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गोदी मीडिया पर रवीश का चला बुलडोजर

गोदी मीडिया पर चला रवीश कुमार का बुलडोजर ................................................................... भारत आज रवीश कुमार Ravish Kumar बन गया है। भारतीय पत्रकारिता के सबसे बुरे दौर में रवीश को रेमन मैगसॉयसॉय पुरस्कार के लिए चुना जाना एक ऐसी ठंडी हवा की झोंके की तरह है जब आप डर, दबाव, आतंक के पसीने में तरबतर होते हैं। एक क्लोज ग्रुप में जिसमें रवीश भी हैं, उसमें एक मित्र ने टिप्पणी आज सुबह टिप्पणी की कि - गोदी पत्रकारों और गोदी पत्रकारिता पर बुलडोजर चल गया।...सचमुच यह टिप्पणी बताती है कि कुछ पत्रकार जिन मनःस्थितियों में गुजर रहे हैं, उनके लिए यह कितनी बड़ी खुशी का दिन है। ताज्जुब है कि प्रधानमंत्री समेत सत्तारूढ़ सरकार के किसी मंत्री संतरी को यह महसूस नहीं हुआ कि भारत का गौरव बढ़ाने के लिए वे भी रवीश को बधाई देते। हालाँकि वे हर चिंदी चोर को छोटा पुरस्कार या सम्मान पाने पर बधाई देना नहीं भूलते। हिंदी पत्रकारिता को वह सम्मान इस देश में नहीं प्राप्त है, जो अंग्रेजी या दूसरी क्षेत्रीय भाषा की पत्रकारिता को प्राप्त है। लेकिन एक अकेले बंदे ने आज तमाम मान्यताओं को ध्वस्त कर बताया कि

बात ज़रा सिक्का उछाल कर...

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मुग़ल काल के दौरान अकबर ने भारत में 50 साल तक शासन किया। उसने उस समय चाँदी के जो सिक्के जारी किए उन पर राम सीता की तस्वीर है। (फोटो नीचे देखें) ... इतिहास टटोल डालिए उस वक़्त किसी मौलवी या मुफ़्ती ने अकबर के खिलाफ फ़तवा जारी नहीं किया।  अकबर से पहले बाबर और हुमायूँ ने जो सिक्के जारी किए थे, उन पर इस्लाम के चार ख़लीफ़ाओं के नाम होते थे।  ज़ाहिर है कि अल्पसंख्यक अकबर ने बहुसंख्यक लोगों की भावनाओं की क़द्र करते हुए राम सीता वाले सिक्के जारी किए होंगे।   सत्ता मिलने पर किसी शासक को जैसा बौराया हुआ अब देख रहे हैं वैसा कभी नहीं हुआ।  औरंगज़ेब काल में ज़ुल्म किए जाने की बात जहाँ तहाँ लिखी गई है लेकिन इतिहासकारों ने उसके द्वारा मंदिर बनवाने और मंदिरों को चंदा देने की बात भी दर्ज की गई है।   लेकिन जो अब हो रहा है, वैसा कभी नहीं हुआ। सांप्रदायिक सल्तनत में बदलते इस देश में अलग विचार रखना, बोलना, लिखना गुनाह होता जा रहा है।  फ़िल्म डायरेक्टर अनुराग कश्यप, अदाकारा अपर्णा सेन, इतिहासकार रामचंद्र गुहा समेत कई जानी मानी हस्तियों ने कल प्रधानमंत्री को बढ़ती मॉब लिंच

