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महिला दिवस की बधाई देने वालों के किरदार तो देखें

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  आज महिला दिवस की बधाई वे लोग भी दे रहे हैं जिनकी अवधारणा में - वीर भोग्या वसुंधरा - शामिल है। इस अवधारणा के तमाम क्रूरतम इंटरपेटेशन (मीमांसा) आप लोगों ने पढ़े होंगे। चलिए, हम वीर भोग्या वसुंधऱा की अवधारणा पर बहस नहीं करते। हम महिलाओं की आजादी पर बात करते हैं। वीर भोग्या वसुंधरा वाले वे लोग हैं जिन्होंने गढ़ी गई छवियों वाली महिलाओं के अपने सनातनी कुनबे से बाहर निकल कर कभी उन महिलाओं की जीवनगाथा का अध्ययन नहीं किया, जिन्होंने वास्तविक क्रांतियां कीं या समाज को नई दिशा दी। भाजपा-आरएसएस ने जो नैरेटिव सेट कर दिया, बस उन्हीं महिलाओं के गुणगान से सनातनी पीढ़ी निहालोनिहाल है। इन सनातनियों के मुंह से कभी सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख का नाम नहीं निकलता। इनका इतिहास लेखन इन दो महिलाओं पर मौन है। इनके अनुषांगिक (फ्रंटल) संगठनों के नाम पौराणिक महिलाओं के नाम पर हैं, इतिहास में जीवित किरदारों से एक भी संगठन नाम नहीं है। सुंदर लाल बहुगुणा न बताते तो हम लोग जान ही नहीं पाते कि उत्तराखंड में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए क्या कुर्बानियां दीं। इन्हें ग्रे

मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त, जैसे उसे कोई सरोकार ही न हो

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उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ग्लेशियर फट गया। उत्तराखंड वालों को ही फ़िक्र नहीं। वहाँ की भाजपा सरकार को चिन्ता नहीं। सरकार और उत्तराखंड की जनता अयोध्या में मंदिर के लिए चंदा जमा करने में जुटी है। उसे ग्लेशियर से क्या मतलब?  पर्यावरण की चिंता करने वाली ग्रेटा थनबर्ग का मजाक उड़ाने से उत्तराखंड वाले भी नहीं चूके थे। ... बाकी भारत के लोगों का सरोकार भी अब पर्यावरण या ऐसे तमाम मुद्दों से कहाँ रहा।  जैसे इन्हें देखिए।... मुसलमानों, बहुजनों और ओबीसी को उन पर मंडरा रहे ख़तरे की चिन्ता ही नहीं है।  भाजपा-आरएसएस ने बहुजनों और ओबीसी आरक्षण को बहुत होशियारी से ठिकाने लगा दिया है। फिर भी ओबीसी, दलित भक्ति में लीन हैं... लेकिन मुसलमान भी कम लापरवाह नहीं हैं। मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त है। ख़ैर...हमारा मुद्दा आरक्षण नहीं है। कल यानी 6 फ़रवरी 2021 को किसानों ने चक्का जाम किया था।  चक्का जाम की ऐसी ही अपील शाहीनबाग़ आंदोलन के दौरान छात्र नेता और जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर शारजील इमाम ने पिछले साल भी की थी। लेकिन हुकूमत ने शारजील को देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया। जबकि उसने साफ़ साफ़ कहा था कि बिना

इस फ़ज़ीहत का ज़िम्मेदार कौन...क्या नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार ?

