संदेश

Politics लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय सिख या गोल्डन इंसान कहें उन्हें

चित्र
सिखों के गोल्ड दान की बहुत तारीफ़ हो रही है... वो लोग हमेशा तारीफ़ के क़ाबिल काम करते हैं।...इसमें रत्ती भर शक नहीं है। लेकिन मुझे ग़ुस्सा उस आक्रमणकारी महमूद गजनवी और उन चंद मुगल हमलावरों पर आ रहा है जो हमारे देश के मंदिरों का सोना लूटकर ले गए। इन लोगों को क्या गाली दूँ?  वो गोल्ड बचा रहता तो आज हमारे बहुसंख्यक सनातनी भाई भी मंदिरों के गोल्ड से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और अस्पताल बनवा रहे होते।  लेकिन अभी भी सनातनियों का सामर्थ्य मरा नहीं है। वे बहुत बड़े दानवीर हैं।  जोश में आ जाएँ तो सनातनी भाई सिखों से भी बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।  #अयोध्या में भव्य #राम_मंदिर के लिए जो कौम कई अरब रूपये चंदा दे सकती है। उसके लिए सैकड़ों यूनिवर्सिटी खड़ी कर देना मामूली बात है। अस्पताल, कॉलेजों के लिए भी सनातनी चंदा क्यों नहीं  देंगे ? सनातनी जाग उठा है। वह अब मंदिर से आगे जाकर सोच रहा है। मुबारक। इस शिकायत में कोई दम नहीं है कि सनातनी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार आदि के बजाय मंदिर को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं। एक बार मंदिर बन जाये तो वे ज़रूर इन ज़रूरतों पर भी ध्यान देंगे। बहरहाल, बात हम सिखों पर कर

अटल बिहारी वाजपेयी को ज़बरन स्वतंत्रता सेनानी बनाने की कोशिश

चित्र
  यूसुफ किरमानी मोदी सरकार ने 25 दिसम्बर 2020 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन मनाते हुए उन्हें फिर से स्वतंत्रता सेनानी स्थापित करने की कोशिश की। भाजपा शासित राज्यों में अटल के नाम पर सुशासन दिवस मनाया गया। इसलिए इस मौक़े पर पुराने तथ्यों को फिर से कुरेदना ज़रूरी है। भाजपा के पास अटल ही एकमात्र ब्रह्मास्त्र है जिसके ज़रिए वो लोग अपना नाता स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ते रहते हैं।  यह तो सबको पता ही है कि भाजपा का जन्म आरएसएस से हुआ। भाजपा में आये तमाम लोग सबसे पहले संघ के स्वयंसेवक या प्रचारक रहे। 1925 में नागपुर में अपनी पैदाइश के समय से ही संघ ने अपना राजनीतिक विंग हमेशा अलग रखा। पहले वह हिन्दू महासभा था, फिर जनसंघ हुआ और फिर भारतीय जनता पार्टी यानी मौजूदा दौर की भाजपा में बदल गया। कुछ ऐतिहासिक तथ्य और प्रमाणित दस्तावेज हैं जिन्हें आरएसएस, जनसंघ के बलराज मधोक, भाजपा के अटल और आडवाणी कभी झुठला नहीं सके।  आरएसएस  संस्थापक गोलवरकर ने भारत में अंग्रेज़ों के शासन की हिमायत की। सावरकर अंडमान जेल में अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगने के बाद बाहर आये। सावरकर के चेले नाथूराम गोडसे ने

क्या भारतीय मीडिया पर बुलडोजर चलाने की जरूरत है... If Indian Media Should be Buldoz

 मुंबई के पत्रकार मित्र उमा शंकर सिंह ने लिखा है कि नोएडा में जितने भी न्यूज़ चैनल हैं, उनकी बिल्डिंगों पर बुलडोज़र चला दिए जाएँ। ताकि इन चैनलों को हमेशा के लिए नेस्तोनाबूद कर दिया जाए। उमा भाई की यह टिप्पणी यूँ ही नहीं आई, बल्कि इसके पीछे उनकी जो टीस छिपी हुई है, उसे समझना और उस पर बात करना बेहद ज़रूरी है। दरअसल, सबसे तेज़ चैनल और एक चावल व्यापारी के चैनल ने सिविल सर्विस के फ़ाइनल नतीजे आने के बाद ख़बरें चलाईं कि मुस्लिम युवक युवतियों को सिविल सर्विस के जरिए भारत सरकार की नौकरियों में घुसाया जा रहा है। उसमें यह भी बताया गया कि साल दर साल सिविल सेवा में परीक्षा देने वाले मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। यह चिंता की बात है। इस संबंध में सबसे पहले इंडियन पुलिस फ़ाउंडेशन ने ट्वीट करके ऐतराज़ जताया। फ़ाउंडेशन ने कहा कि यह बहुत शर्म की बात है कि मीडिया इस तरह नफ़रत फैलाकर देश में अस्थिरता पैदा करना चाहता है। फ़ाउंडेशन मे न्यूज़ चैनलों की संस्था ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड से इस संबंध में कार्रवाई को कहा। पत्रकार उमा शंकर सिंह और हमारे जैसे लोगों ने भी लश्कर