राष्ट्रवाद जब लानत बन जाए

इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड के बीच कल खेले गए वर्ल्ड कप फ़ाइनल से भारत के लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं। ... क्या आपको दोनों देशों के क्रिकेट प्रेमियों की कोई उन्मादी तस्वीर दिखाई दी कि कोई जीत के लिए हवन करा रहा हो या मस्जिद में दुआ कर रहा है? क्या इंग्लैंड की जीत के बाद न्यूज़ीलैंड में किसी ने टीवी सेट तोड़ा, किसी ने खिलाड़ियों के फोटो जलाए? इंग्लैंड के किसी शहर में वर्ल्ड की जीत के बाद किसी ने पटाखे छोड़े जाते हुए कोई तस्वीर देखी? न्यूज़ीलैंड में किसी ने क्रिकेट खिलाड़ियों की फोटो पर जूते मारते देखा? दोनों टीमों ने बेहतरीन खेल का मुज़ाहिरा किया- बस इतनी प्रतिक्रिया जताकर लोग रह गए। दरअसल, एशिया के सिर्फ दो देशों भारत और पाकिस्तान की मीडिया और वहाँ के राजनीतिक दलों ने क्रिकेट को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया है। दोनों देशों की जाहिल जनता धर्म की अफ़ीम चाट चाट कर उन्माद की हद तक क्रिकेट से प्यार करने लगी है। देश में मैरी कॉम, पीटा उषा या हिमा दास का वह रूतबा नहीं है जो विराट कोहली या धोनी का है। इन तीनों महिला खिलाड़ियों की हैसियत पैसे के हिसाब से क्रिकेट के किसी मामूली खिलाड़ी से क

मुस्तजाब की कविता ः सब कुछ धुंधला नजर आ रहा है

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मुस्तजाब की कविताएं हिंदीवाणी पर आप लोग पहले भी पढ़ चुके हैं...पेश है उनकी नवीनतम कविता सब धुंधला नजर आ रहा है .............................. ............ सब धुंधला नजर आ रहा है सच, झूठ, तारीख, तथ्य किसे मानें, रह गया है क्या सत्य सलाखें बन गए हैं मस्तिष्क हमारे अंदर ही घुट घुट कर सड़ रहे हैं लोग बेचारे एक कतार में हम सब अटक गए हैं समझ रहे हैं राह है सही, मगर भटक गए हैं जो कहता है अंध बहुमत उसे मान लेते हैं चाहे झूठ हो, संग चलने की ठान लेते हैं क्या हुआ जो लोग मर रहे हैं आजादी के पीर सलाखों में सड़ रहे हैं कहने पर रोक है, अंधा हो गया कोर्ट है डरपोक सब ठंडी हवा में बैठे हैं कातिल संसद में टिका बैठे हैं सच्चे तो खैर आजादी ही गवां बैठे हैं मगर हमें क्या हम तो धुंधलेपन के मुरीद हैं धरम तक ही रह गई साली सारी भीड़ है और इसी धुंधलेपन का फायदा मसनदखोर उठा रहा है हम अंधे हो रहे हैं वो हमारा देश जला रहा है - मुस्तजाब मुस्तजाब की कुछ कविताओं के लिंक - http://www.hindivani.in/2017/12/blog-post.html http://www.hindivani.in/2019/02/blog-post_16.html

हमारा तेल खरीदो, हमारा हथियार खरीदो...फिर चाहे जिसको मारो-पीटो

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भारत अमेरिका-इस्राइल-अरब के जाल में फँस गया है। नया वर्ल्ड ऑर्डर (विश्व व्यवस्था) अपनी शर्तें खुलेआम बता रहा है। ...हमारा तेल ख़रीदो और हमारे ही हथियार ख़रीदो। नहीं तो बम धमाकों, तख़्ता पलट, दंगों का सामना करो।...अगर किसी आतंकवादी गुट से बातचीत या समझौता करना होगा तो वह भी हम करेंगे। अगर तुम अपने देश में अपनी किसी आबादी या समूह पर जुल्म करना चाहते हो, उनका नरसंहार करना चाहते हो तो वह हमारी बिना मर्जी के नहीं कर सकते। हमारी सहमति है तो उस आबादी और समूह से तुम्हारी फौज, तुम्हारी पुलिस कुछ भी करे, हम कुछ नहीं बोलेंगे। बस तुम्हारी अर्थव्यवस्था हमारी मर्जी से चलनी चाहिए और वहां के समूहों को कुचलने में हथियार हमारे इस्तेमाल होने चाहिए।  इस वर्ल्ड ऑर्डर में चीन और उसका सिल्क रूट, ईराऩ जैसे कई मुल्क सबसे बड़ी बाधा हैं। भारत ने तटस्थ होने की कोशिश की लेकिन उसके नेता नैतिक साहस नहीं जुटा पाए और अमेरिकी वर्ल्ड आर्डर के सामने घुटने टेक दिये। #अमेरिका ने #भारत से कहा, #ईरान का तेल मत ख़रीदो, हम सऊदी अरब से महँगा तेल दिलवा देंगे लेकिन ख़रीदना सऊदी का तेल ही पड़ेगा।