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किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इतनी फ़ज़ीहत कभी नहीं हुई, वह भी मोदी के कुछ सलाहकारों   के बचकानेपन की वजह से। फ़ज़ीहत का सिलसिला अभी थमा नहीं है। भारत सरकार ने जवाब में कुछ नामी क्रिकेट खिलाड़ियों और बॉलिवुड के फ़िल्मी लोगों को उतारा लेकिन उसमें भी सरकारी रणनीति मात खा गई। हैरानी होती है कि मोदी के वो कौन से रणनीतिकार हैं जो रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग, मीना हैरिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सलाह दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर रिहाना  (Rihanna)  ने मंगलवार को किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था। लेकिन बीजेपी आईटी सेल ने अपने तुरुप के इक्के विवादास्पद बॉलिवुड एक्ट्रेस  कंगना   रानौत को रिहाना के खिलाफ ट्वीट करवाकर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच दे दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  किसान आंदोलन के समर्थन में कई हस्तियों ने ट्वीट किए।  रिहाना के समर्थन के जवाब में कंगना ने किसानों को आतंकवादी बताया और कहा कि वे किसान नहीं हैं, वे भारत को बांटना चाहते हैं। कंगना ने यह तक कह डाला कि इसका फायदा उठाकर चीन भारत पर कब्जा कर लेगा। कंगना के इस बयान पर पत्रकार अर्णब गोस्व

बहुत डरावना और उन्मादी है भारत का बहुसंख्यकवाद : यूसुफ किरमानी

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  भारत में अभिव्यक्ति की आजादी बहुत जल्द बीते हुए दिनों की बातें हो जाएंगी। भारत में दो चीजों के मायने बदल गए हैं। अभिव्यक्ति की आजादी कट्टरपंथियों की आजादी से तय हो रही है और प्रेस यानी मीडिया की आजादी सरकारी मीडिया की हदों से तय की जा रही है। लेकिन दोनों की आजादी को नियंत्रित करने वाली ताकत एक है, जिस पर हमारा ध्यान जाता ही नहीं है। भारत बहुसंख्यकवाद के दंभ की गिरफ्त में है। सरकारी संरक्षण में पला-बढ़ा बहुसंख्यकवाद भारत को उस दौर में ले जा रहा है, जहां से बहुत जल्द वापसी की उम्मीद क्षीण है। मान लीजिए कल को सत्ता परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन हो जाए तो भी बहुसंख्यकवाद ने जो फर्जी गौरव हासिल कर लिया है, उसका मिट पाना जरा मुश्किल है। क्योंकि सत्ता परिवर्तन के बाद जो राजनीतिक दल सत्ता संभालेगा, वह भी कमोबेश उसी बहुसंख्यकवाद को संरक्षित करने वाली पार्टी का प्रतिरूप है।       देश में 'तांडव' के नाम पर बहुसंख्यकवाद कृत्रिम तांडव कर रहा है और उसने मध्य प्रदेश में एक कॉमेडियन को बेवजह जेल में बंद करा दिया है। तांडव के नाम पर तांडव करने वाले और कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी को जेल में बं

किसान नहीं, हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने की राजनीति

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-यूसुफ़ किरमानी किसान आंदोलन की वजह से आम जनता में अपने हिन्दू वोटबैंक को बिखरने से रोकने के लिए भाजपा और आरएसएस अपने उसी पुराने नुस्खे पर लौटते दिखाई दे रहे हैं। यूपी-एमपी की प्रयोगशाला में इस पर दिन-रात काम चल रहा है। यूपी में चल रहे घटनाक्रमों पर आपकी भी नजर होगी। वहां एक तीर से कई शिकार किए जा रहे हैं।   बुलंदशहर के शिकारपुर कस्बे में गुरुवार को युवकों की एक बाइक रैली निकाली गई। रैली के दौरान उत्तेजक नारे लगाते हुए बाइक सवार युवक मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरे। मुस्लिम इलाके से इसकी प्रतिक्रिया नहीं आई। यूपी पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। हालांकि इस बाइक रैली का वीडियो वायरल है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने को यह रैली निकाली गई थी।  ऐसी ही बाइक रैली पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर और कई अन्य स्थानों पर निकाली गई और मस्जिदों के आगे इस रैली को रोककर उत्तेजक नारेबाजी की गई। मस्जिदों पर जबरन भगवा झंडा लगा दिया गया। टीवी चैनलों ने इस खबर को गायब कर दिया। सिर्फ कुछ अखबारों में इन दंगों और बाइक रैली की खबर छपी। यूपी ही नहीं देश के तमाम शहरों म

