संदेश

जब आपको मिल जाए फुरसत

जब आपको मिल जाए हिंदू-मुसलमान से फुरसत ...और मिल जाए किसी महिला की हंसी का कोई बेहूदा जवाब तो फर्जी राष्ट्रवाद पर भी कुछ सोचना जरूर और सोचना कि शहादत के जख्म कभी जुमलों से नहीं भरते जब आपको मिल जाए गाय-गोबर से फुरसत ...और मिल जाए पहलू खान की हत्या का कोई नया पहलू तो गरीबों की भुखमरी पर भी कुछ कहना जरूर और कहना कि जीडीपी ग्रोथ से किसी के पेट नहीं भरा करते जब आपको मिल जाए तमाम साजिशों से फुरसत ...और मिल जाए गांधी की हत्या का कोई अफसोसनाक बहाना तो गोडसे की संतानों पर भी कुछ बोलना जरूर और बोलना कि नागपुर के एजेंडे से कभी देश नहीं चला करते जब आपको मिल जाए आवारा पूंजीवाद को बढ़ाने से फुरसत ...और मिल जाए आदिवासियों की जमीन छीनने का भोंडा तर्क तो उन मेहनतकशों को भी कहीं तौलना जरूर और तौलना मजदूरों के फावड़ों को, जो कभी रुका नहीं करते जब आपको मिल जाए इंसाफ को बंधक बनाने से फुरसत ...और मिल जाए कुछ लोगों को घरों में जिंदा जला देने का उत्तर तो उन पुराने नरसंहारों का जिक्र करना जरूर और जिक्र करन

बस फेंकते रहिए....

हमें लंबी फेंकने की आदत है... कल जब हम वहां लंबी लंबी फेंक रहे थे तो कहीं सीमा पर जवान शहीद हो रहे थे... और ड्रैगन ज़ोरदार नगाड़ा बजा रहा था, वह बार बार बजाता है  लेकिन उस नगाड़े की आवाज़ मेरे फेंकने में खो जाती है हम फेंकते हैं इसलिए कि फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद में और इज़ाफ़ा हो और सिर्फ़ हमीं बेशर्मी से काट सकें चुनाव में इसकी फसल सच है, लोग नफ़रतों के संदेश तेज़ी से ग्रहण करते हैं यही है मेरी लंबी फेंकने की सफलता का राज भी अब तो छोटे छोटे प्यादे भी ख़ूब अच्छा फेंक लेते हैं आइए हम सब फेंकने को अपना जीवन दर्शन बनाएं   X               X                X                        X जब कभी हो रोज़गार की ज़रूरत तो बस फेंकने लगिए अस्पताल में न मिले दवा तो फेंकने की तावीज़ पहनिए एक छोटे प्यादे ने हवाई जहाज़ में हवाई चप्पल पर फेंका उससे छोटे ने ट्रेनों के फेलेक्सी किराये पर भी तो फेंका  झोले में गर न आ सकें गेहूं चावल तो धूल चाट लो  सब्ज़ी मंडी में महँगा लगे आलू तो धूल फांक लो

फिक्सर्स के देश में बिलबिलाते लोग

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देश को फिक्सर्स चला रहे हैं... वह कोई भी देश हो सकता है। अपना भी हो सकता है। पड़ोस हो सकता है। सात समंदर पार हो सकता है। मतलब कि वह कोई देश है जिसे सब लोग फ़िक्स करने में जुटे हैं।...जी हाँ, वही देश महाराज, जिस आप कहा करते हैं कि यह भी कोई देश है महाराज... ...तो यक़ीन मानिए यहां सब कुछ फ़िक्स है। यह देश फिक्सर्स के क़ब्ज़े में है।... क्रिकेट मैचों के फिक्सर्स के वक़ील उन्हें सरकार में डिफ़ेंड (बचाव) करते हैं। यही फिक्सर्स इंश्योरेंस लॉबी के गेम को बजट में फ़िक्स करते हैं...यही फिक्सर्स अदालत में खड़े होकर आवारा पूँजीवाद के झंडाबरदारों का केस फ़िक्स करते हैं...आप फँस चुके हैं। फिक्सर्स आपको भागने नहीं देगा।...आप कहाँ तक भागोगे।.... कहीं भी चले जाओ हर जगह छोटा मोटा फिक्सर आपको मिल जाएगा। रेलवे आरक्षण केंद्र पर जाओ फिक्सर हाज़िर मिलेगा। बच्चे का एडमिशन सरकारी स्कूल तक में कराना हो तो फिक्सर की सेवाएँ उपलब्ध हैं। हर मंत्री के दफ़्तर के बाहर तो फिक्सर बाक़ायदा तैयार किए जाते हैं। ...हद तो तब हो गई जब मैं अपने ताऊ जी का मृत्यु प्रमाणपत्र लेने नगर निगम गया तो वहाँ का क्लर्क बि

भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...

