राष्ट्रवाद जब लानत बन जाए

इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड के बीच कल खेले गए वर्ल्ड कप फ़ाइनल से भारत के लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं। ...

क्या आपको दोनों देशों के क्रिकेट प्रेमियों की कोई उन्मादी तस्वीर दिखाई दी कि कोई जीत के लिए हवन करा रहा हो या मस्जिद में दुआ कर रहा है? क्या इंग्लैंड की जीत के बाद न्यूज़ीलैंड में किसी ने टीवी सेट तोड़ा, किसी ने खिलाड़ियों के फोटो जलाए?


इंग्लैंड के किसी शहर में वर्ल्ड की जीत के बाद किसी ने पटाखे छोड़े जाते हुए कोई तस्वीर देखी? न्यूज़ीलैंड में किसी ने क्रिकेट खिलाड़ियों की फोटो पर जूते मारते देखा? दोनों टीमों ने बेहतरीन खेल का मुज़ाहिरा किया- बस इतनी प्रतिक्रिया जताकर लोग रह गए।

दरअसल, एशिया के सिर्फ दो देशों भारत और पाकिस्तान की मीडिया और वहाँ के राजनीतिक दलों ने क्रिकेट को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया है। दोनों देशों की जाहिल जनता धर्म की अफ़ीम चाट चाट कर उन्माद की हद तक क्रिकेट से प्यार करने लगी है। देश में मैरी कॉम, पीटा उषा या हिमा दास का वह रूतबा नहीं है जो विराट कोहली या धोनी का है। इन तीनों महिला खिलाड़ियों की हैसियत पैसे के हिसाब से क्रिकेट के किसी मामूली खिलाड़ी से करिए। क्रिकेट वाला भारी पड़ेगा। 

दोनों ही देशों के लोग सट्टेबाज़ों द्वारा, अंडरवर्ल्ड डॉन द्वारा, नेताओं द्वारा इस खेल में लगाए जा रहे पैसे से पैसा कमाने की हक़ीक़त नहीं समझ पा रहे हैं।...क्योंकि धार्मिक और राष्ट्रीय उन्माद उन्हें कुछ और सोचने और समझने नहीं दे रहा है।

देश क्रिकेट के नाम पर एकजुट नज़र आता है...लेकिन बॉम्बे के पास बुलेट ट्रेन के लिए हज़ारों पेड़ काटे जा रहे हैं, उसे रोकने के नाम पर एकजुट नज़र नहीं आ रहा है। ...देश दसवीं क्लास तक सभी बच्चों को प्राइवेट या सरकारी स्कूलों में मुफ़्त शिक्षा की माँग के लिए कभी एकजुट होता नज़र नहीं आता...देश सभी पाँच सितारा अस्पतालों का अधिग्रहण कर उन्हें जनता के मुफ़्त इलाज के लिए खोल देने के नाम पर एकजुट होता नज़र नही आता...दिल्ली-हरियाणा-राजस्थान के अरावली पहाड़ में एक ठग योग गुरू द्वारा ज़मीन हथियाए जाने के खिलाफ एकजुट होता नज़र नहीं आता...

जब क्रिकेट नहीं हो रहा होता है तब हम दंगों में, मॉब लिंचिंग में, मामूली झगड़ों में अपने अपने धर्म और जाति के साथ एकजुट नज़र आते हैं।....

राष्ट्रवाद एक लानत बनता जा रहा है। ...एक धब्बा...



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