मां, मुझे भी एक कहानी सुनाओ
क्या आप किसी ऐसे सरकारी अस्पताल को जानते हैं जहां दाखिल बीमार बच्चे को कोई कहानी सुनाने आता हो। आपका जवाब शायद नहीं में होगा। इसका मुझे यकीन है। क्योंकि कहानी सुनाने वाले सिर्फ महंगे या यूं कहें कि फाइव स्टार टाइप अस्पतालों (Five star hospitals) में जाते हैं। अपने देश यह चलन अभी हाल ही में शुरू हुआ है, विदेशों में पहले से है। बीमार बच्चों को अस्पताल में जाकर कहानी इसलिए सुनाई जाती है कि वे उस मानसिक स्थिति से उबर सकें जिसके वे शिकार हैं और उनके इर्द-गिर्द फैले अस्पताल के बोझिल वातावरण में वह थोड़ा सुकून महसूस कर सकें। बचपन में मां, दादी, नानी के जिम्मे यह काम होता था या फिर उनके जिम्मे जो बच्चों को पालती थीं जिन्हें धाय मां कहा गया है और मौजूदा वक्त में उन्हें आया कहा जाने लगा है। मौजूदा वक्त की आयाएं पता नहीं बच्चों को कहानी सुनाती हैं या नहीं लेकिन तमाम मांओं, दादियों और नानियों को यह जिम्मेदारी पूरी करते हम लोगों ने देखा है। लेकिन दौर न्यूक्लियर परिवारों (Nuclear families ) का है तो ऐसे में किसी के पास कहानी सुनाने की फुरसत नहीं है। आईटी युग (IT era) में जब कदम-कदम पर हर कोई प्रोफेश