रज़िया सुल्ताना के बहाने चंद बातें



इस बेटी का नाम है रज़िया सुल्ताना।

ये बिहार की पहली मुस्लिम महिला डीएसपी बनी हैं।

रज़िया बिहार के हथुआ गोपालगंज के रहने वाले असलम साहब की बेटी है। 

बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) में अच्छी रैंक लाने वाली इस बेटी को आप मुबारकबाद दे सकते हैं।

बिहार के कई और मुस्लिम बच्चे भी बीपीएससी में टॉप रैंक लाएं हैं।




मैं #बिहार का रहने वाला नहीं हूँ। 

मैं यूपी का रहने वाला हूँ। दिल्ली एनसीआर में रहता हूँ।

ऐसी खबरों का साझा करने का मक़सद ये बताना है कि जिस अब्दुल पंक्चर वाले की तस्वीर अब तक पेश की जाती रही हैं, ये बेटियाँ उन्हीं की हैं। 

देश की 35-40 करोड़ #मुस्लिम_आबादी में हालाँकि रज़िया सुस्ताना जैसी बेटियों का अनुपात अभी बहुत कम है। लेकिन इंशाअल्लाह जब हमारा मुआशरा इस तरफ़ सोचने लगा है तो बदलाव ज़रूर आएगा। 

राजनीति या किसी सरकार किसी सरकार के भरोसे हमारा मुआशरा नहीं बदलेगा। #राजनीति जब बदलाव के लिए कारगर बनती थी, तब बनती थी। अब वो हमारे लिए अछूत हो जानी चाहिए। 

मैं तो यह तक कह रहा हूँ कि अपनी बिरादरी के किसी भी नेता के वादे पर यक़ीन नहीं कीजिए। वह ख़ास मक़सद के लिए राजनीति में आए हैं। वो आपके लिए नहीं आए हैं। हाँ, राजनीतिक रूप से ज़रूर जागरूक रहें। 

माशाल्लाह से इतनी समझ आप लोगों में आ चुकी है कि किसे वोट देना है और किसे नहीं देना है। अगर किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता बन भी गए हैं तो अपने लोगों के आर्थिक - सामाजिक मुद्दे को प्रमुखता से पार्टी प्लैटफ़ॉर्म पर उठाएँ। #धार्मिक_मुद्दे क़तई न उठाएँ, उससे आपकी कमजोरी सामने आएगी और वो पार्टी फ़ायदा उठाएगी। आप लोगों पर #इमोशनल_अत्याचार करेगी। 

मौलवी साहब की ज़िम्मेदारी
...................................

मौलवी-मौलाना साहब लोगों पर ज़िम्मेदारी है कि वे अपने जुमे के खुतबे का डिसकोर्स बदलें। आप शिक्षा पर अपना डिसकोर्स फ़ोकस कीजिए। मैं आप लोगों से #इस्लाम की बुनियादी बातें बताने से मना नहीं कर रहा हूँ। ज़रूर बताएँ, बल्कि बहुत ज़रूरी है बताना। 

आप लोग #वैक्सीनेशन की अच्छाइयाँ बताएं। सिर्फ़ शराब ही नहीं दूसरे नशों के बारे में मुस्लिम युवकों को आगाह करें। स्मैक, चरस, गाँजा जैसी नशीली ड्रग्स से मुस्लिम युवकों को बचाना बहुत ज़रूरी है।

मैं अक्सर सभी फ़िरक़ों के मौलवी-मौलानाओं के जुमा वाले खुतबों की रेकॉर्डिंग सुनता हूँ। काफ़ी निराशा होती है। इस मामले में शिया आलिमों को कुछ खुतबे बहुत ही शानदार होते हैं। मरहूम मौलाना कल्बे सादिक़ साहब का डिसकोर्स इतना शानदार होता है कि आज भी बार-बार सुनने को मन होता है। अली मियाँ नदवी के खुतबे भी मैंने सुने, वो बहुत प्रैक्टिकल बातें करते थे। 

लिबास पर ज़रूर गौर करें
...............................

इसी तरह हम लोग अपने लिबास को लेकर बहुत ज़्यादा अड़ियल न हों। अभी जब हम लोग #फ़िलिस्तीन में इस्राइल की बदमाशी और अत्याचार देख रहे थे तो आपने क्या ख़ास बात नोट की? #इस्राइली बम धमाकों और गोलियों की बौछार के बीच वहाँ के युवक टी शर्ट जींस, पैंट शर्ट में नमाज़ पढ़ते नज़र आए। नमाज़ पढ़ाने वाले पेश इमाम के अलावा किसी की ड्रेस हमारे परम्परागत लिबासों की तरह नहीं थी।

हमें कुछ चीजों में बदलाव लाना होगा। हमें बाहर उसी तरह दिखना चाहिए, जैसा बाक़ी लोग दिखते हैं। मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि किसी मलऊन ने हमें कपड़ों से पहचानने की बात कभी कही थी। हर्गिज नहीं। अपने घरों में हमें वही लिबास पहनना है, जिसे हमने दुनिया को पहनना सिखाया है। 

लिबास का यहाँ संदर्भ बस इतना भर है कि आपका कोई भी लिबास स्कूल जैसा यूनिफ़ॉर्म न बन जाए। ऐसे यूनिफ़ॉर्म उन्हें मुबारक रहने दें जो सुबह सुबह किसी झंडे के नीचे अपना #राष्ट्र_प्रेम दर्शाते हैं और फिर दुकान पर जाकर मिलावटी घी, दाल, आटा, मसाले, दूध वग़ैरह बेचते हैं। जो किसानों का हक़ मारते हैं जो पैसा कमाने के लिए #मुल्क_से_फ़रेब करते हैं। 

नसीहतें कुछ ज़्यादा ही हो गईं। इसलिए अभी इतना ही।
#यूसुफकिरमानी
#YusufKirmani

Follow Me:

Twitter  :  @YusufYkirmani

Club House : @ journoyusufk





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिन्दू धर्म और कैलासा

युद्ध में कविः जब मार्कर ही हथियार बन जाए

ग़ज़लः हर मसजिद के नीचे तहख़ाना...