बुरे समय की कविताएं और उपवास का नाटक
।।बुरे समय की कविताएं।। (एक) छिपता है राम की ओट मे बलात्कारी हत्यारा कंधे पर हाथ रखे करता है अट्टहास घायल कबूतर का लहू सूखता जाता है माथे पर लुटेरा तूणीर से निकलता है तीर और सर खुजाता है मूर्तियों के समय में कितने निरीह हो तुम राम और कितने मुफ़ीद (दो) तिरंगा उसके हाथों मे कसमसाता है रथ पर निःशंक फहराता है भगवा एक पवित्र नारा बदलता है अश्लील गाली में और ढेर सारा ताज़ा ख़ून नालियों का रंग बदल देता है इन नालियों के कीट तुम्हारे राष्ट्र की पहचान हैं अब (तीन) लड़की की उम्र आठ साल देह पर अनगिनत चोटों के निशान योनि से बहता ख़ून कपड़े फटे आँखें फटीं प्रतिवाद करता है हत्यारा लेकिन उसका नाम तो आसिफा है न! (चार) भूखी है जनता आधी आधी की देह पर धूल के कपड़े आधी जनता पिटती है रोज़ आधी बिना अपराध जेल में आधी की इज़्ज़त न कोई न कोई घर आधी जनता उदास है बाक़ी आधी जनता की ख़ुशी के लिए बस इतना काफी है। -अशोक कुमार पाण्डेय अब मेरी बात .................. तुम लोगों का उपवास वाक़ई एक नाटक है क्योंकि तुम लोग उन्नाव के रेप और कठुआ की बेटी के रेप में फ़र्क़