अभाव, गंदगी, चुनाव के झूठे वायदों के बावजूद हरिजन कैंप में जिंदगी गुलज़ार है

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जगह- हरिजन कैंप, लोदी कॉलोनी, साउथ दिल्ली की मस्जिद बच्चे का नाम - मोहम्मद सलमान सोर्स का नाम - मोहम्मद मोती, राज मिस्त्री (मैंशन) पहले वीडियो देखें फिर नीचे की तस्वीर देखें...वीडियो में क्या है, जानबूझकर नहीं लिखा। अगर आपने सुना तो शायद आप ही बता दें। दिल्ली में लोदी रोड पर इंडिया हबीतात सेंटर है और इसी से चंद कदम की दूरी पर हरिजन कैंप आबाद है। जिस इंडिया हबीतात सेंटर में ग़रीबों और ग़रीबी पर आए दिन सेमीनार होते रहते हैं, वहीं चंद कदम की दूरी पर यह बस्ती उन तमाम लफ्फाजियों को मुंह चिढ़ाती रहती है। मैं इस बस्ती में कल था। लोग बता रहे थे तीन दिन से पानी नहीं आ रहा है। लेकिन लोग उस गुस्से में शिकायत नहीं कर रहे थे, जिसकी उम्मीद की जाती है। चुनाव के मौसम में जब हर वोटर अपनी समस्याएं बताते नहीं थकता है, ऐसे में इस बस्ती में चुनाव कोलाहल से दूर लोग खुद में मस्त नजर आए। खबरों के मामले में टीवी के तमाम घटिया प्रभावों के बावजूद इस बस्ती के लोगों को नहीं मालूम कि इस आम चुनाव में कौन जीतेगा। उनका कहना था कि हमें कल फिर दिहाड़ी पर निकल जाना है, हमें क्या फर्क पड़ेगा, कौन जितेगा और क

देवताओं का वॉर रस प्रवचन

देवता आसमान से पुष्प वर्षा कर रहे हैं...आज वॉर रस पर प्रवचन का दिन है... देवता वॉर वाणी (War Sermons) कर रहे हैं...बच्चा जीवन में टाइमिंग का ही महत्व है।...कुछ कार्य का समय चुन लो...वॉर रस से मंत्रमुग्ध जनता को अगर शांति पाठ करने को कहोगे तो तुम्हें कच्चा चबा जाएगी लेकिन वॉर रस में अगर उसे पबजी गेम में भी अटैक बोलोगे तो वह ख़ुश हो जाएगी। टाइमिंग की कला जिसको आती है, वही वीर है। अच्छे टाइमिंग का ताजा उदाहरण देखो...कल वॉर मेमोरियल (War Memorial) का उद्घाटन हुआ, आज यानी 26 फ़रवरी को  भारतवर्ष की सेना ने अपने पड़ोस में जाकर कई किलो बम गिरा दिए...नोमैंस लैंड में क़रीब तीन सौ लोग मारे गए...कई आतंकी शिविर हमेशा के लिए तबाह हो गए। यही टाइमिंग है...वॉर रस में डूबी जनता को अपना टॉपिक और टॉनिक मिल गया है। सीआरपीएफ़ जवानों की तेरहवीं के दिन किए गए इस अटैक से संबंधित पक्षों ने कई हसरतें पूरी कर ली हैं। वॉर रस में डूबी जनता जश्न मोड में आ चुकी है। स्कूलों में पढ़ाई की जगह बच्चों में भी नारे लगवा कर वॉर रस का संचार किया जा रहा है। जब तक इस वॉर रस का ख़ुमार उतरेगा तो धर्म का रस तैयार है।

अलीबाबा के जैक मा की बातें और अपना देश भारत...