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...भूकंप....बाढ़, सूखा, महामारी...बीमारी, ग़रीबी मुल्कों की सरहदें नहीं देखतीं...यहाँ भी भूकंप-वहाँ भी भूकंप... ...देखो...अब भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...हम नहीं जानते...उसने न देखा हिंदुस्तान और न पाकिस्तान... ...नफ़रतों की सरहदें तो हम बनाते हैं...कभी लाहौर में ...तो कभी कासगंज में... ...क़सम से यहाँ दिल्ली के लुटियन ज़ोन में आपस में तमाम जानी दुश्मन मरदूदों को हमने अपनी आँखों से बगलगीर होते देखा है... ...वो आपस में तुम्हारी नफ़रतों की फ़सल काटकर ख़ुश होते हैं...तुम लोग अकेले भूकंप, बाढ़, ग़रीबी से लड़ते रहते हो... ...तुम ख़ूब लड़ो...इतना लड़ो की एक और कासगंज बन सके और लुटियन ज़ोन के मरदूद तुम्हारी नादानी पर हंस सकें एक विद्रूप हंसीं.. ...भूकंप की परवाह किए बिना तुम आपस में इतनी नफ़रतें बोओ, ताकि वो काट सकें इस पर वोटों की फ़सल... और धान-गेहूँ की जगह उग सकें लाशें और कराहते लोग...

बापू...तिरंगे की आड़ में

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...बापू तुम भूले नहीं होगे वह 30 जनवरी ...आज का ही दिन ...जब तुमको एक मानसिकता ने गोलियों से छलनी किया था... ...बापू तुम्हें रंज भी होगा...उस मानसिकता ने अब असंख्य गोडसे पैदा कर दिए हैं... ...बापू गोडसे की संतानें तुम्हारी अहिंसा से ज़्यादा ताक़तवर हो गई हैं...वह तिरंगा लेकर हर कृत्य कर रहे हैं... वो रोज़ाना उस मानसिकता का क़त्ल कर रहे जो तुम छोड़कर गए थे... ...बापू गोडसे की संतानों के लिए बेरोज़गारी, भुखमरी, ग़रीबी, नस्लीय हिंसा, अल्पसंख्यकों का नरसंहार, आदिवासियों का दमन, कॉरपोरेट की लूट, छुआछूत, दलित उत्पीड़न आदि कोई मुद्दे नहीं हैं।  ...और बापू क्या तुम राष्ट्रभक्त न थे। ...गोडसे की संतानें जो फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद लेकर आईं हैं क्या हम उसे मान लें...उनका हर मुद्दा इसी पर शुरू और इसी पर खत्म हो जाता है। ...बापू यह देश भूल गया कि अंग्रेज़ों को भगाने के बाद दूसरी लड़ाई अंग्रेज़ों के पिट्ठुओं से होनी थी...होनी थी उन असंख्य गोडसे से जो आज गली-गली एक अलग झंडा और डंडा लेकर घूम रहे हैं। ....बापू उन्होंने तिरंगे की आड़ ले रखी है। वह अपना हर जुर्म तिरंगे की आड़ में छिप

हज सब्सिडी खत्म होने का मुसलमान स्वागत करें, पर क्यों...

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नवभारत टाइम्स में आज 19 जनवरी 2018 को हज सब्सिडी पर प्रकाशित मेरा लेख, नीचे मूल लेख भी है ............................................................................................................................................ मेरा मूल लेख ................. केंद्र सरकार ने हज सब्सिडी यानी हज यात्रा के दौरान मिलने वाली सरकारी मदद को खत्म करने की घोषणा की है। कांग्रेस शासनकाल से ही कई उलेमा, मुस्लिम थिंकर्स, मुस्लिम संगठन मामूली सब्सिडी की इस मुफ्तखोरी को बंद करने की मांग कर रहे थे लेकिन केंद्र सरकार जबरन इसे दे रही थी। दरअसल, मुसलमानों पर यह थोपी गई सब्सिडी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय से लेकर मोदी राज तक मुसलमानों को खुश करने की नीयत के साथ थी लेकिन इसका असल मकसद बर्बादी की गर्त में डूब रही एयरलाइंस एयर इंडिया को बचाने की चाल भी थी। सरकार एक तीर से दो शिकार कर रही थी। सब्सिडी खत्म होने से अगर कुछ मुसलमान आहत महसूस कर रहे हैं तो उन्हें इसकी बजाय खुश हो जाना चाहिए। उन्हें यह भी कहने या ऐतराज करने की जरूरत नहीं है कि सरकार कैलाश मानसरोवर यात्रा प

मैं उस देश का वासी हूँ...

जी हाँ, मैं उस देश का वासी हूँ... जिस देश में इंसाफ़ सुप्रीम कोर्ट के कॉरिडोर में रौंदा जा रहा हो... जिस देश का चीफ़ जस्टिस तिरंगे पर बार बार फ़ैसला पलटता हो... जिस देश में मीडिया सत्ता की कदमबोसी कर रहा हो... जिस देश का मीडिया मसले जाने से पहले सरेंडर कर रहा हो... जिस देश में मुख्यमंत्री को अपने ही मुक़दमे वापस लेने की छूट हो... जिस देश में मुख्यमंत्री को जासूसी और नरसंहार  की छूट हो... जिस देश में सेना के जनरलों को राजनीतिक बयानों की छूट हो... जिस देश में सेना के जनरलों को राजनीति में आने की छूट हो... जिस देश में जंतरमंतर पर प्रदर्शन की आज़ादी छीन ली गई हो... जिस देश में किसी विकलांग का जनविरोध देशद्रोह होता हो ... जिस देश में भात न मिलने पर कोई बच्ची दम तोड़ देती हो... जिस देश में ग़रीब को बच्चे की लाश ख़ुद ढोना पड़ती हो... जिस देश में दलित और आदिवासी शहरी नक्सली कहलाते हों... जिस देश में किसान क़र्ज़ न चुकाने पर आत्महत्या करते हों... जिस देश में बैंकों और जनता का पैसा लेकर भागने की छूट हो... जिस देश में प्राकृतिक संसाधनों को लूटने