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खुफिया एजेंसियों को मथुरा के आश्रम में हथियार क्यों नहीं दिखे...अदालत को गुलबर्ग सोसायटी में साजिश क्यों नहीं दिखती...

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-यूसुफ किरमानी दो घटनाएं... 1.मथुरा में सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे जयगुरुदेव के तथाकथित चेलों को हटाने के लिए फायरिंग होती है, जिसमें दो पुलिस अफसर शहीद हो जाते हैं। वहां से बड़े पैमाने पर हथियार और गोला-बारुद बरामद होता है। बीजेपी मामले की विशेष जांच की मांग करती है। 2. अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में अदालत का फैसला 14 साल बाद आता है, जिसमें अदालत कहती है कि इस घटना के पीछे कोई साजिश नहीं थी। अदालत 36 लोगों को बरी कर देती है और 24 को दोषी मानती है। गुलबर्ग सोसायटी में गोधरा दंगों के बाद 28 फरवरी 2002 को पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों को जिंदा जलाकर मार दिया जाता है।  दिल्ली से मथुरा बहुत दूर नहीं है। अगर आप किसी भी गाड़ी से चलेंगे तो ज्यादा से ज्यादा तीन घंटे में पहुंच जाएंगे। मथुरा में आश्रम-मंदिरों की भरमार है। जिनके मालिकाना हक को लेकर सैकड़ों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं। लेकिन सिर्फ दो साल पहले जयगुरुदेव के कुछ तथाकथित चेले निहायत ही वाहियात मांगों को लेकर आंदोलन छेड़ते हैं और जवाहरबाग जैसी जगह में सैकड़ों वर्गफुट जमीन पर कब्जा जमा लेते हैं। इनकी

खतरनाक ख्यालात....Dangerous Thoughts ...Must Read for Muslims...मुसलमान जरूर पढ़ें

उसके खतरनाक ख्याल ने मेरी नींद हराम कर दी है। अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने एक ट्रेनिंग कैंप लगाया, जिसके फोटो मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल हुए। जिसमें दिखाया गया है कि कुछ युवकों के हाथों में हथियार हैं और वे हथियार चलाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। इस फोटो के सामने आने के बाद फौरन स्वयंभू मुस्लिम परस्त नेता असाउद्दीन ओवैसी का बयान आया कि अगर मुसलमान भी इस तरह के ट्रेनिंग कैंप लगाएं तो क्या होगा... कुछ बेवकूफ, जाहिल और कुछ पढ़े-लिखे मुसलमान ओवैसी की जयजयकार करते हुए कूद पड़े और कहा, हां बताओ...अगर हम भी ऐसा करें तो... यह खतरनाक विचार है...खतरनाक ख्याल है...जिसे मुसलमानों को ओवैसी की राजनीति के साथ ही दफन कर देना चाहिए...हालांकि तमाम मुसलमान चिंतक मेरी इस सलाह की धज्जियां उड़ा देंगे औऱ उर्दू अखबारों में मेरे खिलाफ लिखकर पन्ने काले कर देंगे...लेकिन मुझे उनकी परवाह नहीं है। ...और जो लोग मुझे नहीं जानते हैं, वे भी रातोंरात मुझे संघ समर्थक या उनका एजेंट बताने में जुट जाएंगे। बहरहाल, सारा घटनाक्रम एक बहुत नाजुक मोड़ पर सामने आया है, इसलिए सभी को आगाह करना मेरा

मीडिया को बीजेपी की जीत कुछ ज्यादा ही बड़ी नजर आ रही है

आज 19 मई को आए पांच राज्यों के चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी को काफी फायदा हुआ है। असम में उसकी सरकार बन गई है। मीडिया ने कांग्रेस का मरसिया पढ़ दिया है। लेकिन मीडिया अपने खेल से बाज नहीं आ रहा है। उसे बीजेपी की जीत कुछ ज्यादा ही बड़ी नजर आ रही है। हम लोग बहुत जल्द पिछला चुनाव भूल जाते हैं।...बिहार में कुछ महीने पहले जो इतिहास बना था , उसे असम के शोर में दबाने की कोशिश हो रही है। ...मीडिया वाले उस शिद्दत से केरल में कम्युनिस्टों की वापसी का शोर नहीं मचा रहे हैं। जितनी शिद्दत से वो असम केंद्रित चुनाव विश्लेषण को पेश कर रहे हैं। ... ...लेकिन क्या वाकई इसे बीजेपी की ऐतिहासिक जीत करार दिया जाए। क्या वाकई जनता ने कांग्रेस को दफन कर दिया है। लेकिन अगर इन चुनाव नतीजों की गहराई में जाकर देखा जाए तो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कारणों से पब्लिक ने विभिन्न पार्टियों को चुना है। असम की बात पहले करते हैं। असम में लंबे अर्से से कांग्रेस की सरकार थी और तरुण गोगोई के पास कमान थी। लेकिन 10 सालों में कांग्रेस ने इस राज्य में ऐसा ठोस कुछ भी नहीं किया कि जनता उसे तीसरी बार भी मौका देती। अस