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एक कविता शहीदों के नाम...

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पुलवामा की बर्फीली सड़क और छद्म युद्ध

जब आप इस वक्त गहरी नींद में हैं, तब कश्मीर के पुलवामा में उन जवानों की लाशों के टुकड़े जमा किए जा रहे हैं, जिन्हें आतंकी हमले में मार दिया गया... मेरी नींद भी गायब है...मैं उन 42 नामों की सूची को पढ़ रहा हूं, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। शहीदों की सूची में दूसरा ही नाम निसार अहमद का है... थोड़ा तसल्ली सी हुई कि चलो, भक्तों और भगवा ब्रिगेड को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा...कि मरने वाले एक ही धर्म या बिरादरी के थे...या इस्लामिक आतंकवाद ने सिर्फ एक ही धर्म वालों को मार दिया... जैश-ए-मोहम्मद या हिजबुल मुजाहिदीन सिर्फ एक ही धर्म या देश के दुश्मन नहीं है। दरअसल, वह मुसलमान और कश्मीरियत के दुश्मन हैं। ...जानते हैं इस हमले से कश्मीरी अवाम की आवाज कमजोर कर दी गई है। उनके साथ अब लिबरल लोग खड़े होने से छिटक जाएंगे।... हर हिंसक हमला बड़े आंदोलन को कमजोर कर देता है। खैर, ऐसे बहुत सारे निसार अहमद आज उन 42 लोगों में हो सकते थे, लेकिन बेचारे जब भर्ती किए जाएंगे, तभी तो ढेर सारे निसार अहमद ऐसी कुर्बानी देने को मिलेंगे।...यह एक शिकवा है, निसार अहमदों को जब भर्ती नहीं क

अलीबाबा के जैक मा की बातें और अपना देश भारत...

यहां मैं आप लोगों के लिए एक विडियो पोस्ट कर रहा हूं जो पूरा देखने के बाद आपको सोचने को मजबूर कर देगा। हालांकि उसमें कही बातों को मैं अपनी बात के साथ आप लोगों के पढ़ने के लिए यहां दे रहा हूं। लेकिन हो सकता है कि अनुवाद में कुछ कमियां हों, इसलिए अगर आप पूरा विडियो देखेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। दुनिया की बड़ी कंपनियों में गिनी जाने वाली अलीबाबा (Alibaba) के मालिक जैक मा (Jack Ma) को हाल ही में हॉगकॉग यूनिवर्सिटी ने पीएचडी से नवाजा है। इस मौके पर जैक मा ने जो बातें कहीं हैं, उसका संबंध भारत से या किसी भी देश से जुड़ता है।... जैक मा कहते हैं... तमाम नाकामियों की वजह से मैं यही सोचता था कि कभी मुझे पीएचडी की डिग्री किसी यूनिवर्सिटी से मिलेगी। यह मेरा सपना था। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा। एक दिन ऐसा भी आता है जब कोई यूनिवर्सिटी आपको पीएचडी की डिग्री देने को बेताब होती है... एक अच्छा बिजनेसमैन सिर्फ पैसा कमाना ही नहीं जानता, बल्कि उस पैसे को अच्छी तरह खर्च करना भी जानता है। लेकिन हम सिर्फ पैसा कमाने के लिए जिंदा नहीं रहते।...अगर आपके पास 10 लाख डॉलर हैं, वो आपक

2019 में कौन जीतेगा - धर्म या किसान...

