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अहमदाबाद की दीवारें

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हथियार बेचने आ रहे हिरोशिमा के क़ातिलों की संतान के स्वागत में वो कौन लाखों लोग अहमदाबाद की सड़कों पर होंगे ? दीवार के इस पार या उस पार वाले नरोदा पाटिया वाले या गुलबर्गा वाले। डिटेंशन कैंप सरीखी बस्तियों वाले या खास तरह के कपड़े पहनने वाले।। वो जो भी होंगे पर किसान तो नहीं होंगे तो क्या वो फिर जियो के कामगार होंगे। नरसंहारक होंगे या दुष्प्रचारक होंगे तड़ीपार होंगे या फिर चिड़ीमार होंगे।। हो सकता है वो फ़क़ीरी सरदार हों दस लाख के सूट वाले असरदार हों। लुटते पिटते दलितों के रिश्तेदार हों या वो नागपुर से आए चौकीदार हों।। आओ ऐसी बाँटने वाली दीवारें गिरा दें हर कोने में शाहीनबाग आबाद करा दें। सब मक्कार तानाशाहों को झुका दें नागरिकता के मायने इन्हें भी बता दें।। -यूसुफ़ किरमानी Ahamadaabaad kee Deevaaren hathiyaar bechane aa rahe hiroshima ke qaatilon kee santaan ke svaagat mein vo kaun laakhon log ahamadaabaad kee sadakon par honge ?  deevaar ke is paar ya us paar vaale naroda paatiya vaale ya gulabarga vaale.  ditenshan kaimp sa

शाहीनबाग : डॉक्टर - मरीज संवाद

दिल्ली एनसीआर का एक शहर... मरीज़: डॉक्टर साहब, आपके नर्सिंग होम में भी कोरोना वायरस की दवा मिलने का पोस्टर लगा देखा अभी बाहर। डॉक्टर: हाँ, वो एक डॉक्टर हमारे यहाँ बैठती हैं। हमने उनको चैंबर किराये पर दे रखा है। लेकिन पता नहीं क्यों कोरोना के मरीज़ आ ही नहीं रहे हैं। मरीज: अरे, डॉक्टर साहब ऐसा न कहें। शुभ बोलिए। न आएँ तो अच्छा है। डॉक्टर: आएँगे कहाँ से...सारे कोरोना वायरस तो शाहीनबाग में बैठे हैं।...शाहीनबाग कोरोना वायरस है। मरीज़: डॉक्टर साहब, कोरोना वायरस तो मुझे नेता लगते हैं। यह पूरा देश नेताओं की शक्ल में कोरोना वायरस बनकर हमें खत्म कर रहा है। हमें बाँट रहा है। हमें तोड़ रहा है। हम टैक्स पेयर्स को जज़्बाती बनाकर नेता नाम का वायरस हमें ही मार रहा है। डॉक्टर: आप नहीं समझोगे। शाहीनबाग में बैठे कोरोना वायरस ज्यादा ख़तरनाक हैं। ...लाओ, पर्चा दो। क्या नाम है आपका...? एक अन्य मरीज़ का प्रवेश... दूसरा मरीज़: डॉक्टर साहब, मेरे किनारे वाले दाँत में बहुत दर्द हो रहा है। निकलवाने में कितना पैसा लगेगा? डॉक्टर: बिना देखे नहीं बता सकता। दाँत किस तरह का है। देखकर ही पैसे बताऊँग

शाहीनबाग़ पर प्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा से बातचीत

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आलोक धन्वा की कविता - फर्क

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मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

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यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का... अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है... शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया... मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के

शाहीनबाग का गणतंत्र...

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गणतंत्र क्या है... इसे बेहतर ढंग से दिल्ली के शाहीन बाग ने आज समझाया... मजमा...कोई गणतंत्र नहीं है जो कभी राजपथ पर तो कभी लाल किले की प्राचीर के सामने लगाया जाता है... मजमा...तमाम सुरक्षा घेरे में, तमाम सुरक्षाकर्मियों को सादे कपड़ों में बैठाकर नहीं लगाया जा सकता... मजमा...जो शाहीन बाग में स्वतः स्फूर्त है...नेचुरल है... मजमा...जो एक तानाशाह खास कपड़े वालों में देखता है... मजमा ...जो कोई इवेंट मैनेजमेंट कंपनी नहीं लगा सकती... मजमा...जो तानाशाह का न्यू यॉर्क में पैसे देकर कराया हाउडी इवेंट नहीं है... मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी गीतकार का बयान नहीं है जो उसे किसी तानाशाह में फकीरी के रूप में दिखता है... मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी हीरो का जुमला नहीं है जो तानाशाह के आम खाने के ढंग के रूप में देखता है... मजमा...जो उस लंपट तड़ीपार सरगना का ख्वाब है जिसे वह अपने भक्तों में तलाशता है... -यूसुफ़ किरमानी #AntiUrbanNaziDay #HappyRepublicDay #SaveConstitutionSaveIndia #ShaheenbaghRepublic #ShaheenBagh #RejectCAA #RejectNPR #RejectNR

शाहीनबाग में कहानी के किरदारों की तलाश

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कोई लेखक-लेखिका जब किसी जन आंदोलन में अपनी कहानियों और उपन्यासों के किरदारों को तलाशने पहुंच जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि शाहीन बाग का आंदोलन कहां से कहां तक पहुंच गया है। हिंदी की मशहूर उपन्यासकार औऱ कहानी लेखिका नासिरा शर्मा ऐसी ही एक रात शाहीन बाग में जा पहुंचीं और वहां बैठी महिलाओं और युवक-युवतियों में उन किरदारों को अलग-अलग रूप में पाया। वहां से लौटने के बाद उन्होंने कुछ किरदारों को कलमबंद भी किया। नासिरा शर्मा के उस रात शाहीन बाग पहुंचने के फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए थे। नासिरा वही लेखिका हैं जो ईरान में इस्लामिक क्रांति के दौरान वहां जा पहुंची थीं। वहां उस क्रांति के जनक आयतुल्लाह खुमैनी ने किसी महिला पत्रकार और लेखिका को पहला इंटरव्यू दिया था, जिसे उस समय (1982) भारत की नामी साहित्यिक पत्रिका सारिका ने प्रकाशित किया था। नासिरा शर्मा ने जेएनयू से पढ़ाई की है और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाया भी है। यहां पेश है उनका लेख जो एक महिला लेखक की नजर से इस आंदोलन को समझने की कोशिश भी है... मेरी दुनिया मेरे लोग... शाहीनबाग की वह रात मेरे लिए बोलने की नहीं, महसूस