मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं...
मैं उन्माद हूं, मैं जल्लाद हूं मैं हिटलर की औलाद हूं मैं धार्मिक व्यभिचार हूं मैं एक चतुर परिवार हूं मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं मैं ट्रकों में पहलू खान खोजता हूं मैं घरों में सभी का फ्रिज देखता हूं मैं हर बिरयानी में बीफ सोचता हूं मैं एक खतरनाक अवतार हूं मैं नफरतों का अंबार हूं मैं दोधारी तलवार हूं मैं दंगों का पैरोकार हूं मैं आवारा पूंजीवाद का सरदार हूं मैं राजनीति का बदनुमा किरदार हूं मैं तमाम जुमलों का झंडाबरदार हूं मैं गरीब किसान नहीं, साहूकार हूं मुझसे यह हो न पाएगा, मुझसे वह न हो पाएगा और जो हो पाएगा, वह नागपुरी संतरे खा जाएगा फिर बदले में वह आम की गुठली दे जाएगा मेरे मन को जो सुन पाएगा, वह "यूसुफ" कहलाएगा ........कवि का बयान डिसक्लेमर के रूप में........ यह एक कविता है। लेकिन मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूं। इस कविता का संबंध किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष से नहीं है। हालांकि कविता राजनीतिक है। हम लोगों की जिंदगी अराजनीतिक हो भी कैसे सकती है। आखिर हम लोग मतदाता भी हैं। हम आधार कार्ड वाले लोगों के आस