सलमान रश्दी का कूड़ा और भालचंद्र निमाड़े
सलमान ऱश्दी की बौखलाहट समझ में आती है। तमाम तरह का कूड़ा लिखने के बाद भारत में जब उन्हें पहचान नहीं मिली तो वह मराठी लेखक भालचंद्र निमाड़े को गाली देने पर उतर आए। निमाड़े को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा के बाद रश्दी बौखला गए। किसी भी लेखक को दूसरे लेखक के काम का आकलन करने का अधिकार है। निमाड़े का आकलन है कि सलमान ऱश्दी और वी. एस. नॉयपाल जैसे लेखकों ने पश्चिमी देशों का प्रचार किया और उनका लेखन उस स्तर का नहीं है...इसमें क्या गलत है लेकिन इसके बदले अगर दूसरा लेखक पलटकर गाली देने लगे तो आप इसे क्या कहेंगे।...मैं साहित्यकार नहीं हूं लेकिन साहित्य की समझ जरूर रखता हूं। सलमान रश्दी या भारत में चेतन भगत सरीखे लेखक अंग्रेजी में जो चीजें परोस रहे हैं, उससे कहीं बेहतर भालचंद्र निमाड़े का लेखन है।...भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में रश्दी औऱ चेतन भगत जैसा कूड़ा करकट लिखने वालों से कहीं बेहतर उपन्यासकार मौजूद हैं। ...और तो और अरुंधति राय का लेखन रश्दी या चेतन भगत के स्तर से बहुत ऊंचा और बड़ा है। रश्दी औऱ नॉयपाल ने अपने लेखन में वह सब बेचा जो पश्चिमी देशों को गरीब देशों के बारे में जानना और सुनना प