मेरी ज़िन्दगी का शाहीनबाग़ भी कम नहीं था: अरूणा सिन्हा

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लेखिका : अरूणा सिन्हा टीवी देखने का टाइम कहां था मेरे पास। जब तक बच्चे और ‘ये’ स्कूल-ऑफिस के लिए निकल नहीं जाते तब तक एक टांग पर खड़े-खड़े भी क्या भागना-दौड़ना पड़ता था। कभी यह चाहिए तो कभी वो - मेरा रूमाल कहां है? मेरे मोजे कहां हैं? तो नाश्ता अभी तक तैयार नहीं हुआ? बस यही आवाजें कान में सुनाई देती थीं और वो भी इतनी कर्कश मानो कानों में सीसा घुल रहा हो। इस आवाज से बच्चे भी सहमे रहते थे। पापा के रहने तक तो ऐसा लगता था मानो उनके मुंह में जुबान ही न हो। शादी को दस साल हो चुके थे। पहली रात ही इनका असली रूप सामने आ गया था। मैं मन में सपने संजोए अपनी सुहागरात में अकेली कमरे में इनके आने का इंतजार कर रही थी। नींद की झपकी आने लगी तो लेट गयी। लगभग दो बजे दरवाजा खुलने की आहट सुन मेरी नींद भरी आंखें दरवाजे की ओर मुड़ गयीं। लड़खड़ाते कदमों से अंदर दाखिल होते ही पहला वाक्य एक तमाचे की तरह आया - ‘बड़ी नींद आ रही है?’ आवाज की कर्कशता की मैं उपेक्षा कर गयी। लगा बोलने का अंदाज ऐसा होगा। क्योंकि हमारा कोई प्रेम विवाह तो था नहीं। मां-बाप ने जिसके साथ बांध दिया बंधकर यहां पहुंच गयी थी। शादी के लिए मुझे द

सुनों औरतों...हिन्दू राष्ट्र में शूद्र और मलेच्छ गठजोड़ पुराना हैः ज़ुलैख़ा जबीं

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“ हिन्दूराष्ट्र में औरतों की ज़िन्दगी के अंधेरों को शिक्षा के नूर से शूद्र और मलेच्छ (मुसलमान) ने मिलकर जगमग उजियारा बिखेरा है....." तमाम (भारतीय) शिक्षित औरतों , आज के दिन एहतराम से याद करो, उन फ़रिश्ते सिफ़त दंपति जोड़ों (सावित्रीबाई-जोतिबा फुले , फ़ातिमा शेख़- उस्मान शेख़) को जिनकी वजह से तुम सब पिछले डेढ़ सौ बरसों से देश और दुनियां में कामयाबी और तरक़्क़ी के झंडे लहराने लायक़ बनी हो... 1 जनवरी 1848  में पुणे शहर के गंजपेठ वर्तमान नाम फुलेवाड़ा में लड़कियों के लिए पहला स्कूल उपरोक्त दोनों जोड़ों के प्रयासों से उस्मान-फ़ातिमा शेख़ के घर में खोला गया था। ऐ औरतों, भारत के इतिहास में हमारे लिए - तुम्हारे लिए जनवरी खास महीना है। जिसमें फ़ातिमा शेख़ नो जोतिबा फुले के सपनों को परवान चढ़ाया।   हालांकि आप में से बहुतों को ये बात आश्चर्यचकित करनेवाली लगेगी...आप में से ज़्यादातर लोग सोचेंगे कि...."हमारी कही बात अगर सच होती तो आपके इतिहास में ज़रूर दर्ज होती , और आपको बताई भी जाती"... ?  आपका ये सोचना सही है कि आपको बताया नहीं गया..... लेकिन सवाल ये है के इतनी बड़ी