संदेश

आरएसएस लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

साम्प्रदायिक वायरस और निज़ामुद्दीन में जमाती

चित्र
साम्प्रदायिक वायरस (Communal Virus) किसी भी कोरोना वायरस से ज्यादा ख़तरनाक है। कोरोना खत्म हो जाएगा लेकिन साम्प्रदायिक वायरस कभी खत्म नहीं होगा। सरकारी पार्कों में #नागपुरी_शाखाएँ_बंद हैं लेकिन उनके कीटाणु तमाम मीडिया आउटलेट्स में प्रवेश कर चुके हैं और उनके ज़रिए #साम्प्रदायिकवायरस को फैलाने का काम जारी है। भेड़िए को अगर इंसान का ख़ून मुँह में लग जाए तो वह रोज़ाना इंसान का शिकार करने निकलता है। तमाम #टीवी चैनल और कुछ पत्रकारों की हालत इंसानी ख़ून को पसंद करने वाले भेड़िए जैसी हो गई है। #कोरोना में साम्प्रदायिक नुक़्ता अभी तक नदारद या नजरन्दाज था। लेकिन भेड़ियों के झुंड ने आख़िरकार दिल्ली के हज़रत #निज़ामुद्दीन बस्ती के एक मरकज़ की #तबलीगी_जमात में जाकर तलाश लिया। हालाँकि #तबलीगीजमात वग़ैरह जैसी चीज़ों के मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत खिलाफ हूँ। जिन लोगों की दुनिया खुदा के #रसूल और उनके #अहलेबैत, #सूफीज्म से आगे नहीं बढ़ती वो कोई भी तबलीग कर लें, ऊँचा पाजामा पहन लें, कम से कम #इस्लाम को तो नहीं फैला रहे। अभी जो घटना हुई उससे लोगों को बचाया जा सकता था। लेकिन तबलीगी जमात मे

ताली और थाली का निहितार्थ समझिए...

चित्र
प्रधानमंत्री मोदी जी ने आपसे आज (22 मार्च शाम 5 बजे) जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली यूं ही नहीं बजवा दिया।... संघ पोषित व िचारों की आड़ लेकर सरकार द्वारा प्रायोजित इतना बड़ा जन एकजुटता का प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था।  जिन लोगों ने इसे नहीं बजाया, उन्हें अपने उन पड़ोसियों की वजह से हीन भावना में आने की जरूरत नहीं है जिन्होंने जमकर बजाया।...और इतना जोर से बजाया कि परिंदे भी डर गए... आपके जिन पड़ोसियों ने इस मौके पर पटाखे छोड़े हैं, उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं पालें। # मोदी जी ने उनसे ताली और थाली बजाने को कहा था, बेचारों ने खुशी में पटाखे भी चला दिए। लेकिन दरअसल वे नादान ही तो थे, अनजाने में पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया जो इस वक्त # ग्लोबल_वार्मिंग से मुक्त होकर सुखद सांस ले रहा था। तो...आइए इस # ताली_और_थाली_बजाने_का_निहितार्थ समझते हैं... अगर किसी को # 1992_में_मंदिर_आंदोलन और लालकृष्ण # आडवाणी की रथ यात्रा के दिनों की कुछ घटनाएं याद हों तो वो आसानी से आज के ताली और थाली बजाने को समझ जाएंगे। लेकिन जिन्हें याद नहीं या जो उस समय नहीं पैदा हुए

शाहीनबाग के तीन महीने...हमने क्या पाया...

