युद्ध में कविः जब मार्कर ही हथियार बन जाए

 दुनिया में अलग-अलग तरह के युद्ध या संघर्ष हो रहे हैं। गाजा से लेकर भारत तक परिस्थितियां बस अलग-अलग हैं। अगर कहीं संवैधानिक संस्थाएं नष्ट हो रही हैं तो उन्हें बचाने का संघर्ष अलग होगा। लेकिन फिलहाल गाजा के संघर्ष पर बात हो रही है। अभी तक वहां 18,200 फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें आठ हजार से ज्यादा तो बच्चे और महिलाएं हैं। यहां तक कि वहां कवि, लेखक, पत्रकार चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। यूसुफ किरमानी का यह लेख एक ऐसे ही कवि पर केंद्रित है। जिसके बारे में दुनिया को जानना जरूरी है।



- यूसुफ किरमानी



इजराइल-हमास युद्ध (Israel-Hamas War) में गाजा का हाल आप पढ़ रहे होंगे। क्या आपकी नजर से रिफत अलारेर (Refaat Alareer) नाम गुज़रा है?


रिफत अलारेर लोकप्रिय फिलिस्तीनी कवि थे जो इजराइल-हमास युद्ध में गाजा में गुरुवार 6 दिसंबर 2023 को मारे गए। मैं यह लेख आपके लिए उस घटना के कई दिनों बाद लिख पा रहा हूं। गाजा में अब हर दिन मौतें हो रही हैं और शेष दुनिया के लिए वो सामान्य मौतें हो गई हैं। दुनिया के शेष हिस्से के लिए जैसे गाजा की मौतों का कोई अर्थ ही न हो।

 




रिफत के एक शब्द की वजह से मैं यह सब लिखने और आपको बताने के लिए अपनी कलम चला रहा हूं। खासकर वो युवा पीढ़ी जो कविताओं से प्रेम करती है, कवियों से प्रेरणा लेती है उन्हें रिफत अलारेर के बारे में मेरे इस लेख को पढ़ना और पढ़ाना चाहिए। 



 

रिफत कवि होने के अलावा गाजा के इस्लामिक विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे। इस यूनिवर्सिटी को अक्टूबर में ही इजराइल ने हवाई हमले में खत्म कर दिया था। रिफत अलारेर का एक इंटरव्यू युद्ध के दौरान अक्टूबर 2023 में अलजजीरा टीवी पर आया था। पहले जानिए उन्होंने उस इंटरव्यू में क्या कहा था







रिफत अलारेर ने कहा था-  "गाजा से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। हमें क्या करना चाहिए... डूब जाना चाहिए? सामूहिक आत्महत्या कर लेनी चाहिए? इज़राइल यही चाहता है? लेकिन हम ऐसा नहीं करने जा रहे हैं... मैं एक स्कॉलर हूं, शायद मेरे लिए सबसे कठिन काम है। मेरे घर पर एक एक्सपो मार्कर है। अगर इज़राइली हम पर आक्रमण करते हैं, अगर वे हम पर हमला करते हैं, हमारा नरसंहार करने के लिए घर-घर जाते हैं, तो मैं उस मार्कर का इस्तेमाल करने जा रहा हूं। इसे इज़राइली सैनिकों पर फेंक दूंगा, भले ही वह आखिरी चीज हो, जिसे मैं ऐसा करने में सक्षम हो पाऊंगा। फिलिस्तीन में हर किसी की यही भावना है। हम असहाय हैं और हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है।"  




कवि रिफत अलारेर ने अपने इस इंटरव्यू में एक्सपो मार्कर को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की बात कही है। एक्सपो मार्कर क्या है। एक्सपो मार्कर वो विभिन्न रंगों वाली पेंसिल या पेन होता है जिसका इस्तेमाल हम लोग ड्राइंग वगैरह या कुछ चीजों को चिन्हित करने के लिए करते हैं। इस मार्कर से कोई मामूली घायल भी नहीं हो सकता। अगर मैं किसी की तरफ मार्कर उछालता हूं तो वो उसके शरीर से टकराकर गिर जाएगा और उस व्यक्ति को उसके लगने का एहसास तक नहीं होगा।

 