यहां मैं आप लोगों के लिए एक विडियो पोस्ट कर रहा हूं जो पूरा देखने के बाद आपको सोचने को मजबूर कर देगा। हालांकि उसमें कही बातों को मैं अपनी बात के साथ आप लोगों के पढ़ने के लिए यहां दे रहा हूं। लेकिन हो सकता है कि अनुवाद में कुछ कमियां हों, इसलिए अगर आप पूरा विडियो देखेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। दुनिया की बड़ी कंपनियों में गिनी जाने वाली अलीबाबा (Alibaba) के मालिक जैक मा (Jack Ma) को हाल ही में हॉगकॉग यूनिवर्सिटी ने पीएचडी से नवाजा है। इस मौके पर जैक मा ने जो बातें कहीं हैं, उसका संबंध भारत से या किसी भी देश से जुड़ता है।... जैक मा कहते हैं... तमाम नाकामियों की वजह से मैं यही सोचता था कि कभी मुझे पीएचडी की डिग्री किसी यूनिवर्सिटी से मिलेगी। यह मेरा सपना था। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा। एक दिन ऐसा भी आता है जब कोई यूनिवर्सिटी आपको पीएचडी की डिग्री देने को बेताब होती है... एक अच्छा बिजनेसमैन सिर्फ पैसा कमाना ही नहीं जानता, बल्कि उस पैसे को अच्छी तरह खर्च करना भी जानता है। लेकिन हम सिर्फ पैसा कमाने के लिए जिंदा नहीं रहते।...अगर आपके पास 10 लाख डॉलर हैं, वो आपक

2019 में कौन जीतेगा - धर्म या किसान...

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 नवभारत टाइम्स (एनबीटी) में आज 26 दिसंबर 2018 को प्रकाशित मेरा लेख... आजकल 2019 का अजेंडा तय किया जा रहा है। हर चुनाव से पहले यह होता है। लेकिन इस बार एक बात नई है। इस बार अजेंडा ‘धर्म बनाम किसान’ हो गया है जबकि इससे पहले भारत में चुनाव गरीबी हटाओ, भ्रष्टाचार, आरक्षण, दलितों-अल्पसंख्यकों की कथित तुष्टिकरण नीति, पाकिस्तान और सीआईए से खतरे के नाम पर लड़ा जाता रहा है। किसानों की बात भी हर चुनाव में की जाती है लेकिन उनका जिक्र सारी पार्टियां सरसरी तौर पर करती रही हैं। इस बार परिदृश्य बदला हुआ है। केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष की कथित एकजुटता की तेज चर्चा के बावजूद अगले आम चुनाव का एक जमीनी अजेंडा भी अभी से बनने लगा है। समय की कमी 2014 में केंद्र में नई सरकार बनने के बाद देश भर के किसान संगठन दो साल तक हालात का आकलन करते रहे। लेकिन 2016 से वे बार-बार दिल्ली और मुंबई का दरवाजा खटखटा रहे हैं कि हमारी बात सुनो। 2016 में सबसे पहले तमिलनाडु के किसान जंतर मंतर पर आए। उसके बाद मध्य प्रदेश के किसान संगठन दिल्ली आए। किसानों की शक्ल से भी अपरिचित मुंबई ने पिछले डेढ़ वर्षों में थोड़े

इतिहासकार रामचंद्र गुहा को इस विवाद से क्या मिला...