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 नवभारत टाइम्स (एनबीटी) में आज 26 दिसंबर 2018 को प्रकाशित मेरा लेख... आजकल 2019 का अजेंडा तय किया जा रहा है। हर चुनाव से पहले यह होता है। लेकिन इस बार एक बात नई है। इस बार अजेंडा ‘धर्म बनाम किसान’ हो गया है जबकि इससे पहले भारत में चुनाव गरीबी हटाओ, भ्रष्टाचार, आरक्षण, दलितों-अल्पसंख्यकों की कथित तुष्टिकरण नीति, पाकिस्तान और सीआईए से खतरे के नाम पर लड़ा जाता रहा है। किसानों की बात भी हर चुनाव में की जाती है लेकिन उनका जिक्र सारी पार्टियां सरसरी तौर पर करती रही हैं। इस बार परिदृश्य बदला हुआ है। केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष की कथित एकजुटता की तेज चर्चा के बावजूद अगले आम चुनाव का एक जमीनी अजेंडा भी अभी से बनने लगा है। समय की कमी 2014 में केंद्र में नई सरकार बनने के बाद देश भर के किसान संगठन दो साल तक हालात का आकलन करते रहे। लेकिन 2016 से वे बार-बार दिल्ली और मुंबई का दरवाजा खटखटा रहे हैं कि हमारी बात सुनो। 2016 में सबसे पहले तमिलनाडु के किसान जंतर मंतर पर आए। उसके बाद मध्य प्रदेश के किसान संगठन दिल्ली आए। किसानों की शक्ल से भी अपरिचित मुंबई ने पिछले डेढ़ वर्षों में थोड़े

इतिहासकार रामचंद्र गुहा को इस विवाद से क्या मिला...

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इस प्रसिद्ध इतिहासकार का मेरे दिल में बहुत सम्मान है। उनके विचारों का मैं आदर करता हूं। लेकिन बीफ खाने वाला उनका ट्वीट और फोटो निहायत गैरजरूरी था। क्योंकि आप क्या खाते हैं, इससे शेष भारत को क्या लेना देना...और एक बड़े वर्ग की भावनाएं इस पर आहत होती हैं तो उन्हें ऐसा करने से परहेज करना चाहिए था।  लेकिन संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों ने उन्हें जिस तरह जान से मारने की धमकी दे डाली, वह भी निंदनीय है। हद यह है कि रॉ (रिसर्च एनॉलिसिस विंग) के एक रिटायर्ड अधिकारी तक ने उन्हें धमकी दी। बुलंदशहर हिंसा में एक फौजी का नाम आने के बाद और अब गुहा को धमकी देने में रॉ के पूर्व अधिकारी का नाम आने के बाद इन सेवाओं में काम करने वालों को लेकर चिंता पैदा होना स्वाभाविक है। अगर इन सेवाओं में कार्यरत लोग धर्म, जाति के आधार पर इस तरह की घटनाओं में हिस्सा लेंगे तो भारतीय समाज के लिए चिंताजनक स्थिति है।  इतिहासकार गुहा ने शनिवार को अपने गोवा प्रवास का एक फोटो ट्विटर पर शेयर किया जिसमें वह बीफ (गाय का मांस) खाते नजर आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने लिखा कि भाजपा शासित राज्य में बीफ खाना जश्न मनाने जैस

यौन शुचिता के मिथकों को ध्वस्त करती है 'देह ही देश'....जेएनयू में परिचर्चा

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 ' देह ही देश ' को एक डायरी समझना भूल होगा। इसमें दो सामानांतर डायरियां हैं , पहली वह जिसमें पूर्वी यूरोप की स्त्रियों के साथ हुई ट्रेजडी दर्ज है और दूसरी में भारत है। यह वह भारत है जहाँ स्त्रियों के साथ   लगातार मोलस्ट्रेशन होता है और उसे दर्ज करने की कोई कार्रवाई नहीं होती। सुप्रसिद्ध पत्रकार और सी एस डी एस के भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक अभय कुमार दुबे ने   कहा कि हमारे देश में मोलस्ट्रेशन की   विकृतियों की भीषण अभियक्तियाँ निश्चय ही   चौंकाने और डराने वाली हैं , जिनकी तरफ हमारा ध्यान ' देह ही देश ' को पढ़ते हुए जाता है।   जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के   भारतीय भाषा केंद्र में " कड़ियाँ " संस्था द्वारा क्रोएशिया प्रवास पर आधारित प्रो . गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक " देह ही देश " पर आयोजित परिचर्चा में प्रो दुबे ने हिंसा और बलात्कार की घटनाओं पर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने को भीषण सामाजिक विकृति बत