चित्र
दिल्ली में शाहीनबाग के शांतिपूर्ण  संघर्ष को तीन महीने पूरे हुए... सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर सूरते हाल क्या होगी, नहीं मालूम, लेकिन हमें इस बात का सुकून रहेगा कि हमने अपना ज़मीर मरने नहीं दिया... हमने इस संघर्ष में ऐसे बच्चों को तैयार कर दिया है जो आने वाली नस्लों को बताएंगे कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई के लिए बनाए गए शाहीनबाग के वो चश्मदीद हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनके सामने हमारे अतीत को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा...  हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, ब्यूरोक्रेट, जज बनने पर यह समझ होगी कि जनभावनाएं और मानवाधिकार क्या होते हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्हें किसी शाखा में ज़हरीला राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाया गया, बल्कि जिन्हें सड़क किनारे बनाई गई अभावग्रस्त लाइब्रेरी में शहीद भगत सिंह, गौरी लंकेश, बिस्मिल, आज़ाद, वीर अब्दुल हमीद, दाभोलकर, कलाम...को पढ़ाया गया... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि वो ऐसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए आगे बढ़े जब ख़ाकी पहने हुए गुंडों ने उन पर हमला बोला...

साम्प्रदायिक आतंकवाद को कैसे हराएं

एक बेटी का निकाह तय था इस महीने। #दिल्ली_के_रक्तपात में आतंकवादियों ने उनका घर लूट लिया और जला दिया। सारे ज़ेवरात और दूसरे सामान #आतंकवादी उठा ले गए। उन्हें घर छोड़ कर भागना पड़ा। बहन की बारात ग़ाज़ियाबाद से आनी थी। जहाँ शादी तय थी, उन लोगों ने निकाह से मना कर दिया। अभी वो बेटी #मुस्तफाबाद के अल हिंद हॉस्पिटल में रह रही है। उनके अब्बा को अपना घर लुटने और सब कुछ तबाह होने का उतना ग़म नहीं है जितना अपनी बेटी का #निकाह न होने का ग़म था। आख़िरकार रिश्तेदारी में ही एक होनहार नौजवान कल सामने आया। उसने उस बेटी का हाथ माँग लिया। दोनों का निकाह भी कल हो गया। आप सभी लोग उस बेटी और उसके शौहर के लिए #दुआ कर सकते हैं। #अल्लाह उन दोनों को हमशा सलामत रखे, हमेशा खुश रखे। मरहूम सरदार गुरबचन सिंह, मरहूम शायर ख़ामोश सरहदी साहब और अभी भी ज़िंदा बुज़ुर्ग पत्रकार जनाब अमरनाथ बाग़ी साहब #भारत_पाकिस्तान_बँटवारे (1947) के समय की ऐसी सच्ची कहानियाँ मुझे सुनाया करते थे। #पाकिस्तान छोड़कर #फ़रीदाबाद चले आए उन दोनों हस्तियों के बँटवारे का दर्द उनकी बातों में उभरता था। वो बताते थे कैसे पंडित जवाहर लाल #न

अफ़वाहों का शहर

अफ़वाहें आपका टेस्ट होती हैं...कल रात भी टेस्ट हुआ... देशभर में गणेश मूर्तियों को दूध पिलाया जाना याद है... क्या यह भी याद है कि वो कौन सा #अफवाहबाज_संगठन था जिसने गणेश मूर्तियों के दूध पीने की बात सुबह सुबह उड़ा दी थी... 21 सितंबर 1995...मैं तब बरेली में था। #दैनिक_जागरण नामक #हिंदूवादी_अखबार में काम करता था। हमारे #संपादक बच्चन सिंह जी और जनरल मैनेजर चंद्रकांत त्रिपाठी जी को यह सब बहुत वाहियात लगा और 11 बजे पूर्वाह्न होने वाली एडिटोरियल मीटिंग में इसकी जाँच पड़ताल का ज़िम्मा मुझे सौंपा गया। #बरेली में उस समय हरदिल अज़ीज़ और बहुत प्यारे इंसान एडीएम सिटी मंजुल जोशी जी थे। वह मित्र जैसे थे। मैं और मेरे #पत्रकार दोस्त गीतेश जौली (दैनिक आज) उनके पास पहुँचे। उसके बाद हमने उनके साथ बरेली के बड़े मंदिरों का दौरा करने का प्लान बनाया। रामपुर गार्डन बरेली के मंदिर में गेट पर अभी हम लोगों के क़दम पड़े ही थे कि जोशी जी ने कहा - ज़रा किनारे, पैरों में दूध लभेड़ उठेगा। मैंने कहा - जब #मूर्तियाँ_दूध_पी_रही_हैं तो दूध यहाँ कैसे आ सकता है? यह चावल का पानी वग़ैरह होगा। उन्होंने कहा - मैं मजा