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इस प्रसिद्ध इतिहासकार का मेरे दिल में बहुत सम्मान है। उनके विचारों का मैं आदर करता हूं। लेकिन बीफ खाने वाला उनका ट्वीट और फोटो निहायत गैरजरूरी था। क्योंकि आप क्या खाते हैं, इससे शेष भारत को क्या लेना देना...और एक बड़े वर्ग की भावनाएं इस पर आहत होती हैं तो उन्हें ऐसा करने से परहेज करना चाहिए था।  लेकिन संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों ने उन्हें जिस तरह जान से मारने की धमकी दे डाली, वह भी निंदनीय है। हद यह है कि रॉ (रिसर्च एनॉलिसिस विंग) के एक रिटायर्ड अधिकारी तक ने उन्हें धमकी दी। बुलंदशहर हिंसा में एक फौजी का नाम आने के बाद और अब गुहा को धमकी देने में रॉ के पूर्व अधिकारी का नाम आने के बाद इन सेवाओं में काम करने वालों को लेकर चिंता पैदा होना स्वाभाविक है। अगर इन सेवाओं में कार्यरत लोग धर्म, जाति के आधार पर इस तरह की घटनाओं में हिस्सा लेंगे तो भारतीय समाज के लिए चिंताजनक स्थिति है।  इतिहासकार गुहा ने शनिवार को अपने गोवा प्रवास का एक फोटो ट्विटर पर शेयर किया जिसमें वह बीफ (गाय का मांस) खाते नजर आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने लिखा कि भाजपा शासित राज्य में बीफ खाना जश्न मनाने जैस

मुस्लिम विमर्श....एक पैगाम...

(वैसे तो यह पब्लिक पोस्ट है, कोई भी पढ़ सकता है लेकिन इसमें पैगाम सिर्फ मुसलमानों के नाम है...) रात मेरे ख़्वाब में पैगंबर-ए-रसूल आए...मुझे उनका चेहरा तो नहीं दिखाई दिया लेकिन उनकी आवाज़ गूँजती रही और मैं सुनता रहा। उन्होंने यह पैग़ाम भारतीय मुसलमानों तक पहुँचाने को कहा है... आए दिन ऐतिहासिक शहरों के नामकरण और भाजपा के मंदिर राग और कांग्रेस के साफ्ट हिंदुत्व के खेल के बावजूद अगर आप लोग शांत (मुतमइन) हैं तो आप लोगों को इस धैर्य को न खोने देने वाले जज़्बे को कई लाख सलाम... आप लोग 2019 के चुनाव तक इसी धैर्य का परिचय दें। ...क्योंकि वोट के लिए मची जंग का सबसे घिनौना चेहरा अभी आना बाकी है...। वह सब होने वाला है, जिसकी आपने कल्पना नहीं की होगी।...हर दिन साजिशों से शुरू हो रहा है। लेकिन अगर आप लोग किसी उकसावे में नहीं आए तो यक़ीन मानिए बाकी ताक़तें अपने मकसद में नाकाम हो जाएंगी। अभी आपको शिया-सुन्नी ...अशरफ़-पसमांदा...बरेलवी-दे वबंदी-कादियानी-इस्माइली-खोजा- बोहरा, सैयद-पठान जैसे फ़िरक़ों या बिरादरी में बाँटने की हरचंद कोशिशें होंगी। मैंने अल्लाह की जो किताब तुम लो

ढोंगी चाय वाले की महानतम खोज...

कुछ सुना आपने...अब हम लोग नाली से निकलने वाली गैस से चाय बना सकते हैं...सुना है कि किसी फलाने देश के ढोंगी चाय वाले ने यह महानतम खोज की है... ...उस देश में इतने मैनहोल हैं, सभी जगह की गैस जमा करके सभी बेरोजगार वहां चाय की दुकान खोल सकते हैं...हर वक्त ताजी गैस मिलेगी और चाय भी शानदार होगी... मैंने तो फलाने देश के प्रधानमंत्री जी को लिख दिया है कि कृपया इस बार भगवा क़िले की दीवार पर चढ़कर अपने भाषण में नाली से निकलने वाली गैस और उससे बनने वाली चाय के बारे में विस्तार से रौशनी डालें...ताकि फलाने देश के तमाम बेरोजगार इसमें अपने लिए कुछ खोज सकें... मुझे लगता है कि "पकौड़ा तलो रोजगार योजना" के बाद "नाली गैस की चाय" योजना फलाने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी... ताज्जुब है कि गैस पैदा करने वाली देश की तमाम नालियों और मैनहोलों की पुख्ता सुरक्षा का इंतजाम नहीं किया गया है। इसके लिए कम से कम एक कैबिनेट लेवल का मंत्री तो नियुक्त ही किया जाना चाहिए जो देश भर में ऐसी नालियों से निकलने वाली गैस की सुरक्षा संभाल