तो आखिर कवि रिफत अलारेर ने  मार्कर  को हथियार बनाने के बारे में क्यों सोचा? दरअसल, मार्कर को उन्होंने प्रतिरोध के रूप में चुना। यानी अगर किसी फिलिस्तीनी के पास मामूली से भी मामूली चीज है तो वो उसे हथियार के रूप में चुनने से नहीं चूकेगा। कवि रिफत अलारेर को मार्कर ही वाजिब हथियार लगा। जब आपके खोने के लिए कुछ नहीं हो तो मार्कर ही सही।






भारत के मौजूद दौर के कवि रिफत अलारेर से यह उदाहरण सीख सकते हैं। भारत में जब प्रतिरोध की आवाजें दबा दी गई हों, जब अदालत से लेकर संसद तक में आम जनता को चुप करा दिया जाए।  जब किसी धनपशु के खिलाफ बोलने पर आपकी संसद सदस्यता छिन जाए तो ऐसे ही रिफत अलारेर जैसे कवि के जीवट की जरूरत होती है। ऐसे मार्कर भारतीय कवियों को तलाशने होंगे। भारत के कवि ही क्यों, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार यानी हर विधा के रचनाशील शख्स को फिलिस्तीन के मुकाबले मार्कर की कम जरूरत नहीं है। ऐसे मार्कर आपको उन भारतीय टीवी चैनलों पर नहीं मिलेंगे, जहां साहित्य के नाम इन दिनों कुछ और परोसा जा रहा है।

 





पता नहीं, भविष्य में कभी कोई भारतीय कवि मार्कर के इस्तेमाल की बात को दोहराएगा या नहीं। अगर जनकवि अदम गोंडवी जिन्दा होते तो वो शायद मार्कर पर अपनी कोई रचना लिखते और मार्कर के इस्तेमाल की प्रतिबद्धता दोहराते। 

 





खैर, भारतीय साहित्यकारों का संदर्भ तो इसलिए आ गया था कि नवफासीवाद और नाजीवाद के दौर में जब बेहतरीन कृतियां सामने आनी चाहिए थीं तो तथाकथित प्रगतिशील लेखक, कवि किसी और पाले में बैठे हिनहिना रहे हैं। उन्हें प्रेम कविताएं सूझ रही हैं। वो कविताओं में धर्म पर लिख रहे हैं। 2020 में जब बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन अपने गांवों की ओर हुआ तो चंद कवि थे जो इन मजदूरों के दर्द को महसूस कर कविताएं लिख रहे थें। लेकिन भारत के वो प्रगतिशील कवि जो खुद को सबसे बड़ा झंडाबरदार समझते और कहते हैं, उनका विषय प्रवासी मजदूर नहीं थे।

 






बहरहाल, वापस रिफत अलारेर पर आते हैं।

 





रिफत ने जो अंतिम कविता लिखी थी, उसका शीर्षक था- अगर मुझे मरना ही पड़ा तो वो एक कहानी हो। और अब सचुमच रिफत अलारेर कहानी बन गए हैं।  

 




44 वर्षीय अलारेर फिलिस्तीन लेखकों की युवा पीढ़ी का नेतृत्व करने वालों में से एक थे। अलारेर फिलिस्तीनी युवा लेखक-कवियों के लिए लेखन की वर्कशॉप आयोजित करने के लिए कुछ साहित्याकारों के साथ मिलकर वी आर नॉट नंबर्स प्रोजेक्ट शुरू किया था।

 




गाजा के कवि मोसाब अबू तोहा ने सोशल मीडिया पर उनकी मौत की खबर साझा करते हुए लिखा- "मेरा दिल टूट गया है।"

क्या कवि भी लक्ष्य कर मारे जाते हैं

 

 





पहले भारत में हुई कुछ हत्याओं की बात करते हैं। 25 मार्च 1931 को कानपुर में दंगों के दौरान निर्भीक पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या दंगाइयों ने कर दी थी। दिल्ली में एक नुक्कड़ नाटक के दौरान 2 जनवरी 1989 को रंगकर्मी सफदर हाशमी की हत्या कर दी गई थी। गौरी लंकेश की हत्या तो याद होगी। दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित कुछ लोग बेंगलुरु में गौरी के घर 5 सितंबर 2017 को आए और उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। गौरी लंकेश समेत ये सारी हत्याएं उनके जनसरोकार, प्रतिबद्धता और विचारधारा की वजह से हुई थी। भारत में और भी शिक्षकों, तर्कशील लोगों की हत्याएं भी इसी तरह हुईं। 




