होली के बहाने...एक अधूरी ग़ज़ल

रंग कोई भी डाल दो, गुलाल कोई भी लगा दो
........................................................

दीवारों पर लिखी इबारत मिटाना आसान है,
दिलों पर लिखी इबारत मिटाता नादान है...

रंग कोई भी डाल दो, गुलाल कोई भी लगा दो,
ज़ख़्मों पर फिर मरहम लगाता नहीं शैतान है...y

राष्ट्रवाद को बेशक तिरंगे में लपेट दो,
क़ातिल को यूँ भुलाना क्या आसान है...

रहबर ही जब बन गये हों रहजन जिस मुल्क में,
बचे रहने का क्या अब कुछ इमकान है ??....

(मेरी एक अधूरी ग़ज़ल की कुछ लाइनें होली और साहेब के ताज़ा बयान पर...बहरहाल, हर आम व ख़ास को, दूर के, नज़दीक को होली बहुत बहुत मुबारक)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिन्दू धर्म और कैलासा

अतीक अहमद: बेवकूफ और मामूली गुंडा क्यों था

युद्ध में कविः जब मार्कर ही हथियार बन जाए