क्या मोदी ने जानबूझकर भगत सिंह के बारे में झूठ बोला

हम यह मानने को तैयार नहीं कि भारत के प्रधानमंत्री के पास पीएमओ में लाइब्रेरी नहीं होगी, रिसर्चर नहीं होंगे और उनको भाषण के लिए इनपुट न दिए जाते होंगे। ...लगता यही है कि  मोदी की ऐसी कोई मजबूरी है जो उनसे शहीदे आज़म भगत सिंह और अन्य के बारे में जानबूझकर झूठे तथ्य बुलवा रही है ताकि उस झूठ को सच बताकर स्थापित किया जा सके। वरना मोदी से इतनी बड़ी ग़लती नामुमकिन है। एक झूठ को सच साबित करने के लिए अगर कुछ बड़े लोग मिलकर झूठ बोलने लगें तो काफ़ी लोगों को वह झूठ सच लगने लगता है। बड़े लोगों का झूठ इतनी नफ़ासत से सामने आता है कि तथ्यों से बेख़बर लोग उसे सच मान लेते हैं। आररएसएस इसी नीति पर काम कर रहा है। बतौर प्रधानमंत्री मोदी जब बार बार ऐतिहासिक तथ्यों पर झूठ बोलेंगे तो लोग उसी झूठ को सच मानने लगेंगे। क्योंकि उनसे भारत का सामान्य मानवी ऐसी उम्मीद नहीं कर सकता। पीएमओ के बारे में मैं बहुत नज़दीक से जानता हूँ। वहाँ हर सूचना मात्र एक क्लिक पर उपलब्ध रहती है। हर चीज़ के एक्सपर्ट पीएमओ से जुड़े हुए हैं।  यह कैसे संभव है कि पीएम कुछ भी अंट शंट बोलने से पहले ऐतिहासिक जानकारियों की पुष्टि न करते

लालकिले की आड़ में डालमिया का पीआर

मोदी सरकार ने लालकिला अगर डालमिया ग्रुप को 25 करोड़ रुपये में गोद दे दिया है तो इसमें हर्ज क्या है...देख रहा हूं सुबह से इसी पर सारे लोग ज्ञान बघार रहे हैं... बात सिर्फ इतनी सी है कि ब्यूरोक्रेसी और कॉरपोरेट मिलकर इस तरह का खेल करते रहते हैं। ये सारी चीजें विशुद्ध संपर्क बढ़ाने या पीआर के लिए की जाती हैं।... डालमिया ग्रुप के लिए 25 करोड़ कुछ नहीं है...लेकिन इसके बदले इसके मालिक उन सारी सरकारी मीटिंगों में बैठेंगे, मंत्रियों से बात करेंगे...प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिचेंगी। ... अगर डालमिया ग्रुप का मालिक सीधे प्रधानमंत्री के पास जाएगा तो शायद मुलाकात भी न हो सके...लेकिन लालकिले को खूबसूरत बनाने के नाम पर यह मुलाकात संभव है.... हो सकता है कि वह मोदी को तरकीब बताए कि इस बार 15 अगस्त पर जब आप आखिरी भाषण देंगे तो आपके बगल में मिशन 2019 का एक गुब्बारा लहराता रहेगा, ताकि देश के करोड़ों लोगों तक आपका संकेत सीधे पहुंच जाए और मोदी जी डालमिया ग्रुप के मालिक के लिए फौरन पद्मश्री वगैरह का इंतजाम कर दें... क्या आपको वित्त मंत्रालय का वह कार्यक्रम याद है जि