इन सभी हत्याओं के पीछे एक खास मानसिकता काम कर रही थी। गाजा में भी कवि अलारेर की हत्या उसी तरह की मानसिकता ने की थी। जिसे दुनिया अब जियोनी नाजीवाद या जायनिस्ट नाजी कह रही है। यानी ये विचारधारा भी दक्षिणपंथी विचारधारा है। इसी विचारधारा ने बाकायदा लक्ष्य तय करके अलारेर की हत्या की। गाजा में तमाम शिक्षाविद, कानूनदां, मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार, कवि, लेखकों को लक्ष्य करके मारा गया।

 





फिलिस्तीन की वफा न्यूज एजेंसी और अल जजीरा के मुताबिक 5 दिसंबर 2023 को अलारेर के पास इजराइली खुफिया एजेंसी से फोन आया कि आपको जायोनीवाद के खिलाफ कलम चलाने की वजह से खत्म करने का समय आ गया। अब देखते हैं आप कितनी कविताएं जायोनीवाद के खिलाफ लिखते हैं। अलारेर समझ गए, यह मामूली चेतावनी नहीं थी। इजराइल ने जब 7 अक्टूबर को गाजा पर हमले शुरू किए तो अलारेर को कई बार निशाना बनाने की कोशिश की गई लेकिन हर बार वो बच निकलते थे। इन हमलों की वजह से उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को सुरक्षित जगह पहुंचा दिया लेकिन जब 5 दिसंबर को उन्हें फोन पर सीधे धमकी मिली तो वो 6 दिसंबर को अपनी बहन अस्मा के घर अल-दराज इलाके में अपार्टमेंट में शरण लेने पहुंच गए। 




यूरो-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स मॉनिटर ने प्रमाणित प्रत्यक्षदर्शी गवाही और पारिवारिक बयानों का हवाला देते हुए बताया कि बुधवार 6 दिसंबर 2023 को शाम 6 बजे के आसपास, "उस पूरी इमारत को बम से उड़ा दिया गया। अलारेर मारे गए।" कवि के साथ उनके भाई सलाह और भतीजे मुहम्मद के साथ मार दिया गया था। उनकी बहन अस्मा और उनके तीन बच्चे - अला, याह्या और मुहम्मद भी मारे गए। इजराइली सेना के “हवाई हमले में उस अपार्टमेंट की सिर्फ दूसरी मंजिल को निशाना बनाया जहां रिफत अलारेर थे। यानी इजराइली सेना ने सिर्फ उतने ही हिस्से को निशाना बनाया, जिसमें अलारेर और उनके रिश्तेदार थे।

 






रिफत अलारेर की हत्या से कुछ दिन पहले इज़राइल ने गाजा के इस्लामिक विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. सुफियान तायेह की हत्या कर दी थी, जहां रिफत अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे। इज़राइली सेना ने इस महीने भी इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ गाज़ा में मेडिसिन संकाय में विस्फोटक लगाए और बमबारी की।

 




हो सकता है कि भारत में रिफत अलारेर के मार्कर की बात कुछ लोगों को अतिरेक लगे लेकिन नवफासीवाद नाजीवाद के इस दौर में कोई भारतीय साहित्यकार मार्कर जैसा कोई मार्का करके तो दिखाए। इंतजार है।


(फिलस्तीन पर आप पत्रकार यूसुफ किरमानी के लेख इससे पिछली पोस्ट में पढ़ सकते हैं। वो लेख समयांतर पर प्रकाशित हो चुका है)

  


टिप्पणियाँ

subhash gatade ने कहा…
Priy Saathi Yusuf ji

Aap ke naam se aur lekhan se wakif tha, lekin is blog se anbhigy tha

Yeh lekh aur apki anya rachnayein behad acchi lagi

Saadar
subhash

subhash.gatade@gmail.com

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