महात्मा गांधी के संघीकरण की शुरूआत

चित्र
  आरएसएस का गांधी प्रेम बढ़ता ही जा रहा है। आरएसएस के मौजूदा प्रमुख या सरसंघचालक मोहन भागवत 17 फ़रवरी को दिल्ली में गांधी स्मृति में जा पहुंचे। संघ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई सरसंघचालक गांधी स्मृति में पहुंचा है। गांधी स्मृति वह जगह है जहां 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या की गई। गांधी स्मृति गांधीवाद का प्रतीक है। वहां किसी सरसंघचालक का पहुंचना छोटी घटना नहीं है। लेकिन क्या है यह सब...अचानक इतना गांधी प्रेम...गांधी को इतना आत्मसात करने की ललक कांग्रेस जैसी पार्टी ने भी नहीं दिखाई , जो खुद को गांधी की विरासत का कस्टोडियन मानती है।  # संघ की गांधी के प्रति यह ललक दरअसल 2 अक्टूबर 2019 से प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है , जब इन्हीं मोहन भागवत ने ट्वीट कर कहा था कि गांधी को स्मरण करने की बजाय उनका अनुसरण करना चाहिए। मोहन भागवत की उस समय की प्रतिक्रिया पर किसी का ध्यान नहीं गया और न ही इसे किसी ने गंभीरता से लिया था। लेकिन जब 17 फरवरी को उन्होंने दोबारा से #गांधी का अनुसरण करने की बात कही और #गांधी_स्मृति जाने की पहल की तो लगा मामला अब गंभीर है। संघ की इस चालाक पहल

60 दिन का आंदोलनबाग - शाहीनबाग

चित्र
शाहीनबाग आंदोलन 60 दिन पुराना हो गया है। जहरीले चुनाव से उबरी दिल्ली में किसी आंदोलन का दो महीने जिंदा रहना और फिलहाल पीछे न हटने के संकल्प ने इसे आंदोलनबाग बना दिया है। ऐसा आंदोलनबाग जिसे तौहीनबाग बताने की कोशिश की गई, लेकिन शाहीनबाग की हिजाबी महिलाओं ने तमाम शहरों में कई सौ शाहीनबाग खड़े कर दिए हैं। बिना किसी मार्केटिंग के सहारे चल रहे महिलाओं के इस आंदोलन को कभी धार्मिक तो कभी आयडेंटिटी पॉलिटिक्स (पहचनवाने की राजनीति) बताकर खारिज करने की कोशिश की गई। लेकिन आजाद भारत में मात्र किसी कानून के विरोध में हिजाबी महिलाओं का आंदोलन इतना लंबा कभी नहीं चला।  #शाहीनबाग_में_महिलाओं_का_आंदोलन  15 दिसंबर  2019  से शुरु हुआ था। आंदोलन की शुरुआत शाहीनबाग के पास #जामिया_मिल्लिया_इस्लामिया में समान नागरिकता कानून (#सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (#एनआरसी) के खिलाफ छात्र-छात्राओं के आंदोलन पर पुलिस लाठी चार्ज के खिलाफ हुई थी। शाहीनबाग की महिलाओं के नक्श-ए-कदम पर #बिहार में गया , उत्तर प्रदेश में #लखनऊ, #इलाहाबाद और #कानपुर तो पश्चिम बंगाल में कोलकाता में इसी तर्ज पर महिलाएं इसी मुद्दे पर ध