मुसलमानों के पास खोने को क्या है...

अयोध्या में राम मंदिर बनेगा या बाबरी मस्जिद को उसकी जगह वापस मिलने का संभावित फ़ैसला आने में अब कुछ घंटे बचे हैं।

सवाल यह है कि अगर फ़ैसला मंदिर के पक्ष में आया तो मुसलमान क्या करेंगे...

मुसलमानों को एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि इस सारे मामले में न तो उनका कुछ दाँव पर लगा है और न ही उनके पास कुछ खोने को है। अगर इस मामले में किसी का कुछ दाँव पर लगा है या कुछ खोने को है तो वह हैं दोनों धर्मों के उलेमा, राजनीतिक नेता, उनके दल, महंत, शंकराचार्य, अखाड़ों और बिज़नेसमैन बन चुके बाबा। 

जिस जगह पर विवाद है, वहाँ पाँच सौ साल से विवाद है। अयोध्या में पहने वाले मुसलमानों ने तो वहाँ जाकर एक बार भी नमाज़ पढ़ने की कोशिश नहीं की। फिर बाहरी मुसलमान आज़म खान और अौवैसी ने क्या वहाँ कभी जाकर नमाज़ पढ़ने की कोशिश नहीं की। मेरे वतन के मुसलमान अयोध्या और फ़ैज़ाबाद की मस्जिदों में शांति से नमाज़ पढ़ रहे हैं।

अगर फ़ैसला मस्जिद के पक्ष में भी आ जाता है तो भी अयोध्या में रहने वाले मुसलमान पुरानी जगह पर नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं जायेंगे। आज़म या ओवैसी रोज़ाना तो आने से रहे।

इसलिए फ़ैसला जो भी आये, वहाँ मंदिर बनने देना अक़्लमंदी होगी और आप यक़ीन मानिये कि अगर वहाँ मंदिर बना तो इसके नतीजे पूरे भारत के लिए बेहतर होंगे।....इसके बाद यह देश तय कर देगा कि ग़रीबी, बेकारी, भुखमरी, बर्बाद होती खेती के बजाय वह हिंदुत्व का एजेंडा चलने देगा या नहीं।

आपकी आबादी इस देश में महज़ 35 करोड़ है। आप तो जी खा लेंगे। चाहे छोटा काम करके या बड़ा काम करके। आप लोगों के पास हुनर की कमी नहीं है।....आप भी तो तमाशा देखिये कि इस देश का बहुसंख्यक तबक़ा आख़िर कब तक अपने मूल मुद्दों को दरकिनार करके सिर्फ मंदिर बनाकर तरक़्क़ी करना चाहता है।

अगर फ़ैसला आने के बाद बहुसंख्यक समुदाय ख़ुशियाँ मनाता है, आप सिर्फ सब्र रखें। किसी तरह की प्रतिक्रिया या उछलकूद की ज़रूरत नहीं है। आपके ग़ुस्सा करने या चीख़ने चिल्लाने से अदालत का फ़ैसला नहीं बदलेगा।

आपको समझना होगा कि कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा, भाजपा ने आपके साथ छल किया है। कुछ उलेमाओं और मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने आपको बहकाया है, आपके जज़्बात के साथ खेला है। यह लंबा विषय है। जिनकी कुछ घटनाओं का मैं भी चश्मदीद हूँ।

बहरहाल, धर्म एक निजी आस्था है। हर एक का मज़हब अच्छा है। ....अगर धर्म के नाम पर किसी देश ने तरक़्क़ी की हो या उस क़ौम ने तरक़्क़ी की हो तो उसका नाम बताइये।...किसी धर्म पुस्तक ने अगर मिसाइल, बम का फ़ॉर्म्युला अपनी किताब में लिखा है तो बताइये। 

पैगंबर साहब और उनके परिवार की हिदायतों पर आपने अमल किया होता तो इतना ज़लील और रुसवा आज नहीं होना पड़ता। आपसे दीन-दुनिया के बीच में बैलेंस बनाने को कहा गया था, अाप नेताओं के बहकावे में आकर सिर्फ दीन से चिपके रहे। अरे भाई दीन आपकी आस्था है, आप उसे इज़्ज़त का सवाल बना रहे हैं। जिसने दीन और किताब भेजी है, वह अपना ख़्याल खुद रखेगा। आपको अल्लाह की ज़रूरत है। उसे आपकी ताक़त से कोई युद्ध नहीं जीतना है। 

क्या आपकी नज़र से वह फोटो और वीडियो नहीं गुज़रा जिसमें मोदी और सऊदी अरब का प्रिंस बिज़नेस डील करते दिखाई दे रहे हैं। खुद को मक्का का कस्टोडियन बताने वाला आले सऊद मोदी के लिए रेड कारपेट बिछा रहा है, मंदिर के लिए ज़मीन दे रहा है।

ख़ैर, कैसा भी फ़ैसला आने पर अगर कहीं कोई उग्रवादी ग्रुप दंगे की शुरुआत करता है या किसी समुदाय को परेशान करता है तो उससे निपटने के लिए सरकार और सरकारी बंदोबस्त है। आपको किसी भी ट्रैप में आने की जरूरत नहीं है। किसी अफवाह को आगे न फैलाने पर डटे रहना है। एक मामूली चिंगारी सब कुछ खाक कर सकती है।...आपका ही घर उस आग में नहीं जलेगा।...

आमतौर पर किसी भी देश में सब कुछ संभालने और सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखने की ज्यादा जिम्मेदारी उस देश के बहुसंख्यक समुदाय की होती है लेकिन आप लोग भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते।

भाजपा, संघ, तमाम हिंदूवादी संगठनों, मीडिया और तटस्थ कॉरपोरेट ग्रुप्स के पास यह आखिरी मौका है कि आगे इस देश को क्या दिशा मिलने वाली है।

संविधान की कसम लेकर देश चलाने वाले बहुसंख्यक समाज के नेता अगर ‘प्रभावित करने वालों को’ अपने सत्ताबल और ताकत के दम पर प्रभावित कराना चाहते हैं तो समझिये उनके पास खोने को ज्यादा है।

मंदिर बन गया और मुसलमान चुप रहा तो समझिए आपने उन्हें हरा दिया। आपने एक बड़ी लड़ाई जीत ली। आपकी जीत इसी में है कि बिना किसी बाधा के वहां मंदिर बन जाए और आप उफ भी न करें। आपकी एक चुप्पी सारे निजाम पर भारी पड़ेगी। सारे धार्मिक उग्रवादियों पर भारी पड़ेगी।


आपके सब्र का इम्तेहान शुरू होता है अब...

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