातों से

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पांच राज्यों के चुनाव नतीजे सभी को पता चल चुके हैं और अगले दो – चार दिनों में सभी जगह विश्लेषण के नाम पर तमाम तरह की चीड़फाड़ की जाएगी। इसलिए बहती गंगा में चलिए हम भी धो लेते हैं। हालांकि चुनाव तो पांच राज्यों में हुए हैं लेकिन मैं अपनी बात दिल्ली पर केंद्रित करना चाहूंगा। क्योंकि दिल्ली में बीजेपी ने प्रचार किया था कि किसी और राज्य में हमारी सरकार लौटे न लौटे लेकिन दिल्ली में हमारी सरकार बनने जा रही है और पूरे देश को दिल्ली की जनता ही एक संदेश दे देगी। इसके बाद मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ और जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाली कहावत सच होती नजर आई। अगले दिन बीजेपी ने अखबारों में बहुत उत्तेजक किस्म के विज्ञापन आतंकवाद के मुद्दे पर जारी किए। जिनकी भाषा आपत्तिजनक थी। चुनाव आयोग तक ने इसका नोटिस लिया था। मीडिया के ही एक बड़े वर्ग ने दिल्ली में कांग्रेस के अंत की कहानी बतौर श्रद्धांजलि लिख डाली। यहां तक कि जिस दिन मतदान हुआ, उसके लिए बताया गया कि वोटों का प्रतिशत बढ़ने का मतलब है कि बीजेपी अब और ज्यादा अंतर से जीत रही है। इस माउथ पब्लिसिटी का नतीजा यह निकला कि 7 दिसंबर तक कांग्रेस ख

ये क्या जगह है दोस्तो

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चारों तरफ माहौल जब खराब हो और हवा में तमाम बेचारगी की सदाएं गूंज रही हों तो लंबे-लंबे लेख लिखने का मन नहीं होता। चाहे मुंबई की घटना हो या फिर रोजमर्रा जिंदगी पर असर डालने वाली छोटी-छोटी बातें हों, कहीं से कुछ भी पुरसूकून खबरें नहीं आतीं। मुंबई की घटना ने तमाम लोगों के जेहन पर इस तरह असर डाला है कि सारे आलम में बेचैनी फैली हुई है। कुछ ऐसे ही लम्हों में गजल या कविता याद आती है। जिसकी संवेदनाएं कहीं गहरा असर डालती हैं। इसलिए इस बार अपनी बात ज्यादा कुछ न कहकर मैं आप लोगों के लिए के. के. बहल उर्फ केवल फरीदाबादी की एक संजीदा गजल पेश कर रहा हूं। शायद पसंद आए – ठहरने का यह मकाम नहीं भरे जहान में कोई शादकाम नहीं चले चलो कि ठहरने का यह मकाम नहीं यह दुनिया रैन बसेरा है हम मुसाफिर हैं किसी बसेरे में होता सदा कयाम नहीं किसी भी रंग में हम को भली नहीं लगती तुम्हारी याद में गुजरी हुई जो शाम नहीं तेरे फसाने का और मेरी इस कहानी का नहीं है कोई भी उनवां कोई भी नाम नहीं यह वक्त दारा ओ सरमद के कत्ल का है गवाह नकीबे जुल्म थे ये दीन के पैयाम नहीं भरी बहार है साकी है मय है मुतरिब है मगर यह क्या कि किसी हाथ में