कहानी ...इंसानी पाबंदियां

चित्र
-इस कहानी को कई पत्रिकाओं में छपवाने की कोशिश की गई। लेकिन किसी भी पत्रिका ने कश्मीर पर आधारित इस कहानी को छापने में दिलचस्पी नहीं ली। इसलिए यह कहानी हिंदीवाणी ब्ल़़ॉग पर पेश है... सर्दियां बीत रही हैं। लेकिन  इस बार यह आम सर्दी का मौसम नहीं है। ज़हरीली आब-ओ-हवा फ़िज़ा में चारों तरफ़ है। नफ़रतों का तूफ़ान पूरी तरह सब कुछ रौंदने पर आमादा है। कुदरत के तूफान को कैटरीना, हरिकेन, बुलबुल जैसे नाम नसीब हैं लेकिन इंसानी नफरत के तूफान को कोई नाम देने को तैयार नहीं है। नफरत का तूफान जो कभी अपने हरे, नीले, पीले, भगवा, बसंती जैसे रंगों से पहचाना जाता था, अब वह ‘इंसाफ’ के साथ मिलकर इंद्रधनुष बना रहा है। कहना मुश्किल है कि नफरतों के तूफान का इंसाफ के इंद्रधनुष से क्या रिश्ता है लेकिन फिलहाल दोनों एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। हर साल नवंबर का पहला हफ़्ता बीतते बीतते हमारे घर की डोर बेल ज़ोर से बजती थी और दरवाज़ा खोलने पर गेट पर कपड़ों का गठ्ठर लादे और हाथ में काग़ज़ की स्लिप लिए शफ़ीक़ #कश्मीरी नज़र आता था। लेकिन पूरा नवंबर खत्म हो गया। दिसंबर आकर चला गया लेकिन शफीक का दूर-दूर तक अता

गुंडों की पहचान

चित्र
मुँह पर साफ़ा बाँधे गुंडों की पहचान कैसे होगी वे सिर्फ जेएनयू में नहीं हैं वे सिर्फ एएमयू में नहीं हैं वे सिर्फ जामिया में नहीं हैं वे कहाँ नहीं हैं वे अब वहां भी है, जहां कोई नहीं है वे तो बिजनौर,मेरठ से लेकर मंगलौर तक में है वे चैनलों में हैं वे अखबारों में हैं वे मंत्रालयों में हैं वे एनजीओ में हैं वे कारखानों में हैं, वे रक्षा ठिकानों तक में हैं वे फिल्मवालों में हैं, गोया हर गड़बड़झाले में हैं वे नाजी राष्ट्रवाद के हर निवाले और प्याले में हैं तो क्या कपड़ों से करोगे इनकी पहचान इनके सिरों पर गोल टोपी भी नहीं इनके चेहरे पर दाढ़ी तक नहीं इनकी आंखों में सूरमा तक नहीं इन्होंने ऊंचा पायजामा भी नहीं पहना लड़कियों के चेहरे पर हिजाब भी नहीं फिर कैसे होगी इनकी पहचान सुना है आतंकी राइफल लेकर चलते हैं पर इनके हाथों में सिर्फ कुल्हाड़ी है कुछ के हाथों में लोहे के रॉड भी हैं कुछ के जबान पर उत्तेजक नारे हैं क्या कुल्हाड़ी से कोई विचार मरता है जेएनयू एक विचार है एएमयू एक विचार है जामिया एक विचार है शाहीन बाग एक विचार है विचार कुल्

गोडसे को गाली दे चुके हों तो मैं कुछ अर्ज करूं

अगर आप लोग भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर का आतंकवादी नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने पर रो-धो चुके हैं, उसे सोशल मीडिया पर खूब गाली दे चुके हों तो मैं कुछ अर्ज करूं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि इस महिला ने गोडसे को देशभक्त बताया हो। उसे जब-जब भाजपा और चालाक जातियों वाले सांस्कृतिक गिरोह का इशारा होता है वह गोडसे को देशभक्त बता देती है।... यह सब जानबूझकर किया जा रहा है। आप लोगों को शिकारी अपनी जाल में फंसा रहा है। महाराष्ट्र का राजनीतिक युद्ध हारते ही गोडसे को विवाद के केंद्र में लाया जा रहा है ताकि उसके माफी गुरु को इस बार गणतंत्र दिवस पर जब भारत रत्न देने की घोषणा हो तो मराठियों का सीना गर्व से फूल उठे। महाराष्ट्र में दो या ज्यादा से ज्यादा तीन साल में विधानसभा चुनाव होना तय है। अगर मराठियों के वोट की कीमत माफी गुरु को भारत रत्न और गोडसे को देशभक्त की उपाधि है तो भगवा गिरोह के हिसाब से सौदा उतना बुरा नहीं है। आप देखेंगे कि संसद में जब उस शाप देने वाली महिला ने गोडसे को देशभक्त बताया तो इसे पहले टीवी चैनलों पर चलवा दिया गया, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और कई घंटे बाद लोकसभा अ

मुसलमानों के पास खोने को क्या है...