शर्म मगर उनको नहीं आती

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आज तक इस पर कोई शोध नहीं हुआ कि दरअसल नेता नामक प्राणी की खाल कितनी मोटी होती है। अगर यह शोध कहीं हुआ हो तो मुझे जरूर बताएं - एक करोड़ का नकद इनाम मिलेगा। अब देखिए देश भर में इस मोटी खाल वाले के खिलाफ माहौल बन चुका है लेकिन किसी नेता को शर्म नहीं आ रही। कमबख्त सारे के सारे पार्टी लाइन भूलकर एक हो गए हैं और गजब का भाईचारा दिख रहा है। क्या भगवा, क्या कामरेड, क्या लोहियावादी और क्या दलितवादी एक जैसी कमेस्ट्री एक जैसा सुर। एक और खबर ने नेताओं की कलई खोल दी है और सारे के सारे पत्रकारों से नाराज हो गए हैं। वह खबर यह है कि एनएसजी के 1700 जवान वीआईपी ड्यूटी में 24 घंटे लगे हुए हैं। इन पर हमारे-आपकी जेब से जो पैसा टैक्स के रूप में जाता है, उसमें से 250 करोड़ रुपये इनकी सुरक्षा पर खर्च किए जा रहे हैं। इसमें अकेले प्रधानमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही नहीं बल्कि लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, मुरली मनोहर जोशी, एच.डी. देवगौड़ा, अमर सिंह जैसे नेता शामिल हैं। इसमें किसी कम्युनिस्ट नेता का नाम नहीं है। इसके अलावा बड़े नेताओं को पुलिस जो सिक्युरिटी कवर देती है , वह अलग है। एनएसजी के इन 17

लता मंगेशकर तो 300 बार रोईं, आप कितनी बार ?

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मुंबई पर हमले और निर्दोष लोगों के मारे जाने पर उन तीन दिनों में आवाज की मलिका लता मंगेशकर तीन सौ बार रोईं और उनको यह आघात उनकी आत्मा पर लगा। लता जी ने यह बात कहने के साथ ही यह भी कहा कि मुंबई को बचाने में शहीद हुए पुलिस वालों और एनएसजी कमांडो को वह शत-शत नमन करती हैं। पर, जिन लोगों ने उस घटना में मारे गए कुछ पुलिस वालों को शहीद मानने से इनकार कर दिया है और उनके खिलाफ यहां-वहां निंदा अभियान चला रखा है, उनसे मेरा सवाल है कि वह कितनी बार रोए? छी, लानत है उन सब पर जो मुंबई में एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हेमंत करकरे और अन्य पुलिस अफसरों की शहादत पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग तो इतने उत्तेजित हैं कि खुले आम यहां-वहां लिख रहे हैं कि इन लोगों की हत्या हुई है, इन्हें शहीद नहीं कहा जा सकता। जैसे शहादत का सर्टिफिकेट बांटने का काम भारत सरकार ने इन लोगों को ही दे दिया है। बतौर एटीएस चीफ हेमंत करकरे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाली बीजेपी के विवादित नेता और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी एक करोड़ रुपये लेकर हेमंत की विधवा को देने गए थे, शुक्र है उन्होंने इसे ठुकरा दिया। वरना उसके बाद तो बीजेपी वा

मुंबई हमले के लिए अमेरिका जिम्मेदार ?

सुनने में यह जुमला थोड़ा अटपटा लगेगा लेकिन यह जुमला मेरा नहीं है बल्कि अमेरिका में सबसे लोकप्रिय और भारतीय मूल के अध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा का है। दीपक चोपड़ा ने कल सीएनएन न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में यह बात कही है। उस इंटरव्यू का विडियो मैं इस ब्लॉग के पाठकों के लिए पेश कर रहा हूं। निवेदन यही है कि पूरा इंटरव्यू कृपया ध्यान से सुनें। अंग्रेजी में इस इंटरव्यू का मुख्य सार यह है कि जब से अमेरिका ने इराक सहित तमाम मुस्लिम देशों के खिलाफ आतंकवाद के नाम पर हमला बोला है तबसे इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। अमेरिका आतंकवाद को दो तरह से फलने फूलने दे रहा है – एक तो वह अप्रत्यक्ष रूप से तमाम आतंकवादी संगठनों की फंडिंग करता है। यह पैसा अमेरिकी डॉलर से पेट्रो डॉलर बनता है और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, इराक, फिलिस्तीन समेत कई देशों में पहुंचता है। दूसरे वह आतंकवाद फैलने से रोकने की आड़ में तमाम मुस्लिम देशों को जिस तरह युद्ध में धकेल दे रहा है, उससे भी आतंकवादियों की फसल तैयार हो रही है। दीपक चोपड़ा का कहना है कि पूरी दुनिया में मुसलमान कुल आबादी का 25 फीसदी हैं, जिस तरह अमेरिका के ने