अयोध्या में राम मंदिर बनेगा या बाबरी मस्जिद को उसकी जगह वापस मिलने का संभावित फ़ैसला आने में अब कुछ घंटे बचे हैं। सवाल यह है कि अगर फ़ैसला मंदिर के पक्ष में आया तो मुसलमान क्या करेंगे... मुसलमानों को एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि इस सारे मामले में न तो उनका कुछ दाँव पर लगा है और न ही उनके पास कुछ खोने को है। अगर इस मामले में किसी का कुछ दाँव पर लगा है या कुछ खोने को है तो वह हैं दोनों धर्मों के उलेमा, राजनीतिक नेता, उनके दल, महंत, शंकराचार्य, अखाड़ों और बिज़नेसमैन बन चुके बाबा।  जिस जगह पर विवाद है, वहाँ पाँच सौ साल से विवाद है। अयोध्या में पहने वाले मुसलमानों ने तो वहाँ जाकर एक बार भी नमाज़ पढ़ने की कोशिश नहीं की। फिर बाहरी मुसलमान आज़म खान और अौवैसी ने क्या वहाँ कभी जाकर नमाज़ पढ़ने की कोशिश नहीं की। मेरे वतन के मुसलमान अयोध्या और फ़ैज़ाबाद की मस्जिदों में शांति से नमाज़ पढ़ रहे हैं। अगर फ़ैसला मस्जिद के पक्ष में भी आ जाता है तो भी अयोध्या में रहने वाले मुसलमान पुरानी जगह पर नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं जायेंगे। आज़म या ओवैसी रोज़ाना तो आने से रहे। इसलिए फ़ैसला

कश्मीर डायरी ः सियासी मसले बुलेट और फौज से नहीं सुलझते....

चित्र
जम्मू कश्मीर में 5 अगस्त को जब भारत सरकार ने धारा 370 खत्म कर दी और सभी प्रमुख दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तो उन नेताओं में सीपीएम के राज्य सचिव और कुलगाम से विधायक यूसुफ तारिगामी भी थे। उनकी नजरबंदी को जब  एक महीना हो गया तो सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि उनके कश्मीरी नेता यूसुफ तारिगामी की सेहत बहुत खराब है। उन्हें फौरन रिहा किया जाए ताकि उनका इलाज कराया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ यूसुफ तारिगामी की रिहाई का आदेश दिया बल्कि उन्हें दिल्ली के एम्स में लाकर इलाज कराने का निर्देश भी दिया। यूसुफ तारिगामी एम्स में इलाज के बाद ठीक हो गए और वहां से दिल्ली में ही जम्मू कश्मीर हाउस में चले गए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में केस अभी लंबित है। मैंने उनसे जाकर वहां कश्मीर के तमाम मसलों पर बात की। जिसे आज नवभारत टाइम्स ने प्रकाशित किया। पूरी बातचीत का मूल पाठ मैं यहां दे रहा हूं लेकिन नीचे एनबीटी में छपी हुई खबर की फोटो ताकि सनद रहे के लिए भी लगाई गई है।.... सियासी मसले बुलेट और फौज से नहीं सुलझते Yusuf.Kirmani@timesgroup.com दिल्ली

इस साज़िश को समझो मेरी जान

आप लोगों का यह शक सही लग रहा है कि हो न हो भारत की अर्थव्यवस्था के खिलाफ कांग्रेसी नेता, कश्मीरी अवाम और पाकिस्तान मिलकर कोई साज़िश कर रहे हैं।...लेकिन मोदी सरकार ने गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जिस तरह कांग्रेस नेताओं को गिरफ़्तार किया है, जिस तरह कश्मीर में 370 हटाया है, जिस तरह पाकिस्तान के मंसूबों को धूल चटाया है, वह क़ाबिले तारीफ़ है। जिस दिन भारतीय अर्थव्यवस्था में पाँच फ़ीसदी गिरावट का संकेत देने वाली जीडीपी की खबर आनी थी, ठीक उससे पहले चिदंबरम को गिरफ़्तार कर लिए गए। अगर चिदंबरम बाहर रहते तो हम लोगों को जीडीपी के गिरने पर गुमराह कर सकते थे। चिदंबरम को गिरफ़्तार करके मोदी शाह ने गिरती अर्थव्यवस्था को क़ाबू में कर लिया। आज शेयर बाज़ार और भारतीय रूपया जब शाम को औंधे मुँह गिरा तो उसके तुरंत बाद ईडी ने कर्नाटक के बड़े कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार के गिरफ़्तार कर लिया। अब ये शिवकुमार जब तक जेल में रहेगा तब तक न रूपया गिरेगा और न शेयर बाज़ार। मंदी के कंट्रोल के लिए शिव कुमार का जेल जाना ज़रूरी था।  मैं तो कहता हूँ कि धारा 370 नहीं हटती तो हमारी जीडीपी पाँ